मन ,वचन ,काय की कुटिलता को त्याग कर जीवन में सरलता लाना उत्तम आर्जव धर्म है: विज्ञमति माताजी


टोंक। श्री दिगंबर जैन नसिया में पर्यूषण पर्व के तहत तीसरे दिन गुरु मां विशुद्धमति माताजी के संघस्थ प्रज्ञा पद्मनी आर्यिका 105  विज्ञमति माताजी ने अपने उद्बोधन में उत्तम आजर्व धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि मन में हो वैसा ही आचरण में होना चाहिए जो वचन से कहे वह क्रिया यथार्थ आचरण में भी होना चाहिए। जीवो को अपने तीनों योग (मन ,वचन ,काय) में एकता समानता लाना योग् है जिस प्रकार दर्पण सरल एवं स्वच्छ होता है। जैसा उसके सामने मुख होता है वैसा ही दिखता है वैसे ही अपने मन वचन काय में समानता रखनी चाहिए सरलता के भावो को आर्जव धर्म कहते हैं जो दूसरे को छलता है उसके सीने मे छाले हो जाते हैं व दूसरों को धोखा देने वाला एक दिन खुद ही धोखा खा जाता है इसलिए जीवन में सरलता होनी चाहिए समाज के अध्यक्ष धरमचंद आंडरा ने बताया कि मंगलवार को प्रात काल आदिनाथ भगवान एवं शांतिनाथ भगवान के समक्ष श्रावक श्रेष्टि द्वारा विश्व में शांति, खुशहाली समृद्धि ,एवं कोरोना महामारी की रोकथाम हो उसके लिए शांतिधारा ओर अभिषेक किया गया।

 

— अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी


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