सुख दुख तो स्वयं के कर्माधीन व्यवस्था है।-मुनि श्री विशोक सागर


खनियाधाना। खनियाधाना मे पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन बडा मन्दिर चल रहे चतुर्मास गणाचार्य मुनि श्री १०८ विराग सागर महाराज जी के शिष्य ओजस्वी वक्ता श्रमण मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज एंव श्रमण मुनि श्री विघेय सागर जी महाराज का बर्षा योग चल रहा है। दुनिया मे साधूसंत अंगुलियो मे गिने जाने लायक ही है यह उद्दगार पूज्य मुनि श्री ने प्रवचन मे व्यक्त किये। मुनि श्री ने कहा कि अनुकूलताओ मे तो सभी  जीवन जी लेते है। लेकिन  प्रतिकलताओ मे समता पूर्वक जीने के मार्ग तो सिर्फ संत समाज ही जानता है। संत धर्मात्मा जानते कि  एक समय के परिणाम बिगडने से पूरे जीवन भर की तपस्या साधना व्यर्थ हो जाती है।

सुख दुख तो स्वयं के कर्माधीन व्यवस्था है। दूसरा तो मेरा कुछ भी भला बुरा नही कर सकता सभी जीवो से मैत्री भाव रखने के कारण वह निर्भय होते है। जैसे हम रावण से नफरत (धृणा) करते है रावण के कर्मो से नही जबकी नफरत (धृणा) रावण से नही उसके किये कर्मो से करना चाहिये। हमे तो बुराई से नफरत (धृणा) करनी चाहिये लेकिन बुराई तो हमारे रग रग मे समाई है। क्योंकि हम हमेशा ईट का जवाब पत्थर से देना चाहते है। अहिंसा के पुजारी तो हमारे महात्मा गांधी जी थे जो एक थप्पड़ मारने वाले के समक्ष सहजता से दूसरा गाल आगे करने वाले थे। हम भले ही आज जैन कुल में पैदा हुए है लेकिन सिद्धांत पर कितना अमल करते हैं अपने आप मैं विचार करके देखो। जैन धर्मबलम्बी भले ही आज दुनिया में संख्या में कम हो लेकिन क्वालिटी मैं सिरमौर हैं। जैन धर्म के सिद्धांतों को दुनिया लोहा मानती है। जैन धर्म दुश्मनों को क्षमा भाव धारण करने की बात करता है।जहाँ पत्थर मारने वाले को आशीर्वाद देने की प्रथा है।

नवीन त्रय वेदियो का किया शिलान्यास

खनियाधाना मंडी रोड पर स्थित संभवनाथ दिगम्बर जैन खिरकिट मन्दिर जी गणाचार्य मुनि श्री १०८ विराग सागर महाराज जी के शिष्य ओजस्वी वक्ता श्रमण मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज एंव श्रमण मुनि श्री विघेय सागर जी महाराज के सानिध्य संभवनाथ जिनालय मैं तीन बेदियो का शिलान्यास हुआ । मूल बेदी का शिलान्यास श्री बाबूलाल संजीव कुमार राजीव कुमार चौधरी परिवार, दूसरी बेदी का शिलान्यास श्री नाथूराम संतोष कुमार कठरिया परिवार, एवं तीसरी बेदी का शिलान्यास श्री हुकुम चंद्र जी पवन कुमार जी ने किया। सभी समाज का स्नेह भोज ख़िरकीट मंदिर प्रांगण में हुआ।

 

  • स्वप्निल जैन खनियाधाना

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