प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र ने यहां पाया था मोक्ष


कहा जाता है कि बाहुबलि ने अपने बड़े भाई भरत के साथ हुए घोर संघर्ष के बाद जीता हुआ राज्य उसी को लौटा दिया था। बाहुबलि को आज भी जैन धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

बेंगलूरु। कर्नाटक के मैसूर शहर में स्थित श्रवणबेलगोला वह पवित्र स्थान है जहां प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली ने मोक्ष प्राप्त किया था। मैसूर शहर से 84 किमी दूर स्थित श्रवणबेलगोला में मोक्ष प्राप्त करने वाले पहले तीर्थंकर हैं।

यहां श्रवणबेलगोला नामक कुंड पहाड़ी की तराई में स्थित है। यहां बारह वर्ष में एक बार महामस्तकाभिषेक होता है जिसमें बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालुओं समेत अन्य लोग शामिल होते हैं। यहां तक पहुंचने के रास्ते में कई जैन मंदिरों को भी देखा जा सकता है।

जैन संस्कृति का अनूठा केन्द्र

चन्द्रबेत और इन्द्रबेत नामक पहाड़ियों के बीच स्थित श्रवणबेलगोला प्राचीन काल में जैन धर्म एवं संस्कृति का महान केन्द्र था।

जैन अनुश्रुति के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का परित्याग कर अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किए। यहां के गंग शासक रचमल्ल के शासनकाल में चामुण्डराय नामक मंत्री ने लगभग 983 ई. में बाहुबलि (गोमट) की विशालकाय जैन मूर्ति का निर्माण करवाया था।

यह प्रतिमा विद्यागिरी नामक पहाड़ी से भी दिखाई देती है। बाहुबलि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र माने जाते हैं। कहा जाता है कि बाहुबलि ने अपने बड़े भाई भरत के साथ हुए घोर संघर्ष के बाद जीता हुआ राज्य उसी को लौटा दिया था। बाहुबलि को आज भी जैन धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

अब भी बिखरे हैं प्राचीन अवशेष

श्रवणबेलगोला की चन्द्रबेत और इन्द्रबेत दोनों ही पहाडिय़ों पर प्राचीन ऐतिहासिक अवशेष बिखरे पड़े हैं। बड़ी पहाड़ी इन्द्रगिरि पर ही गोमतेश्वर की मूर्ति स्थित है। यह प्रतिमा मध्ययुगीय मूर्तिकला का उदाहरण है।

बेलगोल कन्नड़ भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है धवल सरोवर। यह पहाड़ी 470 फुट ऊंची है। पहाड़ी के नीचे कल्याणी नामक झील है, जिसे धवलसरोवर भी कहते हैं। फर्ग्यूसन के अनुसार मिस्र देश को छोड़कर संसार में अन्यत्र इस प्रकार की विशाल मूर्ति नहीं बनाई गई है।

अद्भुत है गोमतेश्वर की 57 फुट ऊंची प्रतिमा

श्रवणबेलगोला की एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर स्थापित गोमतेश्वर की प्रतिमा अपने आप में अद्भुत है। यह प्रतिमा 56 फुट से भी अधिक ऊंची है। एक पत्थर को तराश कर बनाई गई इस प्रतिमा में शक्ति, साधुत्व, बल और औदार्य भाव सहज ही नजर आ जाता है। यही कारण है कि एेसी प्रतिमा दुनिया में दूसरी नहीं है।

 

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