Rajgrahi (Rajgir), Bihar


प्रकृति की सुरम्य वादियों में में अवस्थित राजगृह जी सिद्ध क्षेत्र प्राचीन काल से ही जैन तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र रहा है । प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह जी भले ही अपना राजनैतिक वैभव खो चुका है लेकिन इसका धार्मिक और पुरातात्विक महत्व आज भी पुरे वैभव से विद्यमान है । यहाँ हिन्दू ही नही वरन जैन, बौद्ध, सिख एवं मुस्लिम सभी धर्मो के लिए कुछ न कुछ धार्मिक महत्व से जुड़ा हुआ है । जैन धर्म की बात करे तो यहाँ बीसवें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ के गर्भ, जन्म,दीक्षा और केवलज्ञान से सुशोभित राजगृह नगरी चौबीसवें एवं अन्तिम तीर्थंकर वर्त्तमान शासननायक, अहिंसावतार भगवानमहावीर की प्रथम देशना स्थली भी है । यह भगवान वासुपूज्य को छोड़कर शेष 23 तीर्थंकरों की समवसरण स्थली भी है । यह सिद्ध क्षेत्र तथा निर्वाण क्षेत्र भी है । यहाँ के पंच पहाडो़ से केवली जीवन्धर स्वामी सहित अनेक मुनियों ने मुक्ति प्राप्त की है । आचार्य पूज्य पाद् ने निर्वाण भक्ति में इस संबंध में स्पष्ट उल्लेख किया है । जो इस प्रकार है –      

द्रोणीमती प्रवलकुण्डलमेढ्के च , वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे ।
ऋष्यद्रिके च विपुलाद्रिवलाहके च , विन्ध्ये च पोदानपुरे वृषदिपके च ।।19।।
सह्याचले च हिमवत्यपी सुप्रतिष्ठे , दण्डात्मके गजपथे पृथुसारयष्ठौ ।
ये साधवो हममलाः सुगतिं प्रयाताः स्थानानि तानि जगती प्रथितान्यभूवन् ।।30।।  

ये सब निर्वाण भूमि के नाम है जहां से क्रममल नष्ट करके साधुओं ने मुक्ति प्राप्त की है । इन निर्वाण भुमियों में राजगृह के पाँच पर्वतों में वैभारगिरि, ऋषिगिरि, विपुलगिरि, और बलाहक भी गिने गये है । पाँच पर्वतों के नामों में मत – वैविध्य रहा है ।         

कार्यालय मन्दिर :- इस मन्दिर में मुलनायक भगवान महावीर की श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है । वेदी में सोने का काम कराया गया है जो अलौकिक छँटा प्रदान करता है ।इसके अतिरिक्त 10 धातु की प्रतिमा एवं 2 धातु के मानस्तंभ है । गर्भ गृह की बाहरी दिवाल के आले में बायीं ओर पद्मावती माता की पाषाण की मूर्ति है । इसके शिरोभाग पर पार्श्वनाथ विराजमान है एवं इसके दायीं ओर क्षेत्रपाल जी स्थित है । बायीं ओर की अलग वेदी में भगवान पार्श्वनाथ एवं अन्य प्रतिमायें अवस्थित है । दाहिनी ओर नन्दीश्वर वेदी का निर्माण हुआ है । मन्दिर शिखरबंद्ध है एवं आकर्षक प्रवेशद्वार इसकी शोभा द्विगुणित करते है । इस मन्दिर का निर्वाण गिरिडीह निवासी सेठ हजारीमल किशोरीलाल ने कराया था और प्रतिष्ठा वि०सं० 2450 में हुयी थी ।

लाल मन्दिर  :- कार्यालय मन्दिर के समीप सड़क के दूसरी ओर प्रसिद्ध लाल मन्दिर है, जो राजस्थानी चित्रकला के लिए मशहुर है । इसका निर्माण दिल्ली निवासी लाला धर्मदास न्यादरमल ने करवाया तथा वीर सं० 2451 में इसकी प्रतिष्ठा करायी थी । इस मन्दिर में 7 वेदियाँ है । इसमें मुलवेदी 1008 भगवान मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा है । इस प्रतिमा के अतिरिक्त इस वेदी में 7 पाषाण प्रतिमा और है इसमें 7 श्वेत वर्ण, 2 मूंगा वर्ण तथा एक श्याम वर्ण की प्रतिमा है । यह वेदी बड़ी ही भव्य है जहाँ आकर्षक मंडप स्थापत्य कला का नमूना पेश करते है वहीं इसके ऊपर सोने की चित्रकारी, राजस्थानी चित्रकला का बेजोड़ उदाहरण है । लघु शिखर और दीवालों पर भी चित्रकारी की गयी है, जो कला प्रमियों को वरवश ही आपनी ओर आकर्षित करती है ।

– बायीं ओर की प्रथम वेदी में मुख्य प्रतिमा पद्मासन में स्थित भगवान महावीरकीप्रतिमा है जो श्वेत पाषाण से निर्मित है ।

– दूसरी वेदी में मुख्य प्रतिमा भगवान पुष्पदंत की है जो पद्मासन में है और श्वेत पाषाणसे निर्मित है ।

-तीसरी मूलवेदी की दायीं और चौथी वेदी में भगवान चन्द्रप्रभ की श्वेत पाषाण से निर्मित पद्मासन प्रतिमा सुशोभित है ।

– पांचवी वेदी में कृष्ण पाषाण (काला)से निर्मित भगवान नेमिनाथ पद्मासन मेंविराजमान है ।

गर्भगृह मंडप से वापस लौटने पर बायीं ओर के बरामदे में कुछ प्राचीन मुर्तियाँ व्यवस्थित ढंग से रखी गयी है ।इसमें कुछ मुर्तियाँ व्यवहारगिरि पर्वत पर उत्खनन से प्राप्त प्राचीन जैन मन्दिर से लायी गयी है । बायीं ओर भगवान महावीर की चतुर्मुखी प्रतिमा विराजित है एवं मन्दिर के बहरी बरामदे में दायीं ओर जो वेदी बनी है उसमे 13 पाषाण और 19 धातु की प्रतिमाएँ विराजमान है एवं 2 पीतल के मानस्तंभ बने हुए है ।

सम्पर्क सूत्र :-श्री कमल जैनप्रबंधक”09661588241,    

कमल मन्दिर :-लाल मन्दिर परिसर में ही सन् 2003 में पूज्य आर्यिका ज्ञानमती माताजी के मंगल सानिध्य कमल मन्दिर दिल्ली निवासी कमल कुमार जी जैन के द्वारा कराया गया । इस मन्दिर में काले पाषाण से निर्मितमुनिसुव्रतनाथ की खड्गासन में स्थित 14 फीट की मनमोहक प्रतिमा विराजित है जो दूर से ही श्रद्धालुओं का ध्यान आकृष्ट करती है ।

गर्भगृह मन्दिर :- सन् 2014 में बिहार स्टेट दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमिटी के मानद् मंत्री श्री अजय कुमार जी जैन के मार्ग दर्शन में मुनिसुव्रतनाथ गर्भगृह मन्दिर का निर्माण हुआ । इस मन्दिर में मुनिसुव्रतनाथ की चारों कल्याणक की चरण पादुका विराजित की गयी है एवं पालने में मुनिसुव्रतनाथ स्वामी सुशोभित है । मन्दिर की दिवालों में तीन अति प्राचीन प्रतिमाएँ भी विराजित की गयी है । भूतल में स्थित यह मन्दिर ध्यान साधना के लिए सर्वथा उपयुक्त है ।

आचार्य महावीर कृति दिगम्बर जैन सरस्वती भवन:- इस भवन का निर्माण आचार्य विमल सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में सन् 1972 को सम्पन्न हुआ था । नीचे एक बड़े हॉल में आचार्य महावीर कृति जी की पद्मासन प्रतिमा विराजित है । ऊपर के कमरों में एक विशाल पुस्तकालय है जिसमे जैन धर्म सम्बंधित हज़ारों हस्तलिखित एवं प्रकाशित पुस्तकें संग्रहित है । इसके अतिरिक्त जैन सिद्धांत ‘आरा’ के सौजन्य से जैन चित्रकला एवं हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ की प्रदर्शनी आयोजित है । कुछ प्राचीन खण्डित प्रतिमाएँ एवं अन्य पदार्थ जो उत्खनन से प्राप्त हुये थे । यहाँ संग्रहित है । ऊपरी हिस्से में वागदेवी की प्रतिमा भी स्थापित की गयी है ।

सम्पर्क सूत्र :-  डॉ० विरेन्द्र सिंह  -09097888447

आवसीय सुविधाएँ :- कार्यालय मन्दिर के समीप राजगृह जी दिगम्बर जैन कार्यालय है जहाँ तीर्थ यात्रियों को ठहरने हेतु कमरा उपलब्ध कराया जाता है । यहाँ एयर कंडीशन कमरे, अटैच्य कमरे, कुलरयुक्त कमरे, कमोडयुक्त आधुनिक शैली में बने कमरे पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है । यात्रियों की सुविधा के लिए गर्मपानी, ठण्डा पानी और अवसरानुकुल उपलब्ध है । यहाँ त्यागीवृति एवं मुनियों के ठहराव के लिए भी अलग से सादे कमरे एवं त्यागीवृति भवन का निर्माण किया गया है ।                              

सम्पर्क सूत्र :- श्री विजय जैन  –09386745881,श्री सुनील जैन  –09334008611, श्री मुकेश जैन   –09334770317, श्री रवि कुमार जैन 09386461769,

भोजनशाला :-यहाँ आने वाले यात्रियों के सुविधा के लिए जैन भोजनशाला की व्यवस्था है जहाँ ऑर्डर देने पर रास्ते के लिए नाश्ते एवं भोजन की पैकिंग सुविधा भी उपलव्ध करायी जाती है ।

सम्पर्क सूत्र :- श्री संजय जैन –09709399990                                              

यात्री सुविधा केन्द्र :-यहाँ यात्रियों की सुविधा के लिए यात्री सुविधा केन्द्र उपलब्ध है जहाँ यात्रियों को अतिरिक्त गद्दे, तकिया, कम्बल, बर्त्तन-वासन एवं गैस-चूल्हे उपलब्ध करायी जाती है ।

सम्पर्क सूत्र :-  श्री मति प्रेमलता जैन   -08936055719,    

भगवान महावीर उद्यान:-तीर्थ यात्रियों के सुविधा के लिए विपुलाचल (प्रथम पहाड़ी) के तलहटी में भगवान महावीर उद्यान कमिटी के द्वारा बनवाया गया है इसमें एक मनमोहक मानस्तंभ बना हुआ है, जिसके शिखर पर भगवान महावीर की चौमुखी प्रतिमा विराजित है । जोज्ञानियों के मान को भी विचलित करने वाली है । उद्यान मनमोहक तरीके से सजाया गया है । तीर्थ यात्री इसका प्रयोग पहाड़ जाने और वापस लौटने पर विश्राम के लिए करते है ।   

आनन्दा बीबी दिगम्बर जैन सनातन धर्मशाला :- इस धर्मशाला में भी अटैच्य कमरे उपलब्ध है जो जैन – अजैन यात्रियों एवं शादी-ब्याह के लिए भी दिया जाता है । इस परिसर में सुन्दर पार्क बना हुआ है। इस संस्था की देख-रेख भी बिहार स्टेट दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमिटी द्वारा होती है ।

सम्पर्क सूत्र :-  श्री आशीष जैन “प्रबंधक”  -09939413037,

भगवान महावीर कंप्यूटर सेन्टर :-आनन्दा बीबी दिगम्बर जैन धर्मशाला, राजगीर के प्रांगण में श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कमिटी के अधिनस्त यह कंप्यूटर सेन्टर संचालित है, इसमें सभी वर्ग के छात्र-छात्राएँ कंप्यूटर की शिक्षा प्राप्त करते है ।

सम्पर्क सूत्र :-  श्री राजशेखर जी   -08084499910,   

पहला पहाड़ (विपुलाचल):-इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए 550 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । विपुलाचल पर भगवान महावीर का सर्वप्रथम उपदेश हुआ था । भगवान का प्रथम समवसरण स्थली पर एक विशाल प्रथम देशना स्मारक का निर्माण हुआ है । जो भव्य एवं काफी आकर्षक है । सबसे ऊपर भगवान महावीर की चतुर्मुखी स्लेटी रंग की विशाल पद्मासन प्रतिमा विराजित है । स्मारक के निचले हिस्से में चित्रकला प्रदर्शनी हैं । स्मारक के अतिरिक्त विपुलाचल पर 4 दिगम्बर मन्दिर भी है । रास्ते में एक टेकरी मिलती है जिसमे भगवान महावीर के चरण विराजमान है ।

दुसरा पहाड़ (रत्नागिरि):-यह दुसरा पर्वत पहले पर्वत से 2 मील की दूरी पर है । जिसमें 1 (एक) मील की उतराई है और 1 मील की चढ़ाई है । निचे से जाने के लिए 1292 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । रत्नागिरी भगवान मुनिसुव्रत नाथ स्वामी की तप एवं ज्ञान स्थली है । यहाँ तीन दिगम्बर जैन मन्दिर है । यहाँ बाबु धर्म कुमार जी के नाम पर ब्रह्मचारिणी पंडिता चंदाबाई जी ‘आरा’ द्वारा निर्मित शिखरबंद मन्दिर है । जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् – 1936 में हुयी थी । इसमें भगवान मुनिसुव्रत नाथ जी की 4 फुट की कृष्ण वर्ण (काला) पद्मासन प्रतिमा स्थापित है ।

तीसरा पहाड़ (उदयगिरि):-दुसरे पर्वत (रत्नागिरि) से उतरकर 2 मील आगे उदयगिरि पर्वत मिलता है । यहाँ चढ़ाई प्रायः 1 मील की है । जिसके लिए 752 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । ऊपर एक मन्दिर है जिसमें भगवान महावीर की एक खड्गासन प्रतिमा विराजित है जिसका वर्ण हल्का वादामी ओर अवगाहना 6 फुट है । इस मन्दिर का निर्माण श्री दुर्गा प्रसाद सरावगी ‘कलकत्ता’ निवासी ने वीर संवत् 2489 में कराया एवं मूर्ति प्रतिष्ठा करायी । नीचे उतरने पर एक जलपान गृह समाज की ओर से बनाया हुआ है जहाँ यात्री विश्राम एवं जलपान दिगम्बर जैन कमिटी की ओर से निःशुल्क करने की व्यवस्था करायी गयी है ।

चौथा पहाड़ (स्वर्णगिरि):-इस स्वर्णगिरि पर्वतकरोड़ो मुनियों की निर्वाण भूमि है । जिसमें 1064 सीढ़ियाँ तथा 2 (दो) दिगम्बर जैन मन्दिर है । इस पर्वत पर जानेवाले दर्शनार्थियों को सूचित किया जाता है कि स्वर्णगिरि पर्वत मन्दिर दर्शन हेतु स्थानीय थाना एवं क्षेत्र कार्यालय को लिखित सुचना दिये बगैर पर्वत पर यात्रा न करें । पर्वत पर जाने के लिए सुबह 6 बजे  प्रस्थान करे । सुरक्षाबल के साथ ही जाये । यहाँ मुख्य मन्दिर में भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा स्थापित है । बायीं ओर भगवान कुंथुनाथ और दायीं ओर भगवान अरहनाथ की प्रतिमा स्थापित है । दुसरे मन्दिर में आदिनाथ की प्रतिमा स्थापित है एवं तीसरे में भगवान शांतिनाथ स्वामी के चरण चिन्ह स्थापित है । सन् 2009 में उपाध्याय निर्भय सागर जी महाराज के सानिध्य में मूल मन्दिर में चरण चिन्ह की जगह मूर्ति स्थापित करायी गयी थी ।

पाँचवां पहाड़ (वैभारगिरि):-यह पर्वत भगवान वासुपूज्य स्वामी को छोड़कर शेष 23 तीर्थंकरों के समवसरण स्थली है । यहाँ एक दिगम्बर जैन मन्दिर में भगवान महावीर की 4 फुट अवगाहना वाली श्वेत पद्मासन मनोग मूर्ति है । इसकी प्रतिष्ठा वीर संवत्  2489 में भागलपुर के श्री हरनारायण आत्मज वीरचन्द्र भार्या पुष्पादेवी ने करायी थी । यहाँ प्राचीन ध्वस्त तीन चौबीसी मन्दिर भी है । श्वेताम्बर मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ प्राचीन मगध साम्राज्य के शासक जरासंध द्वारा पूजित भगवान महादेव का एक प्राचीन मन्दिर भी अवस्थित है ।    

नोट:- पर्वत तक जाने के लिए डोली एवं टाँगें की भी व्यवस्था है ।जिसका रेट कार्यालय से आप प्राप्त कर सकते है ।

सम्पर्क सूत्र :-  श्री संजीत जैन  “प्रबंधक पंचपहाड़ी”  –09334770321,

  • वीरायतन :-उपाध्याय अमर मुनि जी द्वारा स्थापित जनसेवा केन्द्र एवं जैन तीर्थंकर की चित्रमय प्रदर्शनी ।
  • पंडू पोखर :महाराज पाण्डू की विशाल मुर्ति, नौका विहार एवं आने वाले सैलानियों के लिए सुन्दर पार्क ।
  • घोड़ा कटोरा :मनमोहक सुन्दर झील का नजारा एवं आने वाले सैलानियों के लिए सुन्दर पार्क ।
  • श्री जैन श्वेताम्बर मन्दिर :-आकर्षक नवलखा जैन मन्दिर ।
  • विश्वशांति स्तूप :-बौद्ध धर्मावलम्बियों के द्वारा निर्मित भव्य स्तूप ।
  • आकाशीय रज्जूमार्ग :-विश्वशांति स्तूप पर जाने के लिए झुला मार्ग बना हुआ है ।
  • गृद्धकूट पर्वत :-भगवान बुद्ध की तप स्थली ।
  • वेणुवन :-भगवान बुद्ध की तप स्थली, बांस के पेड़, मनोरम पार्क ।
  • जापानी मन्दिर :-भगवान बुद्ध की अति भव्य बौद्ध मन्दिर ।
  • गर्म पानी के झरने :-पहले एवं पाँचवे पर्वत की तलहटी में धार्मिक महत्त्व के स्वास्थ्यवर्धक गर्म जल के प्राकृतिक झरने एवं कुण्ड ।
  • स्वर्ण भण्डार :-मगध सम्राट श्रेणिक का खजाना, यहाँ जैन तीर्थंकर के भित्ति चित्र दर्शनीय है ।
  • मनियार मठ :-मगध सम्राज्ञी रानी चेलना का कूप (स्नानागार) ।
  • विम्बिसार का जेल :-यहाँ मगध सम्राट विम्बिसार को उनके पुत्र ने कैद करके रखा था ।
  • जरादेवी मन्दिर :-महाराज जरासंध की जीवनदायनी चमत्कारी जरादेवी का मन्दिर ।

अन्य क्षेत्रों से इस क्षेत्र की दुरी :- 

सड़क मार्ग:-यह सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर से 15 कि०मी०, गया से `65कि०मी०, पावापुरी से 40 कि०मी०, गुणावां से 27कि०मी०,बिहारशरीफ से 24कि०मी०, पटना से 110 कि०मी० तथा मंदारगिर से इसकी दुरी 282  कि०मी० है।

रेल मार्ग:- राजगृह जैन धर्मधाला से राजगृह स्टेशन की दुरी 2  कि०मी०, पटना से राजगृह स्टेशन की दुरी 110 कि०मी० है ।

हवाई सेवा :-जयप्रकाश नारायण एयरपोर्ट ‘पटना’ 125 कि०मी०, तथा गया एयरपोर्ट ‘गया’ 90 कि०मी० की दुरी पर स्थित है ।

 

राजगीर पिछले कुछ वर्षों से जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख पवित्र स्थान है। यह पंच पहाड़ी के रूप में भी प्रसिद्ध है। इन मंदिरों से ही कई तपस्वी संतों ने गहन ध्यान और तपस्या के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया था। जैन धर्म के महावीर संस्थापक भी मंदिरों में कई बार आते थे। राजगीर पहाड़ी में और उसके आसपास कुल 26 मन्दिर हैं, जहां ट्रैकिंग द्वारा पहुंचा जा सकता है। रोमांच प्रेमियों के लिए रोमांचक होने के साथ-साथ इस जगह का धार्मिक महत्‍व भी है।

Rajgir is a center of Jainism and Jain temples. Here one can see the remains of the fortified walls of the fortifications, stone walls of new Rajgir, stupas(remains), caves, monasteries, religious shrines and especially the Maniar Math and the Sonbhandar caves. The other places a student of ancient Indian History, Jainism, Buddhism and archaeology would like to see are the excavations, antiqities, terracottas, cemetery, Karanda tank, Pippala stone house and cave Saptaparni, ancient jain temple with images of Jain tirthankaras Rishabhadeva and others.
The kings such as Raja Shrenik and Raja Ajatshatru (Kunik) etc. who have been mentioned in Jain scriptures with great veneration, were as a matter of fact, the rulers of this very district. Raja Shrenik is considered to be one of the principal disciples of Lord Mahavir. Apart from the famous Jain pilgrimage situated on the hills, a renowned Buddhist Stupa is located. There is also a  hot-water spring called ‘Brahm Kund.

How to reach:

Road – Busses and Taxies are available from Patna, Gaya, Nalanda, Bihar Shareef.
Train – Rajgir is the last station on Babhtyarpur – Rajgir line, one Km. ahead from Teerth Kshetra.
Air – Patna -100 KmsOne may come from Gaya or Patna by train to Navada, Hisua, or Biharsharif on National Highway No. 31 and then by road to Rajgiri.

Nearby Places:

BiharSharif-22km,

Gaya-65km,

Patana-100km.

 


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