सिद्धान्त चक्रवर्ती श्वेतपिच्छाचार्य 108 श्री विद्यानंद जी मुनिराज ने अपने परम प्रभावक शिष्य आचार्य श्री श्रुत सागर जी मुनिराज को अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा की ।


परमपूज्य श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद मुनिराज जी ऐसे वयोवृद्ध संत हैं, जो अपनी दीक्षा के सर्वाधिक 55 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं। अपने संयमकाल के पढ़ाव पर अपनी कठिन दिनचर्या, संयम और तपस्या के बल पर आचार्य विद्यानंद जी इस युग के महान जैन संतों में गिने जाते हैं। आचार्यश्री के आशीर्वाद एवं मंगल प्रेरणा से कुंदकुंद भारती की स्थापना वर्ष 1978 नयी दिल्ली में की गयी। ऐसे संयमकारी संत अपने इस पढ़ाव में अपना सम्पूर्ण समय ध्यान और साधना को समर्पित करने हेतु अपने परम शिष्य परमपूज्य आचार्य श्रुतसागर जी मुनिराज को अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा कुंदकुंद भारती के पदाधिकारियों की बैठक के दौरान दिनांक 18 मार्च, 2018 को की। उत्तराधिकारी बनने के बाद आचार्य श्री श्रुतसागर जी महाराज ने संस्थान के सभी ट्रस्टियों को संबोधित करते हुए कहा कि परमपूज्य आचार्य श्रीविद्यानंद जी मुनिराज का आप सभी को मंगल आशीर्वाद मिलता रहा है। भविष्य में भी परमपूज्य आचार्य का एवं मेरा भी मंगल आशीर्वाद आपको हमेशा मिलता रहेगा।

बता दें कि उत्तराधिकारी बनने वाले परमपूज्य आचार्य श्री श्रुतसागर जी महाराज ने 21 फरवरी 1987 को जैन धर्म के पवित्र सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी में आचार्य श्री कुंथुसागर जी मुनिराज से मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। मुनि दीक्षा के बाद इनका नाम कनकोज्जवलनंदी जी मुनिराज हो गया था। 18 अप्रैल 1998 को दिल्ली में श्री विद्यानंद जी मुनिराज से उपाध्याय दीक्षा ग्रहण कर उपाध्याय श्री श्रुतसागर जी मुनिराज हो गये। इसके बाद 8 दिसम्बर 2006 को परमपूज्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज से दिल्ली में एलाचार्य दीक्षा ग्रहण कर एलाचार्य श्री श्रुतसागर जी मुनिराज हो गये और फिर 27 जुलाई 2014 को आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज से दिल्ली में आचार्य पद की दीक्षा ग्रहण कर आचार्य श्रुतसागर जी मुनिराज बने।


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