21 वर्ष बाद गुरु-शिष्य मिलन का अद्भुत नजारा देख, भावुक हुए श्रद्धालु


हिसार। मध्य प्रदेश के दमोह नगर में 21 वर्ष पूर्व गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज ने मुनि 108 विरंजन सागर जी महाराज को दीक्षा प्रदान की थी। इसके पश्चात दोनों मुनि अलग-अलग समाज में धर्म की प्रभावना प्रवाहित करने देश के विभिन्न हिस्सों में निकल पड़े। 21 वर्ष बाद हिसार की धरती पर 9 नवम्बर दिन गुरुवार को वो आत्मीयता के प्रस्फुटित और भावुक क्षण आया कि जिस गर्णाचार्य (गणाचार्य 108 विराग सागर महाराज) से दीक्षा ली हो, उसी गुरु गणाचार्य से इतने लबे समय बाद जिसे (मुनि 108 विरंजन सागर जी महाराज) दीक्षा दी हो, का मिलन हुआ। गुरु-शिष्य का वो भावुक क्षण नगर के बीचों-बीच स्थित पीएलए मार्केट में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ के सामने हुआ।

आत्मीयता भरे भाव से दोनों एक-दूसरे के गले मिले और मुनि विरंजन महाराज ने गुरु से आशीर्वाद दिया और उनकी वंदना की। गुरु-शिष्ट के मिलन को देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो गये। तत्पश्चात विराग सागर महाराज के साथ सभी संत पुराना गवर्नमेंट कालेज मैदान में शुरु हुए पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव को अपना सानिध्य प्रदान करने रवाना हुए। बता दें कि गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज 7 दिन पहले दिल्ली से विहार कर हिसार के लिए चले और बृहस्पतिवार प्रात: 10.00 बजे 50 संत-साध्वी के साथ हिसार नगर पहुंचे। बैंड बाजों के साथ धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गई और यहां पहुंचे सभी संतों का भव्य आगवानी की गई और उनका अभिनंदन किया गया। तत्पश्चात सभी संतों ने आहार लिया और दोपहर को शहर को रवाना हो गये। इस पूरी यात्रा में जगह-जगह श्रद्धालुओं ने संतों के पैर धोकर उनकी पूजा-अर्चना की।

गणाचार्य 108 विराग सागर जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि कठोर तप करने से इंसान भी भगवान हो जाता है किंतु हमें इतना तप तो कर ही सकते हैं कि हम भगवान नहीं कम से कम एक अच्छा इंसान तो बन जाएं। हम पूरे दिन कई सूक्ष्म जीवों की हत्या अनजाने में कर बैठते हैं और न चाहते हुए भी पाप के भागीदार बन जाते हैं। इस दौरान महाराज जी ने पंचकल्यणक महोत्सव स्थल को देख आयोजकों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।


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