मुनिश्री प्रमाण सागरजी महाराज के सानिध्य में बावनगजा में लगे भावना योग शिविर का समापन


बावनगजा। “हमें जीवन में जब कभी कोई उपलब्धि हासिल होती है तो हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव होता है। जब आंतरिक उपलब्धि होती है तो अंतरंग में एक विशेष प्रसन्नता होती है। मैं देख रहा हूं कि पिछले 2 दिनों में आप सबके चेहरे पर एक विशेष चमक और प्रसन्नता दिखाई दे रही है। आपके चेहरे को देखकर ये लगता है कि आपने जरूर कुछ हासिल किया है। यह उपलब्धि हमारे जीवन की स्थायी उपलब्धि बने”।

सिद्धक्षेत्र बावनगजा में मुनिश्री प्रमाण सागरजी महाराज ने शिविरार्थियों से यह बात कही। गुरुवार को बावनगजा में तीन दिनी भावना योग शिविर का आखिरी दिन था। शिविर में हासिल उपलब्धि को स्थायी रखने के लिए उन्होंने कहा कि इस दिशा में हमें कुछ प्रयास करना है। आज जब हम भावना योग के आखिरी चरण में प्रवेश कर रहे हैं। हमें अंत: निरीक्षण करके देखने की जरुरत है कि मेरे भीतर और कोई कमी तो शेष नहीं रह गई। पिछले दिनों हमने अपनी बहुत सारी दुर्बलताओं को समझा और जाना। उन्हें दूर करने का संकल्प भी लिया है लेकिन अब हमें अपने अंदर झांककर देखना है कि क्या कुछ शेष रह गया। यदि कुछ है, तो मुझे उसे शेष करना है। समाप्त करना है। उन्होंने कहा अपनी चेतना को पूरी तरह परिष्कृत करके उसे निखारना है। आज हमें एक अंतर यात्रा की शुरुआत की है।

इसके बाद मुनिश्री ने सभी को आंखें बंद करने के निर्देश दिए और बचपन से लेकर अब मन की बात में कथापूर्वक बताऊंगा। इससे आप अपना साक्षात्कार करेंगे और उसमें लगे कि यह बात मेरी ही है, तो संकल्पित होंगे। अपने मन की गठानों को खोलते जाना। सिर्फ एक मनोभाव के साथ कि मुझे आज स्वच्छ होना है। आज मुझे साफ होना है। अब मुझे अपने नवजीवन को शुरू करना है। जो बीत गया, सो बीत गया। जो बचा है, उसे बचा लेना है। उसे कुछ बना लेना है, जिससे हम अपने जीवन में कुछ सार्थक उपलब्धि घटित कर सके और कामयाबी के शिखर तक पहुंच सके।

बुरी आदतों को छोड़ जीवन को बनाएं उत्कृष्ट

मुनिश्री ने कहा अपनी बुरी आदतों को छोडे। अपने जीवन को उत्कृष्ट व सफल बनाएं। अंत में मुनिश्री ने सभी शिविरार्थियों को समाज व देश में, शैक्षणिक और व्यावसायिक क्षेत्र में उच्च पायदान पाने का आशीर्वाद दिया। अपने संस्कारों को जीवन में कभी न छोड़ने, न कभी दुर्व्यसन करने की शपथ दिलाई। इस दौरान बड़ी संख्या में शिविरार्थी मौजूद थे।

               — अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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