सुसंस्कारित नारी संस्कारित समाज की प्रदाता-मुनि श्री विशोक सागर


खनियांधाना –  नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर जी मे विराजमान मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज एंव मुनि श्री विधेय सागर जी महाराज जी का चतुर्मास चल रहा है । मुनि श्री विशोक सागर जी ने प्रवचन श्रंखला मे कहाँ कि संस्कारित होना जरूरी है और वह संस्कार गर्भ से ही प्राप्त होते है। उदाहरणार्थ जैसे मरूदेवी पहले स्वंय संस्कारित हुई और फिर गर्भ में स्थित बालक को ऐेसे संस्कार दिये कि उसने जन्म लेकर माँ का नाम रोशन ही नही घर परिवार व राज्य एवं पूरे विश्व में उसनें नाम रोषन कर  दिया और साधना कर सिद्ध अवस्था  प्राप्त की। जिस प्रकार नारी का  ठीक चलना जरूरी होता है उसी प्रकार सुसंस्कारित नारी की परिवार में अति आवश्यकता होती है तभी  परिवार  एवं समाज सुसंस्कारित रह सकता है ।

नारी सुसंस्कारित होने का प्रथम श्रेय आदिनाथ भगवान को जाता है। जिन्होने अपनी दोंनो पुत्री, ब्रह्यी और सुन्दरी को सुसंस्कार के रूप में अंक विद्या एवं लिपि विद्या प्राप्त की थी । उसी का प्रभाव था कि दोनो ने आजीवन ब्रह्यचर्य ब्रत धारण कर आर्यिका दीक्षा लेकर भगवान के समवशरण प्रधान स्थान प्राप्त किया था उसी प्रकार हर नारी को संस्कारित होना चाहिए । जिस प्रकार नारी की षोभा जल और पहाड़ से होती है । पहाड़ की षोभा बृक्ष से  वृक्ष की षोभा  फल से होती है। उसीप्रकार परिवार की शोभा सुसंस्कारित नारी से होती है। जिस प्रकार गाडी चलाने के लिये कुषल ड्राइवर की आवश्यकता होती है। उसीप्रकार परिवार समाज रूपी गाड़ी को सुचारू रूप् से चलाने के लिये संस्कारित नारी  की अति आवष्यकता होती है।

जिसका कोई शत्रु नहीं होता है। उसकों नारी कहते है। हमें नारी की निन्दा नहीं करना चाहिए क्योकि नारी नर की खान है नारी से ही उत्पन्न होते है। भगवान महावीर , और यहाँ तक कि नारी से ही चौबीस भगवान उत्पन्न हुये है और नारी ही बालक को सौ षिक्षक की उपेक्षा एक माँ के रूप में संस्कारित करती है उसे बालक का प्रथम गुरू माना गया  है। और नारी के सुसंस्कार ही रागी व्यक्ति कों विरागी बना देते है।

नारी की अहम भूमिका बतायी है चाहे वह घर में पुत्री के रूप में या बहिन के रूप में माँ के रूप में स्त्री के रूप में किस प्रकार पिवार एवं समाज में नगर देष एवं धर्म क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाती है। नारी की भूमिका चाहे गृहस्थी में हो चाहे मुनिधर्म में हो लेकिन अति आवष्यक होता है नारी का सुसंस्कारित होना क्योकि बिना सुसंस्कार  के नारी के विना परिवार नहीं चल सकता है और भगवान के समवषरण में भी दूसरा स्थान आर्यिकायों का होता है कहा भी है यह नार्मस्तु पूजयन्ते तत्र रमन्ति देवाः अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता भी विचरण करतें है। और जहां नारी की निंदा और अपमान होता है वहां परिवार नष्ट हो जातें है।यह सब संस्कार का ही प्रभाव है।

नारी का अर्थ होता है नः अरी अर्थात जिसका कोई शत्रु न हों उसे नारी कहतें है। और दूसरी तरफ न अरी  नारी एक ही नारी है जिसने आरी का रूप् ले लिया है जो अपने गर्भ में स्थित अपने पुत्र पर आरी चलाकर मरवा रही है जिससे पुरी नारी समाज को कलंकित कर दिया है । आज जरूरत है नारी समाज कों सुसंस्कारित होने की जिससे पहले की तरह स्थान प्राप्त कर सके तभी  वह पिरिवार व समाज  को सुसंस्कार दे सकती है।

  • स्वप्निल जैन (लकी)

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