छठे तीर्थंकर हैं पद्मप्रभ। भगवान पद्मप्रभ का जन्म कौशाम्बी नगर के इक्ष्वाकु वंश में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष द्वादशी को चित्रा नक्षत्र में हुआ था। इनके माता पिता बनने का सौभाग्य राजा धरणराज और सुसीमा देवी को प्राप्त हुआ। प्रभु पद्मप्रभ के शरीर का वर्ण लाल और चिह्न कमल था। पद्म लक्षण से युक्त होने के कारण प्रभु का नाम ‘पद्मप्रभ’ रखा गया।
एक राजवंशी परिवार में जन्में पद्मप्रभ जी ने तीर्थंकर बनने से पहले वैवाहिक जीवन और एक राजा के दायित्व का जिम्मेदारी से निर्वाह किया। समय आने पर अपने पुत्र को राजपद प्रदान करके उन्होंने कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के पावन दिन दीक्षा प्राप्त की।
छह माह की तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान व केवलदर्शन की प्राप्ति हुई। उन्होंने ही चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करके प्रभु ने संसार के लिए कल्याण का द्वार खोल दिये। जीवन के अन्त में मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी के दिन सम्मेद शिखर पर प्रभु ने निर्वाण पद प्राप्त किया।
Heaven | Uvarimagraiveka |
Birthplace | Kausambi |
Diksha Place | Samed Shikharji |
Father’s Name | Sridhara |
Mother’s Name | Susima |
Complexion | red |
Symbol | lotus bud |
Height | 250 dhanusha |
Age | 3,000,000 purva |
Tree Diksha or Vat Vriksh | Chhatra |
Attendant spirits/ Yaksha | Manovega or Manogupti |
Yakshini | Kusuma and Syama |
First Arya | Pradyotana |
First Aryika | Rati |