Acharya Vidyasagar – भारतीय संस्कृति के दैदीप्यमान नक्षत्र आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज


Acharya Vidyasagar – जैन जगत के महान सर्वोच्च संत, दिगम्बर सरोवर के राजहंस परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 50वां संयम स्वर्ण महोत्सव पूरे बर्ष अनेकानेक उपलब्धियों के साथ पूरे देश और दुनिया में भारी उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। 17 जुलाई 2018 को उनके मुनिदीक्षा दिवस पर यह स्वर्णिम वर्ष सम्पन्न हो जायेगा। इस अवसर पर प्रस्तुत है डॉ. सुनील जैन ‘संचय’ का विशेष आलेख

परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज न केवल श्रमण संस्कृति के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं बल्कि पूरी भारतीय संस्कृति को उन्होंने अपनी साधना के बल गौरवान्वित किया है। अध्यात्म सरोवर के राजहंस, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के महानद, साधना के सुमेरू, भारतीय संस्कृति के अवतार, संत शिरोमणि महाकवि आचार्य श्रेष्ठ विद्यासागर जी महाराज दिगम्बर जैन परंपरा के ऐसे महान संत हैं, जो सही मायने में साधना, ज्ञान, ध्यान व तपस्यारत होकर आत्मकल्याण के मार्ग पर सतत अग्रसर हैं। वे पंचमकाल में चतुर्थकाल सम संत हैं। महाप्रज्ञ आचार्यश्री की तपस्तेज सम्पन्न एवं प्रसन्न मुख मुद्रा प्रायः सभी का मन मोह लेती है। आचार्यश्री के कंठ में भी अपने गुरू के समान ही सरस्वती का अनुपम निवास है। आचार्यश्री की पावन वाणी सत्यं, शिवं सुन्दरं की विराट अभिव्यक्ति तथा मुक्ति द्वार खोलने में सर्वथा सक्षम है। उन्होंने अपनी अनवरत साधना से जीवन की कलात्मकता को भारतीय संस्कृति के अनुरूप अभिव्यक्त किया है। परंपरागत धार्मिक व सांस्कृतिक धारणाओं में व्याप्त कुरीतियों एवं विघटन को समझकर वे उन्हें हटा देने को व्याकुल हैं। इसीलिए धर्म की वैज्ञानिक, सहज, सरल व्याख्या आचार्यश्री ने उपलब्ध कराई है।

कलयुग में भी यह सतयुग, गुरूवर के नाम से जाना जाएगा।

       कभी महावीर की श्रेणी में , गुरूवर का नंबर आयेगा।।

वर्तमान युग के महावीर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 50वां मुनिदीक्षा दिवस सम्पूर्ण देश सम्पूर्ण देश संयम स्वर्ण महामहोत्सव वर्ष के रूप में विविध आयोजनों के साथ मना रहा है। यह हम सब का परम अहोभाग्य, परम सौभाग्य है कि हमें ऐसे महान आचार्यश्री का संयम स्वर्ण महोत्सव मनाने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है।

Acharya Vidyasagar

Acharya Vidyasagar के संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष के पावन प्रसंग के विराट बेमिशाल और अद्भुत महनीय अर्चनीय व्यक्तित्व पर एक संक्षिप्त दृष्टि :

 दिग्गज राजनेता आचार्यश्री के चरणों में : 

आज जहां तथाकथित बाबाओं के प्रकरणों के कारण संत समाज को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है वहीं हमारे पूज्य आचार्यश्री अपनी त्याग, तपस्या और साधना से पूरे विश्व को बता रहे हैं कि आज भी सच्चे संतों की कमी नहीं है। आज संतों के सम्मान को बचाने में आचार्यश्री का नाममात्र ही काफी है। यही वजह है के देश की राजनीति के धुरंधर आचार्यश्री के चरणों में आकर अपने आपको धन्य महसूस करते हैं। उनका दर्शन पाकर वे अपने जीवन को सार्थक मानते हैं। वर्ष 1999 में गोम्मटगिरी, इंदौर में देश के पुर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी जी बाजपेयी जब वर्तमान लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के साथ पहुंचे थे तो आचार्यश्री के दर्शन पाकर गदगद हो उठे थे। देश के पहले नागरिक राष्ट्पति महामहिम श्री रामनाथ कोंविद तो जब राज्यपाल थे तब भी दर्शनार्थ गये थे और राष्ट्पति बनने के बाद भी। पूर्व उपराष्ट्पति श्री भैरोसिंह शेखावत भी Acharya Vidyasagar के प्रति बहुत ही आस्था रखते थे। देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी 2016 में भोपाल चातुर्मास के समय आचार्यश्री से आशीर्वाद ग्रहण करने पहुंचे थे। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह चौहान तो आचार्यश्री के विराट व्यक्तित्व से बहुत ही प्रभावित रहते हैं यही वजह है कि जब-तब वह आचार्यश्री के चरणों में पहुंचते रहते हैं। उन्होंने आचार्यश्री का प्रवचन भी विधानसभा में कराया जो उनकी आचार्यश्री के प्रति आस्था को दर्शाता है। इसके अलावा छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री रमनसिंह जी, भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष अमित शाह जी, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी, उमाभारतीजी अनेक केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, राज्य मंत्री , सांसद, विधायक आचार्यश्री के चरणों में पहुंचकर आशीर्वाद और मार्गदर्शन लेते रहते हैं। योगगुरू बाबा रामदेव जी, आरएसएस के मोहनभागवत जी आदि अनेक हस्तियां आचार्यश्री से आशीर्वाद ग्रहण कर चुके हैं।

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को गति दे रहे हैं आचार्यश्री :

इन दिनों भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की खूब चर्चा है। आचार्यश्री का इस अभियान को सफल बनाने में जो अवदान है वह भुलाया नहीं जा सकता है।  आचार्यश्री की प्रेरणा से बेटियों की शिक्षा को शिखर पर ले जाने के उददेश्य से बालिकाओं की शिक्षा के लिए प्रतिभास्थली का निर्माण देश के विभिन्न स्थानों पर किया गया है और यह कार्य निरंतर जारी भी है। बेटियां प्रतिभास्थली में पढ़कर के अपनी प्रतिभा को निखार रही हैं और संस्कारों से युक्त शिक्षा पा रही हैं। आचार्यश्री का सपना है कि बेटियों की शिक्षा के लिए और लड़कों की शिक्षा के लिए अलग-अलग शिक्षा केन्द्र हों, उसी उद्देश्य को लेकर आज छत्तीसगढ के डोंगरगढ़, महाराष्ट् के रामटेक, मध्यप्रदेश के जबलपुर, इंदौर और अतिशय क्षेत्र पपौरा जी में प्रतिभास्थली संचालित की गई हैं। इन प्रतिभास्थलियों पर आचार्यश्री का सपना साकार होते देखा जा सकता है। यह समाज की नहीं देश के लिए मील का पत्थर साबित होंगी।

गौशालाओं की स्थापना से जीवदया का संदेश हुआ मुखर :

कृषि प्रधान अहिंसक देश में गौवंश आदि पशुधन को नष्ट कर मांस निर्यात किया जा रहा है , ऐसी स्थिति में आचार्यश्री ने हिंसा के ताण्डव के बीच अहिंसा का शंखनाद किया । आचार्यश्री की पावन प्रेरणा से देशभर में शताधिक गौशालाएं चल रही हैं, जिनमें उन बेजुबान पशुओं को आश्रय देकर उनकी रक्षा की जा रही है। आचार्यश्री हमेशा अपने प्रवचनों में कहते हैं कि गौधन की रक्षा हो तभी हमारा देश सुरक्षित रहेगा।

हथकरघा से स्वदेश प्रेम की भावना का उद्घोष :

Acharya Vidyasagar हमेशा स्वदेशी वस्त ुओं  के उपयोग की प्रेरणा देते हैं। हथकरघा उनकी इस भावना को साकार रूप कर रहा है। आज अनेक स्थानों पर हथकरघा उद्योग स्थापित हो चुका है। इसमें अनेक त्यागीव्रती भी अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं देने में संलग्न हैं। हथकरघा से जहां स्वदेश प्रेम की भावना को बल मिल रहा है वहीं सैकड़ों लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है। जेलों में कैदी भी इस कार्य को बड़ी ही रूचि पूर्वक कर रहे हैं।  गरीबों की आजीविका हथकरघा केन्द्र बन रहे हैं। यह महत्वपूर्ण कार्य बड़ी ही तेजी से आगे बढ रहा है।

तीर्थों के उद्धारक :

Acharya Vidyasagar की प्रेरणा से अनेक तीर्थक्षेत्रों का निर्माण हुआ है। अनेक क्षेत्रों का कायाकल्प हुआ है। छत्तीसगढ के अमरकंटक में सर्वोदय तीर्थक्षेत्र, चंद्रगिरी डोंगरगढ़, भाग्योदय सागर, दयोदय तीर्थ जबलपुर, सिद्धोदय तीर्थ नेमावर आदि तीर्थस्थल हैं इनके अतिरिक्त तीर्थक्षेत्रों पर आचार्यश्री के आशीर्वाद से जीर्णोद्धार के कार्य होने से उन क्षेत्रों का कायाकल्प होते हुए देखा जा सकता है।

महापुरूष के विशाल कृतित्व से भारतीय साहित्य हुआ समृद्ध : आज तक के इतिहास में किसी भी संस्कृत के विद्वान ने पांच शतक से ज्यादा संस्कृत भाषा में नहीं लिखे हैं किंतु आचार्यश्री ने अपनी लेखनी से संस्कृत भाषा में छह शतक लिख एक नूतन इतिहास की संरचना की है। आपने ज्ञान, ध्यान, तप के यक्ष में अपने आपको ऐसा आहूत किया कि अल्पकाल में ही प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, कन्नड भाषा के मर्मज्ञ साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध हो गये। आपने प्राचीन जैनाचार्यों के 25 प्राकृत-संस्कृत ग्रंथों का हिंदी भाषा में पद्यानुवाद कर पाठकों को समरसता प्रदान की है। आपके द्वारा रचित हिन्दी भाषा में लघु कविताओं के चार संग्रह गं्रथ- नर्मदा का नरम कंकर, तोता क्यों रोता , डूबोमत लगाओ डुबकी, चेतना के गहरा में, ये कृतियां साहित्य जगत् में काव्य सुषमा को विस्तारित कर रही हैं।

कालजयी कृति मूकमाटी : 

Acharya Vidyasagar की रचना मूकमाटी उत्कृष्ट काव्य कृति है। यह महाकाव्य है। ‘विद्वानों का मानना है कि भवानी प्रसाद मिश्र की सपाट बयानी, अज्ञेय का शब्द विन्यास, निराला की छान्दसिक छटा, पंत का प्रकृति व्यवहार, महादेवी की मसृण गीतात्मकता, नागार्जुन का लोक स्पन्दन, केदारनाथ अग्रवाल की बतकही वृत्ति, मुक्तिबोध की फैंटेसी संरचना और धूमिल की तुक संगति आधुनिक काव्य में एक साथ देखनी हो तो वह ‘मूकमाटी‘ में देखी जा सकती है।’ इस महाकाव्य पर अनेकों स्वतंत्र आलोचनात्मक ग्रंथों के अतिरिक्त 4 डी लिट, 22 से अधिक पीएचडी, 7 एम. फिल के शोध प्रबंध तथा 2 एमएड और 6 एमए के लघु शोध प्रबंध लिखे जा चुके हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश के पाठ्यक्रम में इसके कुछ अंश को शामिल करने का निर्णय भी लिया गया है। इस महाकाव्य पर निरंतर शोधकार्य और लेखन अनवरत रूप से जारी है। इस कृति ने भारतीय साहित्य भंडार को गौरव प्रदान करते हुए जो समृद्धता प्रदान की है वह अकल्पनीय है।

चेतनकृतियों के निर्माता :

Acharya Vidyasagar के दिव्य तेजोमय आभा मंडल के प्रभाव से उच्च शिक्षित युवा, युवतियां जवानी की दहलीज पर आपके श्री चरणों में सर्वस्व समर्पित बैठे। संस्कार सागर के जून 2018 अंक में प्रकाशित विवरण के अनुसार आचार्यश्री ने अब तक 120 मुनि दीक्षायें प्रदान की हैं। आचार्यश्री से दीक्षा लेने वाले 7 राज्यों के साधकगण हैं, जिनमें कर्नाकट के 9 मुनिराज, महाराष्ट् के 15, गुजरात के 3, उत्तरप्रदेश के 9, राजस्थान के 2, झारखण्ड के 1 और मध्यप्रदेश के 81 मुनिराज हैं। आचार्यश्री ने अब तक 172 आर्यिकाओं को दीक्षा प्रदान की है। जिनमें मध्यप्रदेश की सर्वाधिक 146 आर्यिकायें हैं।

120 मुनि, 172 आर्यिकायें, 57 ऐलक, 64 क्षुल्लक, 3 क्षुल्लिका, कुल मिलाकर 415 दीक्षाएं प्रदान की हैं। आचार्यश्री की इन चेतन कृतियों  ने जो त्याग, तपस्या और साधना की छटा बिखेरी है। आचार्यश्री पचास हजार किलोमीटर से ज्यादा पदयात्रा कर अनेक राज्यों में धर्मप्रभावना का झण्डा बुलंद कर चुके हैं।

हाइकू का आध्यात्मिक सौंदर्य :

आचार्यश्री की जापानी भाषा की कविता हाइकू पर रचनाएं बड़ी ही रोचक और ग्रहणीय प्रेरणादायी हैं। हाइकू जापानी छंद की कविता है। इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर हैं, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर हैं, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर हैं। महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लगभग 500 हाइकू लिखे हैं। आचार्यश्री की हाइकू अन्य रचनाकारों की हाइकू से बिल्कुल पृथक नजर आती हैं, जिसका बहुत बड़ा कारण है संयममय जीवन। उनकी अनुभूतियों से निष्पन्न जापानी छंद हाइकू की ये रचनाएं उन्हें विश्व के विशाल पटल पर स्थापित करती हैं।

इण्डिया नहीं भारत बोलो :

परम पूज्य Acharya Vidyasagar का कहना कि भारत को इंडिया नहीं कहना चाहिए, भारत कहना चाहिए। इण्डिया का कोई मतलब नहीं है। यह अर्थहीन नाम है। जबकि भारत नाम एक परंपरा का है, यह एक संस्कृति का नाम है। भारतीय देश के लिए अंग्रेजी नाम का इस्तेमाल होना दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत शब्द में एक ताकत है।  इस देश के हर व्यक्ति का दिल इस शक्ति से गूंजना चाहिए। आचार्यश्री का कहना है कि भारत का नाम पहले भी था, अभी भी है और आगे भी रहेगा। भारत को इंडिया कहने वाले इसकी संस्कृति से अनभिज्ञ हैं। हम सभी को अपने देश का नाम भारत के नाम से सम्बोधित करना चाहिए। इंडिया हटाओ, भारत बचाओ। परम पूज्य Acharya Vidyasagar के इस अभियान को लोगें ने हाथोहाथ लिया है और लाखों लोग भारत का प्रयोग करने लगे हैं।

पंचमकाल का आश्चर्य है उनकी कठोर- चर्या :

वर्तमान समय में Acharya Vidyasagar का संघ सम्पूर्ण देश का सबसे बड़ा दिगम्बर जैन साधु संघ है, संघ में संघ के नाम का कोई वाहन आदि नजर नहीं आता। टीवी, मोबाइल, लैपटॉप आदि आधुनिक सुविधा साधु के कमरे में नहीं दिखती। संघ में सभी संत, साधु शिक्षित, संस्कारी, बाल ब्रह्राचारी हैं। धर्म चर्चा में ही अपना समय लगाते हैं। विहार के समय भक्तगण बड़ी संख्या में मार्ग में चौका लगाकर आहारदान देते हैं और पुण्य लाभ लेकर साथ-साथ हजारों का जनसैलाव चलता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इनके संघ में संघपति की तो बात दूर है, कोई भी निजी चौका लेकर साथ नहीं चलता, चौका कितना आसान मात्र दाल-फुलका, न सब्जी, न फल, न घी, क्या लिखें, क्या न लिखें? जहां-जहां संघ का प्रवास होता है, वहां-वहां सैकड़ों की संख्या में लोग चौका लगाने उमड़ पड़ते हैं। आचार्यश्री के संघ में सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय आदि सभी क्रियाओं का समय निर्धारित है। सभी समय से सारी क्रियाएं संपादित करते हैं। चाहे कितनी ही तेज गर्मी हो या कितनी ही कड़कड़ाती ठंड, संघ के किसी साधु के कमरे में कूलर, एसी, हीटर देखने को नहीं मिलते। न पंखे का उपयोग करते, न ही मच्छर भगाने वाले किसी ऑयल या कायल का उपयोग करते, धन्य है ऐसी साधना। किसी तरह के तंत्र, मंत्र , ताबीज आदि की क्रियाओं से आचार्यश्री का संघ अछूता है। पूरा संघ एक ही आचार्य के अनुशासन में चलता है। संघ में दीक्षा गहन स्वाध्याय, साधना, त्याग आदि के बाद दी जाती है ताकि श्रमणाचार का पालन निर्दोष कर सकें। Acharya Vidyasagar स्वयं बाल ब्रह्राचारी हैं तथा उनका पूरा संघ भी बाल ब्रह्राचारी है, जो इस पंचमकाल में किसी आश्चर्य से कम नहीं है। सही मायनों में अतिथि तो आचार्यश्री ही हैं। किसी को पता नहीं होता कि आचार्यश्री का पग विहार किस ओर होगा। सभी बस अपना-अपना गणित लगाते हैं।

जब तक सृष्टि के अधरों पर , करूणा का पैगाम रहेगा।

    तब तक युग की हर धड़कन में, विद्यासागर का नमा रहेगा।।

Acharya Vidyasagar को पाकर लगता है न जाने कितने जन्मों का पुण्य आज फलित हो रहा है। आचार्यश्री चलते फिरते तीर्थ हैं। उनके तेज दमकते हुए आभामंडल और मुस्कान को देखकर हजारों लोगों के दुख दूर हो जाते हैं। आचार्यश्री के दर्शन जो भी करता है वह धन्य हो जाता है। उनकी दिव्य देशना में जो अमृतवाणी झरती है उसे पान कर हजारों लोगों की प्यास बुझती है। आचार्यश्री की हर चर्या अतिशय-सी दिखती है। उनकी मंगल वाणी खिरते समय जो शांति का अमृत बरसता है, चारों ओर एक अजीब-सा सन्नाटा, मात्र आचार्यश्री की वाणी अनुगूंज सुनायी देती है। सचमुच अद्भुत और निराले संत हैं आचार्यश्री।

Acharya Vidyasagar के सपने को साकार करने में हजारों-लाखों युवा लगे हुए हैं, हम सब मिलकर Acharya Vidyasagar के इस संयम स्वर्ण महामहोत्सव वर्ष के अवसर पर अपने गुरूदेव के सपनों को साकार करने में अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभायें, तभी हम सबका संयम स्वर्ण महोत्सव बर्ष मनाना सार्थक होगा। किसी कवि की यह पंक्तियां आचार्यश्री विराटता को व्यक्त करती हैं-

कुन्दकुन्द के समयसार का सार हमें जो बता रहे, समन्तभद्र का डंका घर-घर, द्वार-द्वार बजा रहे।

भोले-भाले अनाथ जन के जो हैं पावन धाम, ऐसे विद्यासागर गुरूवर को हमारा शत-शत प्रणाम।।

-डॉ. सुनील जैन ‘संचय’


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