माँ रोई, पिताजी रोए ,ओर रोइ बहिना लेकिन वैराग्य को कौन रोक पाया है


आचार्य श्री विशुध्द सागर जी मुनिराज के शिष्य श्री अक्षय भैया जी, अपने शहर (सीपुर) मालथोन जहाँ वे पले बडे हुए। दीक्षा के पूर्व उनकी वैराग्य यात्रा निकली। बेटे को मुनि मार्ग पर बढ़ते हुए, और अंतिम बार घर का त्याग करने पर माता को अश्रु की धारा बहने लगी। मोक्ष मार्ग पर बढ़ रहे बेटे ने कहा माँ क्यों रोती है। कई बार तो तेरी कोक से जन्मा हु अब तुझे भी दुख होता है और मुझे भी। जन्मातीत होने के लिये इस मार्ग पे निकला हु, लेकिन माँ तो माँ होती है आंसू कहा रुकने वाले थे। और इस तरह बेटे को माँ के आंसू प्रभावित ना कर सके, अक्षय भैया जी के चेहरे पर रंचनमात्र भी संक्लेश नही था, चेहरे पर वैराग्य भाव को धारण करते हुए, मंद मंद मुस्कुराहट और वात्सल्य भाव से हम सभी को भी मोक्ष मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा देते हुए आगे बढ़ गए।
कहते है ना रागी को वैराग्य कहा, वैरागी को राग कहाँ। इस बात को चरितार्थ करते हुए हम सबको भेद ज्ञान से अवगत कराया।
चर्या शिरोमणि गुरुवर विशुध्द सागर महामुनिराज की जय।
सभी भैयाजी को आत्मीय वन्दन।


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