हम जैसा अन्न-जल ग्रहण करेंगे, हमारा मन भी वैसा ही होगा : मुनिश्री विज्ञान सागर


हम जैसा अन्न-पानी ग्रहण करते हैं, ठीक वैसा ही हमारा तन-मन होता है। यह बात शामली नगर में चातुर्मास कर रहे संत 108 श्री विज्ञान सागर जी महाराज ने महावीर मार्ग स्थित जैन धर्मशाला में अपने प्रवचन के दौरान कही। रविवार को नगर के जैन धर्मशाला में श्री दिगम्बर जैन साधु सेवा समिति के सानिध्य में आयोजित चतुर्थ वष्रायोग के दौरान 108 श्री विज्ञान सागर जी महाराज ने कहा कि व्यक्ति के मन के अनुरूप अपनी जीवन की प्रक्रिया बदलती रहती है। उसकी सोच और आचरण भी वैसा ही हो जाता है। उसे कब किसी प्रशंसा करनी है और बुराई यह उसकी सोच पर निर्भर करता है।

जब पाप का उदय होता है तभी उसकी कठिनाई बढ़ती है। उन्होंने आगे कहा कि आलू खाना बंद करें क्योंकि यह हानिकारक है। उन्होंने कहा कि जमीन के नीचे पैदा होने वाली चीजों का रात्रि में सेवन न करें। जो व्यक्ति रात्रि में खाना खाता है, वह यह समझ ले कि वह अभक्ष का सेवन कर रहा है। जैन धर्म के नियमों को समझना चाहिए और धर्मसभा सहित मंदिरों में दर्शन हेतु जाना चाहिए। यदि संस्कार नहीं होंगे तो हम गलत राह पर जाएंगे ही जायेंगे। इसलिए अपने बड़ों का सम्मान करें। इस अवसर पर अध्यक्ष जेके जैन एडवोकेट, प्रवीन जैन, सलेक चंद्र जैन, अरविंद कुमार, विदोद जैन, जेके जैन, मुकेश जैन, अमित जैन, सुशील जैन, महेश चंद्र जैन, कमलेश जैन, प्रमिला जैन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण मौजूद थे।


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