मोक्ष मार्ग में विश्राम नहीं होता : आचार्यश्री


भोपाल। राजधानी भोपाल में चातुर्मास कर रहे जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि मोक्ष मार्ग की साधना में विश्राम नहीं होता। उन्होंने कहा है कि सत्य को अर्जित करके ही कल्याण का उपक्रम चलता रहता है। आचार्यश्री शनिवार को हबीबगंज जैन मंदिर में प्रवचन दे रहे थे। स्वतंत्रता दिवस और राखी के पर्व की छुट्टियों को देखते हुए बड़ी संख्या में देश-विदेश से भक्तगणों का भोपाल पहुंचना शुरू हो गया है। शनिवार को बड़ी संख्या में लोग आचार्यश्री के दर्शन करने पहुंचे। प्रवचन के पहले आचार्यश्री संगीत के साथ पूजन की गई। अजमेर से राजेन्द्र कुमार, अजय कुमार दनगसिया परिवार की ओर से अनिमेष जैन दनगसिया ने आचार्यश्री के चरणों में श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया और अजमेर में उनके परिवार की ओर से बनाए गए जिनालय के पंचकल्याणक करने का आग्रह भी किया।

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि एक चैन और पुली के माध्यम से भारी से भारी वजन भी आसानी से ऊपर पहुंचाया जा सकता है। जिस वजनदार वस्तु को उठाने के लिए एक हजार आदमी लगते हैं उसे चैन और पुली के माध्यम से एक बच्चा भी ऊपर पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वजनदार वस्तु को जिस गति से पहुंचाया जाता है उसी गति से उसे नीचे भी उतारा जा सकता है लेकिन इसमें सावधानी यह रखना पड़ती है कि रास्ते में रोकना नहीं। यदि रुका तो जर्क लगेगा और वह चैन को तोड़कर नीचे भी आ सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि श्रमण (जैन संत)सातवें गुण स्थान में रहते हैं और उन्हें छठे गुण स्थान में भी आना पड़ता है। लेकिन छठें और सातवें गुण स्थान के बीच झूलते श्रमण को सदैव सावधानी रखनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान एक हजार वर्ष तक छठे और सातवें गुण स्थान के बीच झूले हैं, लेकिन सावधानीपूर्वक। आचार्यश्री ने कहा कि इस यात्रा पर नियंत्रण रखना हम आगम के माध्यम से सीख सकते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक नदी पर लंबा पुल है। नदी पार करना है और बीच में ट्रेन आती है तो बीच-बीच में कुछ ऐसे स्थान बनाए जाते हैं जहां खिसक कर पुल पर गुजरने वाले यात्री अपनी रक्षा कर सकते हैं। इसी प्रकार श्रमण को भी सावधानी पूर्वक छठवें और सातवें गुण स्थान के बीच यात्रा के दौरान विपरीत परिस्थिति में अपने भावों की विशुद्धि रखनी पड़ती है। यदि भावों में पतन हुआ तो सब कुछ खत्म हो जाएगा।

सोच समझकर आशीर्वाद

आचार्य श्री ने आज साफ-साफ शब्दों में कहा कि वे हर किसी को अपना आशीर्वाद नहीं देते। आशीर्वाद मांगने वाले की भावना और योग्यता को पहचानकर ही वे अपना आशीष देते हैं ताकि उसका कल्याण हो सके। उन्होंने कहा कि उनका आशीर्वाद के मूल्य का अलग महत्व है। जिन्हें उनसे असहमति है वे कहीं भी जाकर आशीर्वाद ले सकते हैं।

मनोज जी के चौके में हुए आहार

शनिवार को आचार्य विद्यासागर जी महाराज 48 घंटे बाद आहारचर्या के निकले। लालघाटी निवासी मनोज जैन बागा परिवार ने आचार्य श्री का पडग़ाहन किया और नवधा भक्ति कर उन्हें निरंतराय आहार कराए। दरअसल शुक्रवार को आचार्यश्री ने उपवास किया था, शनिवार को उनका पाडऩा हुआ उनके आहार देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग मनोज के चौके के बाहर पहुंचे थे।

 

  • रवीन्द्र जैन

Comments

comments