बाइसवें तीर्थंकर भगवान श्री नेमिनाथ जी का जन्म सौरीपुर द्वारका के हरिवंश कुल में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को चित्रा नक्षत्र में हुआ था. इनके माता का नाम माता शिवा देवी था और पिता का नाम राजा समुद्रविजय था. इनके शरीर का रंग श्याम वर्ण था जबकि चिन्ह शंख था. इनके यक्ष का नाम गोमेध और यक्षिणी का नाम अम्बिका देवी था. जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान श्री नेमिनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें वरदत्त स्वामी इनके प्रथम गणधर थे. इनके प्रथम आर्य का नाम यक्षदिन्ना था. भगवान श्री नेमिनाथ ने सौरीपुर में श्रावण शुक्ला पक्ष षष्ठी को दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था. भगवान श्री नेमिनाथ जी ने दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 54 दिनों तक कठोर तप करने के बाद गिरनार पर्वत पर मेषश्रृंग वृक्ष के नीचे आसोज अमावस्या को कैवल्यज्ञान को प्राप्त किया था. कथानुसार भगवान नेमिनाथ जब राजा उग्रसेन की पुत्री राजुलमती से विवाह करने पहुंचे तो वहां उन्होंने उन पशुओं को देखा जो कि बारातियों के भोजन हेतु मारे जाने वाले थे. यह देखकर उनका हृदय करूणा से व्याकुल हो उठा और उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया. तभी वे विवाह का विचार छोड़कर तपस्या को चले गए थे.
700 साल तक साधक जीवन जीने के बाद आषाढ़ शुक्ल अष्टमी को भगवान श्री नेमिनाथ जी ने एक हज़ार साधुओं के साथ गिरनार पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त किया था.
Heaven | Aparajita |
Birthplace | Ujjain |
Diksha Place | Girnarji |
Father’s Name | Samudra vijaya |
Mother’s Name | Shiva devi |
Complexion | black |
Symbol | conch |
Height | 10 dhanusha |
Age | 1000 common years |
Tree Diksha or Vat Vriksh | Vetasa |
Attendant spirits/ Yaksha | Gomedha or Sarvahna |
Yakshini | Ambika or Kushmandini |
First Arya | Varadatta |
First Aryika | Yakshadinna |