संयम, साधना का महापर्व है पर्यूषण


कोविड-19 के चलते संयम व साधना का महापर्व पयूर्षण पर्व जैन धर्मानुलंबी घरों में ही आनलाइन पारस व जिनवाणी चैनल पर देखकर पूजन व विधान आदि धार्मिक क्रियायें घरों में रहकर ही कर रहे हैं।जैन धर्म में दसलक्षण पर्व का विशेष महत्व है। आत्मा को परमात्मा बनाने का यह एक अनूठा पर्व है।जैन दर्शन में दशलक्षण पर्व का विशेष महत्व बताया गया है।दशलक्षण महापर्व वर्ष तीन बार आते हैं।चैत्र,माघ एवं भाद्रपद मास में आते हैं। पर्यूषण पर्व जैनधर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है।यह पर्व बुरे कर्मों का नाश करके सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर हमें पर्यूषण पर्व के दिनों में आत्म साधना में लीन होकर धर्म के बताए रास्ते पर चलना चाहिए। पर्यूषण पर्व भाद्रपद शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता है। यह पर्व भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत “अहिंसा परमो धर्म:” और “जिओं और जीने दो” की राह पर चलना सिखाता है।मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है।

दसलक्षण महापर्व दस दिन तक मनाये जाने वाला वाला यह अनूठा पर्व हैं। जैनधर्म के अनुसार उत्तम क्षमा, मार्दव,आर्जव,सत्य,संयम,शौच,तप,त्याग,आकिंचन्य,ब्रह्मचर्य दस धर्म हैं। उत्तम क्षमा धर्म हमें यही सिखाता है कि हम उन लोगों से क्षमा मांगें जिनके साथ हमने बुरा व्यवहार किया हो।सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि संसार के एक इंद्रिय से पांच इंद्रिय जीवों के प्रति जिनमें जीव है।उनके प्रति भी ऐसा भाव रखते हैं।उत्तम क्षमा धर्म हमारी आत्मा को सही रास्ता दिखाता है।क्षमा धर्म को धारण करके ही व्यक्ति सम्यक दर्शन के मार्ग को प्राप्त कर सकता है। इस दिन सभी लोग एक दूसरे से बोलते हैं-सबकों क्षमा-सबसे क्षमा”।धन व दौलत ही इंसान को अहंकारी और अभिमानी बना देता है।ऐसा व्यक्ति दूसरों को छोटा और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानता है।यह सब चीजें नश्वर हैं।यह सब चीजें एक दिन आपको छोड़ देंगीं या फिर आपको एक दिन इन चीजों को छोड़ना ही पड़ेगा। हम जीवो के प्रति मैत्री भाव रखें क्योंकि सभी जीवों को जीवन जीने का अधिकार है।उत्तम मार्दव धर्म हमें अपने आपकी सही वृत्ति को समझने की सीख देता है। उत्तम मार्दव धर्म हमें परिग्रह का त्याग कर आत्म साधना में लीन होकर धर्म के मार्ग पर चलने की सीख देता है।मनुष्य को अपना सरल स्वभाव रखना चाहिए और जहां तक बने कपट का त्याग करना चाहिए। कपट के भ्रम में जीना दु:खी होने का मूल कारण है।आत्मा,ज्ञान,खुशी

असंख्य गुणों से सिंचित है उसमें इतनी शक्ति है कि केवल ज्ञान को प्राप्त कर सकें।उत्तम आर्जव धर्म हमें यही सिखाता है कि मोह, माया, बुरे कर्म सब छोड़कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। उत्तम शौच धर्म हमें यही सिखाता है कि शुद्ध मन से जितना मिला है उसी में खुश रहो।परमात्मा का हमेशा शुक्रिया मानों और अपनी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करने की राह पर चलो।उत्तम सत्य धर्म हमें यही सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है और इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष पद को प्राप्त किया जा सकता है।अपने मन आत्मा को सरल और शुद्ध बना लें तो सत्य अपने आप ही आ जाएगा। इंद्रियों पर संयम रखना ही संयम धर्म है। मन को स्थिर रखने पर ही संयम को प्राप्त किया जा सकता है।संयम को धारण करके मनुष्य मोक्ष पद को भी प्राप्त कर सकता है।उत्तम तप धर्म का मतलब सिर्फ उपवास भोजन नहीं करना सिर्फ इतना ही नहीं है।बल्कि तप का मतलब है कि इन सब क्रिया के साथ अपनी इच्छाओं को वश में रखना ऐसा तप अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करते हैं।साधना इच्छाओं की वृद्धि न करने का एकमात्र मार्ग है। तीर्थंकरों जैसी तप साधना करना इस वर्तमान समय में बडी ही मुश्किल है।हम भी ऐसी  भावना रखते हैं और पर्यूषण पर्व के दस दिनों के दौरान उपवास,एकासन करते हैं और परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करने की राह पर चलने का प्रयत्न करते हैं। त्याग शब्द से ही पता चलता है कि इसका मतलब छोड़ना है और जीवन को संतुष्ट बनाकर अपनी इच्छाओं को वश में करना है।यह न सिर्फ अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है।बल्कि बुरे कर्मों का नाश भी करता है।छोड़ने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है।क्योंकि जैन संत सिर्फ घर द्वार ही नहीं यहां तक कि अपने कपड़ों का भी त्याग कर देते हैं और संपूर्ण जीवन भर दिगंबर मुद्रा धारण करके समाधि मरण की भावना रखते हैं।उत्तम त्याग धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाकर ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग किया जा सकता है।त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही होती है।उत्तम आकिंचन्य धर्म हमें मोह का त्याग करना सिखाता है। आत्मा के भीतरी मोह जैसे गलत मान्यता,गुस्सा घमंड, कपट,लालच आदि इन सब मोह का त्याग करके ही आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है।सब मोह प्रलोभनों को छोड़कर ही परम आनंद  मोक्ष पद को प्राप्त किया जा सकता है।

उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म हमें यही सिखाता है कि उन परिग्रहों का त्याग करना जो हमारे भौतिक संपर्क से जुड़े हुए हैं।

ब्रह्मचर्य का मतलब है आत्मा में लीन रहना। ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करने पर ही व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर चल सकता है।ब्रह्मचर्य धर्म को धारण करने वाले महापुरुष निश्चित ही मोक्ष पद को प्राप्त कर सकते हैं। दसलक्षण पर्व  यही संदेश लेकर आते हैं कि धर्म के मार्ग पर चलकर संयम रूपी व्रत को धारण करके जीवन को संयम के मार्ग में आगे बढाकर मनुष्य जन्म को सफल बनायें। संयम के मार्ग पर चलकर मोक्षरूपी फल को प्राप्त करें।

 

— शिक्षक पुष्पेंद्र जैन


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