इंदौर के धर्मप्रभावना समिति एवं अखिल भारतीय प्रज्ञश्री संघ के तत्वाधान में छह दिवसीय अमृत गंगा महोत्सव आयोजन में आचार्य पुष्पदंत सागर जी जी ने अपनी अमृतमयी वाणी से उपस्थित लोगों को अमरत्व की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा समाज में तूफान नहीं पवन बनकर वातावरण को सुगंधित करो। तूफान आता है तो धूल भरी आंधी लेकर आता है, जिससे हमें खिड़की, दरवाजे बंद करने पड़ते हैं जबकि पवन से शीतलता का एहसास होता है और साथ में सुगंध लेकर आती है। उन्होंने कहा लोग समस्याओं से ग्रसित हैं और इनका समाधान संसार में रहकर नहीं अपितु आध्यात्म को अपनाकर ही संभव है। जब आस्था करो तो अनेक दिल जलाओं। आस्था पंथ की नहीं बल्कि ज्योति की करनी चाहिए। आपने मंदिर में भगवान और जिवाणी की पूजा तो की किंतु किंचित मात्र भी अपने अंदर परमात्मा को जगाने का प्रयास नहीं किया। संत की कथनी अगर आपकी करनी बन जाए तो कल्याण ही कल्याण हो जाएगा। मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज ने कहा कि जीवन में दुख दूर करना है और सुख को लाना है तो गुरू की शरण में जाओ। जैन धर्म कहता है कि जो व्यक्ति जैसा करेगा वैसा फल मिलेगा। जैसी भावना होगी वैसा ही जीवन होगा। संतों की वाणी के माध्यम से भावों को बदल सकते हैं।
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जैन मुनि श्री महित सागर जी महाराज की हुई संलेखना पूर्वक समाधि
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