Home Jain Grantha Jinvani परमर्षि स्वस्ति पाठ – Parmarshi Swasti Paath

परमर्षि स्वस्ति पाठ – Parmarshi Swasti Paath

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नित्याप्रकंपाद्भुत-केवलौघाः, स्फुरन्मनः पर्यय-शुद्धबोधाः |
दिव्यावधिज्ञान-बलप्रबोधाः, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

अविनाशी, अचल, अद्भुत केवल ज्ञान, दैदीप्यमान मनःपर्यय ज्ञान,
और दिव्य अवधि ज्ञान ऋद्धियों के धारी परम ऋषि हमारा मंगल करें |1|

कोष्ठस्थ-धान्योपममेकबीजं, संभिन्न-संश्रोतृ-पदानुसारि |
चतुर्विधं बुद्धिबलं दधानाः, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

कोष्ठस्थ धान्योपम, एक बीज, संभिन्न-संश्रोतृत्व और पदानुसारिणी
इन चार प्रकार की बुद्धि ऋद्धियों के धारी परमेष्ठीगण हमारा मंगल करें |2|

संस्पर्शनं संश्रवणं च दूरादास्वादन-घ्राण-विलोकनानि |
दिव्यान् मतिज्ञान-बलाद्वहंतः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

दिव्य मति ज्ञान के बल से दूर से ही स्पर्शन श्रवण, आस्वादन, घ्राण
और अवलोकन रुप पाँचों इन्द्रयों के विषयों को जान सकने की
ऋद्धियों के धारण करने वाले परम ऋषिगण हमारा मंगल करें |3|

प्रज्ञा-प्रधानाः श्रमणाः समृद्धाः, प्रत्येकबुद्धाः दशसर्वपूर्वैं: |
प्रवादिनोऽष्टांग-निमित्त-विज्ञाः, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

प्रज्ञा-श्रमण, प्रत्येकबुद्ध, अभिन्न दशपूर्वी, चतुर्दशपूर्वी, प्रवादी,
अष्टांग महानिमित्त ज्ञाता परम ऋषि गण हमारा कल्याण करें |4|

नौ चारण ऋद्धियाँ
जंघा-वह्रि-श्रेणि-फलांबु-तंतु-प्रसून-बीजांकुर-चारणाह्वाः |
नभोऽगंण-स्वैर-विहारिणश्च स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

जंघा, वह्रि (अग्नि शिखा), श्रेणी, फल, जल, तन्तु, पुष्प,
बीज-अंकुर तथा आकाश में जीव हिंसा-विमुक्त विहार करने
वाले परम ऋषिगण हमारा मंगल करें |5|

तीन बल ऋद्धियाँ एवं ग्यारह विक्रिया ऋद्धियाँ
अणिम्नि दक्षाः कुशलाः महिम्नि,लघिम्नि शक्ताः कृतिनो गरिम्णि |
मनो-वपुर्वाग्बलिनश्च नित्यं, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, मनबल, वचनबल, कायबल
ऋद्धियों के अखण्ड धारक परम ऋषिगण हमारा मंगल करें |6|

सकामरुपित्व-वशित्वमैश्यं, प्राकाम्यमन्तर्द्धिमथाप्तिमाप्ताः |
तथाऽप्रतीघातगुणप्रधानाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

कामरुपित्वः, वशित्व, ईशित्व, प्राकाम्य, अन्तर्धान, आप्ति
तथा अप्रतिघात ऋद्धियों से सम्पन्न परम ऋषिगण हमारा मंगल करें |7|

सात तप ऋद्धियाँ
दीप्तं च तप्तं च तथा महोग्रं, घोरं तपो घोर पराक्रमस्थाः |
ब्रह्मापरं घोर गुणाश्चरन्तः, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

दीप्त, तप्त, महाउग्र, घोर, घोर पराक्रमस्थ, परमघोर एवं घोर
ब्रह्मचर्य इस सात तप ऋद्धियों के धारी मुनिराज हमारा मंगल करें |8|

दस औषधि ऋद्धियाँ
आमर्ष-सर्वौषधयस्तथाशीर्विषाविषा दृष्टिविषाविषाश्च |
स-खिल्ल-विड्ज्जल-मलौषधीशाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

आमर्षौषधि, सर्वौषधि, आशीर्विषौषधि, आशीअर्विषौषधि, दृष्टिविषौ-षधि,
दृष्टिअविषौषधि, (खिल्ल) क्ष्वलौषधि, विडौषधि, जलौषधि और
मलौषधि ऋद्धियों के धारी परम ऋषि हमारा मंगल करें |9|

चार रस ऋद्धियाँ एवं दो अक्षीण ऋद्धियाँ
क्षीरं स्रवंतोऽत्र घृतं स्रवंतः, मधु स्रवंतोऽप्यमृतं स्रवंतः |
अक्षीणसंवास-महानसाश्च स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ||

क्षीरस्रावी, घृतस्रावी, अमृतस्रावी, तथा अक्षीण-संवास
और अक्षीण-महानस ऋद्धि धारी परम ऋषिगण हमारा मंगल करें |10|


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