क्षमावाणी : मन की कलुषता धोने का पर्व


भारत की प्राचीन श्रमण संस्कृति की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ‘जिन’ परम्परा ने क्षमा को पर्व के रूप में प्रचलित किया है। जैनों के प्रमुखतम पर्व में ‘क्षमापर्व’ है। इसे क्षमावाणी भी कहते हैं।

विश्व के इतिहास में यह पहला पर्व है, जिसमें शुभकामना, बधाई, उपहार न देकर सभी जीवों से अपने द्वारा जाने-अनजाने में किए गए समस्त अपराधों के लिए क्षमायाचना करते हैं। क्षमा करने और क्षमा माँगने के लिए विशाल हृदय की आवश्यकता होती है। तीर्थंकरों ने सम्पूर्ण विश्व में शांति की स्थापना के लिए सूत्र दिया है—

 खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे।

मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झम ण केणवि।।

अर्थात मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ। सभी जीव मुझे भी क्षमा करें। मेरी सभी जीवों से मैत्री है। किसी के साथ मेरा कोई वैर भाव नहीं है।

क्षमावणी का पर्व सौहार्द, सौजन्यता और सद्भावना का पर्व है। आज के दिन एक दूसरे से क्षमा मांगकर मन की कलुषता को दूर किया जाता है। मानवता जिन गुणों से समृद्ध होती है उनमें क्षमा प्रमुख और महत्वपूर्ण है। कषाय के आवेग में व्यक्ति विचार शून्य हो जाता है। और हिताहित का विवेक खोकर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। लकड़ी में लगने वाली आग जैसे दूसरों को जलाती ही है, पर स्वयं लकड़ी को भी जलाती है। इसी तरह क्रोध कषाय को समझ पर विजय पा लेना ही क्षमा धर्म है।

रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है कि- क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो।।

क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। जैन संप्रदाय में इसके लिए एक विशेष दिन का आयोजन क्षमावाणी के रूप में  किया जाता है। मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है।

क्षमावणी पर्व हमारी वैमनस्यता, कलुषता बैर—दुश्मनी एवं आपस की तमाम प्रकार की टकराहटों को समाप्त कर जीवन में प्रेम, स्नेह, वात्सल्य, प्यार, आत्मीयता की धारा को बहाने का नाम है, हम अपनी कषायों को छोड़ें, अपने बैरों की गांठों को खोलें, बुराइयों को समाप्त करें, बदले, प्रतिशोध की भावना को नष्ट करें, नफरत—घृणा, द्वेष बंद करें, आपसी झगड़ों, कलह को छोड़ें।अनुसंधानकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि लम्बे समय तक मन में बदले की भावना, ईर्ष्या—जलन और दूसरों के अहित का चिन्तन और प्रयास करने पर मनुष्य भावनात्मक रूप से बीमार रहने लगता है।जीवन में जब भ‍ी कोई छोटी-बड़ी परेशानी आती है तब व्यक्ति अपने मूल स्वभाव को छोड़कर पतन के रास्ते पर चल पड़ता है। जो कि सही नहीं है, हर व्यक्ति को अपना आत्म‍चिंतन करने के पश्चात सत्य रास्ता ही अपनाना चाहिए। हमारी आत्मा का मूल गुण क्षमा है। जिसके जीवन में क्षमा आ जाती है उसका जीवन सार्थक हो जाता है। क्षमायाचना और क्षमादान चाहे दो आत्मीय जनों के बीच हो अथवा समूहों या राष्ट्रों के बीच , यदि ईमानदारी के साथ क्षमायाचना की जाती है , तो यह अपमान की भावना का निराकरण करती है। क्षमा में बहुत बड़ी शक्ति होती है। क्षमाशीलता का भारी महत्व है , पर हम इसके बारे में बहुत कम ध्यान देते हैं।

क्षमा का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। अगर इंसान कोई गलती करे और उसके लिए माफी मांग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है। जिस तरह क्षमा मांगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है, उसी तरह किसी को क्षमा कर देना भी इंसान के व्यक्तित्व में चार चांद लगाने का काम करता है।

क्षमायाचना करने के लिए हममें अपनी गलती , असफलता और कमजोरी को स्वीकार करने की क्षमता होनी जरूरी है। पर निरंतर जीत के लिए हम इतने आतुर होते हैं कि अपनी गलतियों और कमजोरियों को स्वीकार करने की हमें फुरसत ही नहीं मिलती।

क्षमा ने ही युगों-युगों से मानव-जाति को नष्ट होने से बचाया है।

किसी को किसी की भूल के लिए क्षमा करना और आत्मग्लानि से मुक्ति दिलाना एक बहुत बड़ा परोपकार है। क्षमा करने की प्रक्रिया में क्षमा करने वाला क्षमा पाने वाले से कहीं अधिक सुख पाता है।अगर आप किसी की भूल को माफ़ करते हैं तो उस व्यक्ति की सहायता तो करते ही हैं साथ ही साथ स्वयं की सहायता भी करते हैं। किसी ने ठीक ही लिखा है-

जैसा भी हो सम्बन्ध बनाये रखिये।

दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये।।

वास्तव में क्षमा की अवधारणा स्वयं से आरंभ होती है। हमें लगता है कि हम दूसरे को क्षमा करते हैं अथवा नहीं करते, पर वास्तविकता यह है कि क्षमा की समस्त प्रतिक्रियाएं स्वयं पर लागू हैं जैसे-जैसे हम इस क्षमाशीलता के मार्ग पर अग्रसर होते हैं, इसके सुपरिणामों से अभूतपूर्व सुखानुभूति के साथ ही तनाव मुक्त जीवन की प्राप्ति होती है। क्षमा, नफरत का निदान है। क्षमा, पवित्रता का प्रवाह है। क्षमा, नैतिकता का निर्वाह है। क्षमा, सद्गुण का संवाद है। क्षमा, अहिंसा का अनुवाद है। क्षमा, दिलेरी के दीपक में दया की ज्योति है। क्षमा, अहिंसा की अँगूठी में मानवता का मोती है।क्षमा वो उपकार नहीं है, जो हम दूसरों पर करते हैं बल्कि ये उपकार हम अपने लिए करते हैं। क्षमा करो, भूल जाओ और आगे बढ़ो। हम में से अधिकतर लोग क्षमा कर देते हैं और भूल भी जाते हैं। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि दूसरा व्यक्ति ये न भूले कि हमने उसे क्षमा किया है। किसी भी व्यक्ति को उसके और अपने विचार में नीचा दिखाए बिना क्षमा कर देना एक बहुत ही संवेदनशील कार्य है। जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया, तुम्हें छोटा समझा, तुम्हारा महत्व नहीं समझा, उन्हें क्षमा कर दो। लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि अपने आपको क्षमा कर दो कि तुमने उन सब लोगों को ऐसा करने दिया।

क्षमा माँगना और क्षमा करना दोनों महान गुण है जो मनुष्य के मनको हल्का कर उसे सुखी बनाते हैं। क्षमा माँग कर या क्षमा दानकर हम किसी पर कोई एहसान नहीं कर रहे होते वरन् अपने मन के सुकून का उपाय कर रहे होते है। शोध में पाया गया है कि लम्बे समय तक प्रतिशोध, जलन, क्रोध, आत्मग्लानि, दुख, धोखा, ईर्ष्या इत्यादि के विचार रखने से तन और मन रुग्ण हो जाते हैं जिसके लिए क्षमा से अच्छी कोई दवा नहीं है। क्षमा सदा और सर्वत्र सभी के लिए फायदे मन्द होती है। यह एक ऐसी अद्भुत चीज है जो चाहे माँगी जाए या दी जाए, मनुष्य को महान और देव तुल्य बनाती है।कहते हैं, भूल होना प्रकृति है, मान लेना संस्कृति है और सुधार लेना प्रगति है। क्षमा माँगने से अहंकार का ध्वंस होता है और शांति का अनुभव होता है।

जैनाचार्यों  ने क्रोध को अग्नि की उपमा दी है उसे शांत करने के लिये क्षमा जल ही समर्थ है। जैसे जल का स्वभाव शीतल है वैसे ही आत्मा का स्वभाव शांति है। जैसे अग्नि से संतप्त हुआ जल भी जला देता है वैसे ही क्रोध से संतप्त हुई आत्मा के धर्मरूपी सार जलकर खाक हो जाता है।

अपनी कितनी भी बड़ी गलती के लिए हम जितना जल्दी खुद को माफ कर देते हैं उतना ही जल्दी हमें दूसरों को भी माफ कर देना चाहिए।क्षमावाणी पर्व पर अपने मन की जाँच करें कि कहीं मन में किसी के लिए थोड़ा सा भी घृणा या द्वेषभाव, ईर्ष्या भाव, नफरत का भाव है तो उसे सच्चे दिल से माफ करके अपने मनको साफ करें। इसी तरह अगर किसी को हमारे बुरे व्यवहार से ठेस पहुँची है तो उससे माफी मांगने में देरी ना करें। जैसे हम अपने घर की सफाई करते हैं, वैसे ही मन की भी सफाई करें।

क्षमा एक ऐसी औषधि है, जो गहराई तक जाकर घावों का इलाज करती है। यह उस जहर को खत्म कर देती है, जो प्रेम और सौहार्द को खत्म करता है। क्षमावणी पर्व तो हम सभी के हृदय में मैत्री पुष्प खिलाने आता है,मनोमालिन्य को मिटाने आता है, बैरभाव की ग्रंथियाँ तोड़ने आता है। ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की उक्ति वास्तव में क्षमा पर्व जैसे आयोजनों में ही चरितार्थ होते दिखती है। क्षमावाणी पर्व हमें ‘‘आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्’’ की शिक्षा प्रदान करता है। क्षमावणी के पावन पर्व पर ‘‘सत्वेषुमैत्री’’ और मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे’ जैसी पंक्तियों को चरितार्थ होते देखा जा सकता है। हमें यह पर्व सद्भावना का संदेश देता है। यह पर्व ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु: निरामया:’ की भावना भाने की प्रेरणा प्रदान करता है।क्यों न ऐसे महान पर्व को विश्व मैत्री दिवस के रूप में मनाने की पहल की जाय।साथ ही एक निवेदन और है, जिस तरह से आज व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर के युग में यह पर्व मात्र औपचारिक बनता जा रहा है, इस ओर भी हमें ध्यान देना होगा।

इस जीवन में ऐसे कई पल आये होंगे जब मेरे  द्वारा किये गए कार्यों के प्रति या कहे गए शब्दों के प्रति आपके मन में क्षोभ उत्पन्न हुआ हो तथा हम आपके क्रोध के निमित्त के रूप में आपके समक्ष उपस्थित हुए हों…क्षमावाणी महापर्व के  इस अवसर पर मैं आप सबसे ऐसे प्रत्येक क्षणों हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ…

उत्तम क्षमा।

पूरे बरस मेरे द्वारा
जाने अनजाने मैं,
बोल चाल मैं,
हंसी मजाक मैं,
समाचार प्रकाशन या आलेख प्रकाशन में
आमने सामने या फोन पर,
फेसबुक या वाटसप पर,
आपका मन दु:खाया हो,
गलत किया या गलत लगा हो,
मेरे कारण किसी को उद्वेग हुआ हो,
मन वचन और काया से आप सभी से “उत्तम क्षमा” ।

 

 

-डॉ. सुनील जैन संचय

 


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