Home Jain News उत्तम तप निरवांछित पाले, सो नर कर्मशत्रु को टाले

उत्तम तप निरवांछित पाले, सो नर कर्मशत्रु को टाले

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उत्तम तप निरवांछित पाले, सो नर कर्मशत्रु को टाले

श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कोट ऊपर कामां पर पर्यूषण महापर्व के सातवें दिन प्रथम अभिषेक व शांतिधारा करने का सौभाग्य रिंकेश जैन को मिला। और मंगलाचरण डी के जैन मित्तल ने किया।

आचार्य विनीत सागर महाराज के सानिध्य में कोट ऊपर जैन मंदिर पर चल रहे दसलक्षण महामण्डल विधान में आचार्य श्री ने उत्तम तप की व्याख्या करते हुए बताया कि “इच्छा निरोधस्य तपं” अर्थात इच्छाओं का निरोध करना ही तप कहलाता है। आचार्य ने उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार सोना और मिट्टी को अग्नि में तपाया जाता है तब जाकर शुद्ध और खरे होते हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य अगर बारह प्रकार के तपों से अपने शरीर को तपाये तो वह भी शुद्ध और खरा बन जाता है और उसके जीवन भर के कर्म नष्ट हो जाते हैं।

सकल जैन समाज कामां के प्रवक्ता डी के जैन मित्तल ने बताया कि कामां जैन समाज वर्किंग कमेटी द्वारा आयोजित प्रतिदिन कोट ऊपर पर विधान चल रहे हैं इनमें मंगलाचरण, भजन आदि प्रस्तुति के लिए आयोजक कमेटी में से निक्की जैन, डी के जैन मित्तल को पूर्व में ही नाम लिखा दें। इस विधान में सतेंद्र प्रसाद जैन, अध्यक्ष महावीर प्रसाद जैन लहसरिया, कोषाध्यक्ष काली जैन, मंत्री कैलाश जैन, अनिल जैन पंसारी, गौरव निक्की जैन, राजेंद्र जैन सहित समाज के लोग मौजूद थे।

— डी के जैन मित्तल

 


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