Jain Muni की वाणी सुन 14 मुस्लिम परिवार बने शाकाहारी, आजीवन मांस छोड़ जपा नवकार मत्रं


मध्य प्रदेश के भिंड के नदजीक चम्बल की घाटियों के बीच लगभग ढ़ाई हजार वर्ष से भी ज्यादा पुराना अतिप्राचीन बरासों श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में मुनि विहषंत सागर जी महाराज चातुर्मासरत हैं। लगभग पूरे वष्राकाल में मुनि श्री के प्रेरणा और निर्देशन में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम सम्पन्न हो रहे हैं। यह कहावत सच है कि जहां चाह है या जहां अटूट श्रद्धा-भक्ति है तो फिर वो चाहे किसी भी धर्म, मजहब का हो कोई फर्क नहीं पड़ता। बस उसके अंदर उस धर्म के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव जग जाये।

ऐसा ही एक सच्ची घटना बरासों अतिशय क्षेत्र में घटित हुई। Jain Muni श्री विहषंत सागर जी ससंघ के पावन सानिध्य में पूरे वष्रायोग में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसी के चलते वहां दूर-दूर से श्रद्धालुगण पहुंच रहे हैं। इन धार्मिक कार्यक्रमों में जैन श्रद्धालुओं के अलावा वहां के स्थानीय लोग भी भक्ति-भाव से धार्मिक कार्यक्रम में शरीक हो रहे हैं। मुनिश्री विहषंत सागर जी महाराज ने कहा कि बरासो अतिशय क्षेत्र के मंदिर की रचना देवों द्वारा की गयी है। उन्होंने कहा कि एक हजार नये मंदिरों का निर्माण करवाने की अपेक्षा एक पुराने मंदिर का जीर्णोद्वार करवाना बेहतर कार्य है।

उन्होंने कहा कि हम केवल जैन संत नहीं बल्कि जन-जन के संत हैं। इसीलिए बरासों के जैन नहीं अजैन भी मुनिश्री के प्रवचनों से इसते प्रभावित हो रहे हैं कि यहां के लगभग 14 मुस्लिम परिवार के लोग भी कार्यक्रम देखने पूरे भक्तिभाव से कार्यक्रम स्थल आते हैं। मुनिश्री के प्रवचन और शाकाहार, अहिंसा एवं जैन धर्म की मावन जाति के प्रति प्रेम से प्रभावित होकर, उन 14 मुस्लिम परिवारों (बच्चों सहित) ने मांस न खाने का पण्रलिया।

यहां तक कि उनके बच्चे णमोकार मंत्र का जाप भी कर रहे हैं, जिससे उन्हें काफी मानसिक शांति का एहसास हो रहा है। कुछ मस्लिम बच्चे तो मुनिश्री के यहां से जाने की बात सुनकर राने भी लग जा रहे हैं। पिछले 4 माह में मुनिश्री 90 उपवास कर चुके हैं। मुनिश्री के पावन सानिध्य में अतिप्राचीन बरासों का श्री दिगम्बर जैन मंदिर का जीणोद्वार का काम चल रहा है। मुनिश्री की प्रेरणा से 25 सितम्बर को खुदाई के दौरान निकली भगवान आदिनाथ की प्रतिमा की स्थापना करने की भी तैयारी की जा रही है साथ ही मंदिर परिसर में विभिन्न औषधीय के लगभग 1500 पौधे लगाये गये हैं।


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