मंत्रों में णमोकार मंत्र सर्वोपरि है : आचार्य ज्ञानसागर


धौलपुर, राष्ट्रसंत ज्ञानसागर जी महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि हम णमोकार मंत्र की जाप करते हैं। इस मंत्र में 35 अक्षर, 58 मात्रायें और 5 पद होते हैं। यदि हम भावपूर्वक एक-एक अक्षर का ध्यान करता है तो उसके भव-भव के संचित पाप क्षय हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार पर्वतों की शोभा पत्थर से नहीं वृक्षों से होती है और वृक्ष की शोभा पत्तों से नहीं बल्कि पुष्पों/फलों से होती है। इसी तरह मंदिरों की शोभा मात्र शिखरों से नहीं बल्कि भगवान के विराजमान होने से होती है। ठीक उसी तरह जीवन की शोभा मंत्र-मंत्र , षडयंत्र से नहीं बल्कि मंत्रों से होती है।

उन्होंने आगे कहा कि जिस प्रकार पर्वतों में सुमेरू, नदियों में गंगा, धर्मो में अहिंसा धर्म, तीथों में सम्मेद शिखर सवरेपरि हैं, ठीक वैसे ही मंत्रों में णमोकार मंत्र सवरेपरि है। मंत्र में आत्मिक शक्ति जगाने की ताकत होती है और मंत्र विकारी भावों से रक्षा करते हैं। इसलिए श्रद्धा और आस्था से मंत्र का जाप करेंगे तो जीवन सुखमय, शांतिमय और खुशमय होना तय है। संघस्थ ब्र. अनीता दीदी ने बताया कि 14 जुलाई को जैन ज्ञानतीर्थ में नवनिर्मित श्री आदिनाथ की प्रतिमा विराजित की जायेगी। इस अवसर पर मंत्री, अध्यक्ष सहित बड़ी संख्या में समाज के लोग मौजूद थे।


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