International Women’s Web-Conference On “The Spiritual Essence of Yoga” on the Occasion of International Yoga Day


“विश्व योग दिवस” पर “योग का आध्यात्मिक सार” विषय पर सर्वोदय विश्व भारती प्रतिष्ठान द्वारा ऑनलाइन “international Women’s Web-Conference” का भव्य और सफल आयोजन किया गया। कॉन्फ्रेंस का शुभारम्भ मंगलाचरण के रूप में  “णमोकार महामंत्र” के पाठ से किया गया। योग सम्मेलन में आमंत्रित अपने-अपने क्षेत्र की ख़्याति प्राप्त महिलाओं एवं दर्शक श्रोताओं का स्वागत करते हुए सम्मेलन संयोजिका डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव , दिल्ली ने कहा कि भारतीय संस्कृति में स्त्री को परिवार का महत्त्वपूर्ण स्तम्भ माना जाता है। अपने परिवारों में भारतीय संस्कृति, योग, अध्यात्म, साधना आदि का बीजारोपण करके उसे विशाल वृक्ष का आकार देने की सम्पूर्ण क्षमता नारी शक्ति में ही है।

आज महिलाएं देश में हों या विदेश में,कार्य के हर क्षेत्र में नए मुकाम हासिल कर रहीं हैं। यदि नारी शक्ति  योग और अध्यात्म को पूर्णत: अपना ले तो वो अपने परिवार के साथ- साथ समाज और राष्ट्र का भी कल्याण कर सकती हैं।योग और अध्यात्म जीवन का वह दर्शन है जो मनुष्य को उसकी आत्मा से जोड़ता है।मनुष्य के मानसिक शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है और इससे हमें स्वयं से साक्षात्कार करने की अनुभूति होती है। योग मनुष्य के शरीर मन और आत्मा को ऊर्जा ताकत और सौंदर्य प्रदान करता है। जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव प्रथम योगी थे उन्होंने ध्यान योग की विद्या का उपदेश दिया था ।

सर्वप्रथम सिंगापोर की योग प्रशिक्षिका खुशबू जैन ने कहा कि “हमें जीवन को सार्थक करना है तो योग और मेडिटेशन दोनों को अपनाना होगा।जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से लेकर, अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर एवं इनकी परम्परा के सभी आचार्यों ने ध्यान ,योग,साधना का संदेश समस्त विश्व को दिया।आपने योग की विधियों को प्रयोगात्मक रूप में दिखलाते हुए आपने नाड़ी शोधन प्राणायाम की विधि और महत्त्व समझाया।सिंगापोर की ही श्रीमती कश्मीरा मेहता ने अपने जीवन में योग से होने वाले फायदे बतलाते हुए कहा कि प्रारम्भिक रूप में जब योग और ध्यान का अभ्यास शुरू किया जाता है तो मन भटकता है किन्तु यदि आत्मशक्ति मज़बूत है और अपने जीवन को स्वस्थ और प्रसन्न रखना है तो सभी को योग से जुड़ना ही होगा।”जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन” ये बात कहते हुए उन्होंने खानपान की शुद्धता पर बल दिया और भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास कराते हुए दर्शकों को अभ्यास की ओर प्रेरित किया।

श्रीमती नेहा नायक जैन ने कहा कि “ध्यान और योग पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति की अनुपम देन है। “भावधारा” ध्यान के प्रयोग के बारे में बताते हुए आपने कहा कि इसका मन के भावों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है इसलिए  शरीर और मन दोनों की चिकित्सा में भावधारा का प्रयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लंदन में प्रेक्षाध्यान प्रशिक्षिका डॉ. समणी प्रतिभा प्रज्ञा जी ने आचार्य तुलसी ,आचार्य महाप्रज्ञ के “प्रेक्षाध्यान” के सभी आयामों को समझाया।आपने बताया कि चेतना को गहराई में उतरकर देखना ही प्रेक्षाध्यान है।कायोत्सर्ग, अंतर्यात्रा,श्वासप्रेक्षा,शरीरप्रेक्षा,चैतन्यकेन्द्रप्रेक्षा,लेश्याध्यान,अनुप्रेक्षा,भावना आदि ध्यान द्वारा भावात्मक, मानसिक,शारीरिक और व्यावहारिक लाभ प्राप्त होते है। संयोजिका डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव ने संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी मुनिराज द्वारा प्रवर्तित “अर्हं योग” के उद्देश्य और प्रयोगों को समझाते हुए कहा कि णमोकार महामंत्र की “पंच नमस्कार मुद्रा” के साथ “ऊँ अर्हं नम:” का उच्चारण जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।अरिहंत, सिद्ध, आचार्य ,उपाध्याय एवं साधु इन पाँच मुद्राओं एवं अर्हं योग और ध्यान के विभिन्न चरणों को अपनाकर, मनुष्य अपने जीवन को स्वस्थ रखते हुए आध्यात्म की प्राप्ति कर सकता है।आपने कहा कि शाकाहार ही उत्तम आहार है अत: विश्व में सभी को शाकाहारी भोजन करते हुए “अहिंसा” का पालन करना चाहिए।

इस अंतर्राष्ट्रीय वूमेन कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता आदर्श महिला सम्मान प्राप्त ,ब्राम्ही लिपि और विशेषज्ञ डॉ. मुन्नी जैन , वाराणसी ने की । आपने सभी विदुषी महिलाओं के विचारों की समीक्षा तथा प्रशंसा की। डॉ. मुन्नी जैन ने कहा कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने भारत की प्राचीन योग पद्धति को विश्व के धरातल पर स्थापित किया जिसके फलस्वरूप पूरा विश्व 21 जून को योग दिवस मनाते हुए लाभान्वित हो रहा है। योग और ध्यान पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि ‘मन को मंत्र’ से साधा जाता है इसलिए मंत्र को सांस में पिरो लेना चाहिए। बीजाक्षर मंत्र ऊँ किसी भी जाति , सम्प्रदाय का नहीं है वह जन-जन का मंत्र है । ऊँ को साधने से जीवन सध जाता है।आपने “रोम -रोम में ऊँ” ध्यान के महत्त्व को समझाते हुए कहा कि इस अभ्यास से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है । यदि बीमार व्यक्ति पर ऊँ मंत्र का ये प्रयोग किया जाए तो सभी बीमारियों को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की संयोजिका द्वारा किया गया। सभी ने इस सफल आयोजन की प्रशंसा की।

 


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