2800 साल पुराने जैन मंदिर में 13 वर्षो तक जीर्णोद्धार के बाद 11 दिनी प्रतिष्ठा समारोह 23 जनवरी से शुरू


देवधरा अबरुदांचल के धार्मिक इतिहास में एक स्वर्णिम अवसर जुड़ने जा रहा है। जीरावला  जैन तीर्थक्षेत्र में 2800 साल पुराने जैन मंदिर में लगभग 13 वर्षो तक लगातार जीर्णोद्धार का कार्य अब सम्पन्न होने जा रहा है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा इसी माह होने जा रही है। आयोजन की भव्यता और मंदिर की वैभवता ऐसी है कि प्रतिष्ठा समारोह में देशभर से हजारों संत और लाखों की तादात में श्रद्धालुओं पहुंचेंगे। प्रतिष्ठा महोत्सव के आमंतण्रके लिए एक वर्ष पहले ही रथ लगभग 15 हजार किमी की यात्रा करके नगर-नगर, गांव-गाव में पहुंच रहा है।

पूरा मंदिर 4.66 लाख वर्गफीट में बना है, जिसमें मुख्य मंदिर 36 हजार वर्गफीट में बना हुआ है। इस भव्यता से परिपूर्ण मंदिर निर्माण के लिए लगभग 1 लाख 50 हजार घन फीट पत्थर राजस्थान से मंगवाया गया है। मंदिर के मूल नायक श्री जीरावला जैन पाश्र्वनाथ भगवान सहित 24 तीर्थकरों के मंदिर होंगे। मंदिर परिसर में 3 मंजिला भोजनशाला सहित 60 हजार वर्गफीट में 200 कमरों वाली भव्य धर्मशाला का निर्माण भी हो रहा है। मंदिर की प्रतिष्ठा महोत्सव का कार्यक्रम 11 दिन तक होगा, जो 23 जनवरी से शुरू होगर 2 फरवरी तक चलेगा।

मंदिर की प्राचीनता और महत्वता के बारे में बताया जाता है कि यह मंदिर लगभग 2800 वर्ष पुराना है। मेरुतुंगसूरि जी महाराज द्वारा रचित जीरावला पार्श्वनाथ स्त्रोत्र के आधार पर इस तीर्थ में विराजमान मूलनायक श्री जीरावला जैन तीर्थ का निर्माण नगर के राजा चंद्रयश ने दूध और बालू से करवाया था। कालांतर में यह प्रतिमा भूमिगत हो गई थी। इसके बाद निकट के ही वरमाण गांव के धांधल श्रावक को इस प्रतिमा का स्वप्न आया, इसके बाद संवत 1109 में सिंहोली नदी के समीप देवत्री गुफा से मूर्ति प्रगट हुई। इसके बाद 1191 में आचार्य अजितदेव सूरिर जी के सानिध्य में मूलनायक की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई।

मुगलों के आक्रमण से यह मंदिर तहस-नहस हो गया था। इसके बाद इसकी प्रतिष्ठा पूर्व में भी की जा चुकी है किंतु इतने भव्य और विशाल स्तर पर मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार हुआ है। मंदिर पर 5 विशाल शिखर हैं। मुख्य शिखर के नीचे मूलनायक जीरावला पार्श्वनाथ दादा विराजित होंगे और आसपास के चार शिखरों में मूलनायक शंखेर पार्श्वनाथ, नूतन जीरावला पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और महावीर भगवान विराजेंगे। इसके अलावा मंदिर में तीन वृहद देव कलिकाएं, 4 कोनों में 8 लघु महाधर प्रसाद बनाए गए हैं। शेष 42 देवकुलिकाओं में 108 पार्श्वनाथ, 2 देवकुलिकाओं में शुभ सरस्वती और श्री गौतम गणधर विराजेंगे। जीरावला पार्श्वनाथ भगवान विध्नहर्ता माने जाते हैं और किसी भी शुभ कार्य से पूर्व उनका स्मरण किया जाता है।

 


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