जैन धर्म के अनुसार दीवाली की सम्पूर्ण पूजा-पद्धति एवं नई बही मुहूर्त की सामग्री


दिवाली हमारे देश में कई मान्यताओं का प्रत्येक हैं और कुछ न कुछ प्रतीक या सूचक के रूप में मनाया जाता हैं। दीवाली वैसे पांच दिवसीय त्यौहार हैं जो धन तेरस से शुरू होकर दोज मनाया जाता हैं .जैन मान्यता के अनुसार यह भगवन महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मान्य जाता हैं।

आज से 2525 वर्ष पूर्व इसी दिन अमावस्या को जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर ने बिहार की पावापुरी की भूमि से निर्वाण  प्राप्त किया था। मान्यता है कि इसी दिन पावापुरी में भगवान महावीर के चरण चिन्ह के स्थान के ऊपर एक छत्र स्वयं ही घूमने लगता है। भगवान के निर्वाण  प्राप्त करने के उपरांत प्रात:कालीन बेला में देवों द्वारा दिव्य दीपों को आलोकित कर निर्वाण महोत्सव मनाया गया।

आज भी हम सब भगवान महावीर निर्वाण  दिवस के रूप में दीपावली का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन विधि-विधान से भगवान महावीर की पूजा-अर्चना की जाती है, निर्वाण लाडू (नैवेद्य) चढाकर आरती की जाती है तत्पश्चात बहुतायत की संख्या में दीपकों से मंदिर को सजाया जाता है। इसके अलावा सायंकाल को मंदिर जी में दीपमालिका की जाती है। दीपमालिका ज्ञान का प्रतीक है। दीपमालिका करते समय मन में भावना भानी चाहिए कि हम सभी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो और जीवन में अंधकार का नाश हो।

इसके अलावा चतुर्थकाल का समापन तथा पंचमकाल का सन्धिकाल था, जब कार्तिक शुक्ल एकम से नये संवत्सर की शुरूआत हुई थी, तभी से यह श्री वीर निर्वाण  संवत के नाम से प्रचतित हुआ। भारतीय संस्कृति के आस्थावान अनुयायी इस दिन व्यावसायिक संस्थानों में हिसाब-किताब की बहियों का शुभ महूर्त करते हैं और इसी दिन से नये लेखा वर्ष का शुभारम्भ माना जाता है। वैसे इसी दिन नयी बहियों की खरीददारी की जाती है और मंगल दिवस दीपावली पर विधि-विधान के अनुसार श्री महावीर स्वामी की पूजा एवं अन्य मांगलिक क्रियायें कर शुभ बेला में स्वास्तिक मांड कर रख देते हैं और पांच माह बाद नये वित्तीय वर्ष 1अपैल से शुरूआत करते हैं।

कई लोग दुविधाग्रस्त हैं कि नयी बहियों को दीपावली पर लाना उचित है अथवा 1 अप्रैल को लाना। इस संबंध में जानना जरूरी है कि दीपोत्सव पर्व को मनाने का कारण श्री वीर प्रभु का निर्वाण  तथा गौतम गणधर  श्री गौतम स्वामी को कैवल्य लक्ष्मी की प्राप्ति होता है जबकि पूर्वकाल में लेखावर्ष का शुभारम्भ तथा संवत्सरी भी इससे सम्बद्ध होने से इसी अवसर पर नयी बहियां खरीदकर लाना प्रासंगिक एवं युक्तियुक्त था। जो लोग दीपावली के दिन नयी बहियां लाते हैं और उन्हें रख देते हैं और 1 अप्रैल से उनका शुभारम्भ करते हैं,  तो उन्हें ऐसा करना चाहिए।

दीपावली के पूर्व कार्तिक त्रयोदशी को भगवान महावीर ने बाह्य समवसरण लक्ष्मी का त्याग कर मन, वचन और काय का निरोध किया था। प्रभु के योगों के निरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी थी। इसीलिए इस तिथि को धन्य तेरस के नाम से जाना जाता है। यह पर्व देवस त्याग के महत्व को दर्शाता हुआ संदेश देता है कि हम मन, वचन और काय से कुचेष्टाओं   का त्याग करें और बाह्य लक्ष्य से हटकर अंतर के शात स्वर्ण रत्नत्रय को प्राप्त करें। धन्य तेरस के दिन लोग रुपये-पैसे को लक्ष्मी मान कर पूजा करते हैं, जो उपयुक्त नहीं है बल्कि इस पावन दिन में मोक्ष व ज्ञान लक्ष्मी तथा गौतम गणधर  की पूजा करनी चाहिए, जो शास्त्रानुकूल, तथा कल्याणकारी है।

इसके अलगे दिन चतुर्दशी को भगवान महावीर ने 18000 शीलों की पूर्णता को प्राप्त किया था। वे रत्नत्रय की पूर्णता को प्राप्त कर अयोगी  अवस्था ने निज अवस्था में लीन हुए थे। अतएव इस पर्व दिवस को रूप चौदस के दिन ब्रहमचर्य का पालन करते हुए व्रतादि धारण करना चाहिए। भगवान की दिव्यध्वनि स्यात, अस्ति-नास्ति, अवक्तव्य आदि सात रूपों में खिरीं थी। इसलिए इस दिन को गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है। गो यानी जिनवाणी तथा वर्धन यानी प्रगटित वरद्धित। इस दिन भगवान की देशना के पश्चात पुन: जिनवाणी का प्रकाश हुआ। इसलिए इस दिन जिवाणी की पूजा करनी चाहिए।

पूजा-पद्धति

दीपावली को प्रात:कालीन बेला में स्नान आदि कर स्वच्छ कपड़े पहनकर घर से एक थाली में दीपक (कम से कम 11 और श्रद्धानुसार) सजाकर उसे स्वच्छ कपड़े से ढ़ककर पूरे परिवार के साथ मंदिर जी लेकर जाएं। मंदिर जी में दर्शन करने के बाद दीपकों को जला लें तत्पश्चात सभी वेदियों पर दीपक सजाते जाएं। इसके बाद भगवान महावीर की पूजा-अर्चना कर निर्वाण  लाडू चढ़ाएं। इसके पश्चात की पूजा-पद्धति के बारे में आप भी जाने:-

दीपावली पूजन सम्पूर्ण जैन विधि
दीपमालिका-विधान एवं नवीन बही मुहूर्त विधि

प्रात:काल श्री जिनेन्द्र भगवान के दर्शन  पूजन करने मन्दिर जाने के पहले मन्दिर से आने के पश्चात अपने घर पर ‘‘ऊँ ह्रीं अर्हं अ दि आ उ सा श्री महावीर जिनेन्द्राय नम:’’ मंत्र की एक माला तथा महावीराष्टक स्त्रोत का पाठ करना चाहिये।

सायंकाल को उत्तम गौधूलोक लग्न में अथवा दिन के समय भी अपनी दुकान के पवित्र स्थान में ऊँची चौकी पर रकाबी में विनायक यंत्र का आकार मांड कर ठोणो में रख कर विराजमान करें।

उसी चौकी के आगे दूसरी चौकी पर शास्त्रजी (जिनवाणी) विराजमान करना चाहिये। इन दोनो चौकियों के आगे एक छोटी चौकी पर पूजा की सामग्री तैयार कर रखें और उसी के पास एक दूसरी चौकी पर थाल में स्वस्तिक मांड कर पूजा की सामग्री चढाने के लिये रखें। बहियाँ, दावात-कलम आदि पास में रख लें। घी का दीपक दाहिनी ओर तथा बाँई ओर धूपदान करना चाहिए। दीपक में घृत इस प्रमाण से डालें के रात्रि भर वह दीपक जलता रहे।

पूजा करने वाले को पूर्व या उत्तर दिशा में मुख कर के पूजा करना चाहिये। जो परिवार में बडा हो या दुकान का मालिक हो वह चित्त एकाग्र कर पूजा करे और उपस्थित  सभी जन  पूजा बोलें तथा शांति से सुनें। पूजा प्रारम्भ करने से पहले उपस्थित सब सज्जनों को तिलक लगाना चाहिये तथा दाहिने हाथ में कंकण बाँधना चाहिये। तिलक करते समय नीचे लिखा श्लोक पढे।
मंगलम भगवान वीरो, मंगलम गौतमो गणी।
               मंगलम कुन्द कुन्दार्यो, जैन धर्मोस्तु मंगलम्।।

तिलक करने के बाद नित्य-नियम-पूजा करके श्री महावीर स्वामी श्री गौतम गणधर स्वामी तथा श्री सरस्वती देवी की पूजा करनी चाहिये।

नई बही मुहूर्त की सामग्री

अष्ट द्रव्य धुले हुए, धूपदान 1, दीपक 2, लालचोल 1 मीटर, सरसों 50 ग्राम, थाली 1, श्रीफल1, लोटा जल का1, लच्छा, शाख 1, धूप 50ग्राम, अगरबत्ती, पाटे 2, चौकी 1, कुंकुम 50ग्राम, केसर पिसी हुई, कोरे पान, दवात, कलम (या लीड)2 सिन्दूर घी मिलाकर (श्री महावीरायनम: और लाभ शुभ दुकान की दीवाल पर लिखने को) फूलमालायें, नई बहियाँ, माचिस, कपूर देशी सुपारी आदि।

इस त्यौहार का महत्व स्वास्थ्य ,साफ़  सफाई से भी मनाया जाता हैं .इस बहाने प्रत्येक घर में साफ़ सफाई के साथ रंग रोगन होता हैं और यह प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता हैं .इस बहाने सब लोग समूह में रहकर पूजा पाठ और मनोरंजन करते हैं .

हमें इस अवसर पर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी को और पर्यावरण को कोई नुक्सान न हो .जहाँ तक हो सके हमें किसी भी प्रकार के घातक पटाखें नहीं फोड़ना चाहिए और हमें अपने आस पास यदि कोई अक्षम हो उसे सहयोग देना चाहिए।

यह त्यौहार सर्व जन हिताय होना चाहिए .जोश में होश न खोवें .

डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन


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