17th Kunthunath Bhagwan


सत्रहवें तीर्थंकर भगवान श्री कुंथुनाथ का जन्म हस्तिनापुर के इक्ष्वाकुवंश के राजा सूर्य की धर्मपत्नी माता श्रीदेवी के गर्भ से वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को कृत्तिका नक्षत्र में हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था और इनका चिन्ह बकरा था। इनके यक्ष का नाम गन्धर्व था और यक्षिणी का नाम बला देवी था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान श्री कुंथुनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 35 थी, जिनमें सांब स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
वैशाख कृष्णपक्ष पंचमी को भगवान श्री कंठुनाथ जी ने हस्तिनापुर में दीक्षा ग्रहण की थी और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद इन्होंने खीर से प्रथम पारणा किया था। दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 16 वर्ष तक कठोर तप करने के बाद भगवान श्री कंठुनाथ जी को चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीया को हस्तिनापुर में ही तिलक वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
सत्य और अहिंसा के साथ कई वर्षों तक साधक जीवन बिताने के बाद वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी को सम्मेद शिखर पर भगवान श्री कंठुनाथ जी ने निर्वाण को प्राप्त किया।

 

Heaven Sarvarthasiddha
Birthplace Gajapura
Diksha Place Samed Shikharji
Father’s Name Suraraja
Mother’s Name Srirani
Complexion golden
Symbol goat
Height 35 dhanusha
Age 95,000 common years
Tree Diksha or Vat Vriksh Bhilaka
Attendant spirits/ Yaksha Gandharva
Yakshini Bala; or Vijaya
First Arya Samba
First Aryika Damini

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