जैन रामायण में श्रीराम को अहिंसावादी बताया गया है, उन्होंने रावण का वध करने के लिए हथियार धारण नहीं किए। तब प्रभु राम ने नहीं बल्कि उनके अनुज लक्ष्मण ने रावण का संहार किया था।
दरअसल, जैन ग्रंथों में रामायण के नायक प्रभु श्रीराम को 63 शलाकापुरुषों में से एक बताया गया है। वहीं, रामायण के खलनायक रावण को जैन रामायण में उदार, विद्वान और जैन धर्म का अनुयायी के रूप में उल्लेखित किया है।
कहते हैं रावण भगवान शांतिनाथ (शांतिनाथ जैन धर्म में माने गए 24 तीर्थकरों में से एक है।) का महान भक्त था और उसे जैन धर्म के अनुसार प्रतिवासुदेव माना जाता है।
कौन होते हैं प्रतिवासुदेव
प्रतिवासुदेव जैन समुदाय का एक मानक है जो नारायण तथा बलदेव मानक के बाद काफी खास माना जाता है। प्रतिवासुदेव धारण करने वाले व्यक्ति की ताकत एक वासुदेव से कम होती है। जैन समुदाय में वासुदेव, बलदेव तथा प्रतिवासुदेव जैसे मानक बनाए गए हैं, जिनके आधार पर एक पुरुष का विभाजन किया जाता है।
हो चुके हैं 9 प्रतिवासुदेव
जैन धर्म में तीर्थंकर की मुख्य मान्यता है। तीर्थंकर की तरह ही प्रतिवासुदेवों का भी हर चतुर्युग के सामान्य चक्रीय कालक्रम में अवतरण होता है। जैन मान्यता के अनुसार इनकी कुल संख्या 9 है। प्रतिवासुदेवों द्वारा एक समय धारा के भीतर जन्म लिया जाता है। यह समय अपना चक्र पूरा कर के वापस लौटता है इसलिए इसे चक्रीय कहा जाता है।
- Naidunia