Home Jain News दसलक्षण पर्व से पूर्व हुआ अद्भुत चमत्कार: जंगल से लौटते चरवाहे को मिला चमकता पत्थर, जमीन से निकली प्राचीन जैन प्रतिमा

दसलक्षण पर्व से पूर्व हुआ अद्भुत चमत्कार: जंगल से लौटते चरवाहे को मिला चमकता पत्थर, जमीन से निकली प्राचीन जैन प्रतिमा

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दसलक्षण पर्व से पूर्व हुआ अद्भुत चमत्कार: जंगल से लौटते चरवाहे को मिला चमकता पत्थर, जमीन से निकली प्राचीन जैन प्रतिमा

मध्य प्रदेश के नीमच ज़िले के मनासा तहसील क्षेत्र के ग्राम दतौली में एक अद्भुत घटना घटी। गुरुवार की शाम को गांव के नजदीक स्थित जंगल में गाय चराने गए एक चरवाहे को प्राचीन जैन प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसे फिलहाल गांव के श्री चारभुजा नाथ मंदिर में रखवाया गया है। इस घटना की जानकारी ग्रामीणों ने तुरंत पुलिस और एसडीएम को दी।

ग्राम दतौली निवासी परशुराम पिता शोला बंजारा, जो प्रतिदिन की तरह अपने मवेशियों को लेकर जंगल में गया था, तेज बारिश के कारण घर लौट रहा था। तभी उसने देखा कि जमीन पर एक काले रंग का अजीब सा पत्थर चमक रहा है। पास जाकर देखने पर उसने पाया कि वह पत्थर वास्तव में एक अति प्राचीन मूर्ति थी, जिसे बारिश के पानी ने साफ कर दिया था। परशुराम ने उसे खुदाई कर बाहर निकाला और गांव लेकर आया। यह मूर्ति अत्यंत प्राचीन जैन प्रतिमा थी।

जब गांव के सरपंच और स्थानीय लोगों को इस घटना की जानकारी मिली, तो गांव के वरिष्ठ नागरिकों ने आपस में विचार कर मूर्ति को गांव के श्री चारभुजा नाथ मंदिर पर अस्थायी रूप से रखवाया। इसके बाद ग्रामीणों ने शुक्रवार की सुबह एसडीएम पवन बारिया और स्थानीय थाना मनासा को सूचित किया।

पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने घटनास्थल पर पहुंचकर मूर्ति का निरीक्षण किया और कानूनी प्रक्रिया के तहत पंचनामा तैयार किया। फिलहाल मूर्ति गांव के चारभुजा नाथ मंदिर में रखी गई है। मूर्ति की प्राचीनता और उसकी ऐतिहासिक अवधि की जानकारी पुरातत्व विभाग द्वारा जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी।

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, यह मूर्ति काले पत्थर की बनी है, लगभग डेढ़ फीट ऊंची और अत्यंत भारी है। इसकी बनावट सामान्य मूर्तियों से भिन्न है, जिसके कारण इसे देखने के लिए जैन समाज के लोग बड़ी संख्या में पहुंचने लगे हैं। माना जा रहा है कि यह मूर्ति जैन धर्म के भगवान मुनि सुव्रत स्वामी की हो सकती है।

इस अद्भुत खोज ने जैन समाज के लोगों को अत्यधिक उत्साहित कर दिया है। मूर्ति को श्री चारभुजा नाथ मंदिर में अस्थायी रूप से रखने के बाद, जैन समाज के वरिष्ठ सदस्य इसे अपने जैन मंदिर में विधिवत स्थापित करने की प्रक्रिया में जुट गए हैं।


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