श्री चंद्रप्रमु दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव के पांचवें दिन भगवान को आहार दान की क्रिया सम्पन्न की गयी। मुनिश्री विहर्ष सागर जी महाराज ने भगवान के समवाणण में गणधर गुरू के रूप में भगवान की विवेचना करते हुए कहा कि मावन जीवन संसांर के दुखों को दूर रखने का एक मात्र उपाय भगवान की भक्ति ही है। इसके बाद इंद्राणियों ने 11 हजार मंत्रों का जाप अनुष्ठान किया तत्पश्चात शांतिधारा और तप कल्याणक की पूजाकर मुनि आदिनाथ की आहार चर्या की विधि प्रतिष्ठाचार्य अजीत शास्त्री, सहप्रतिष्ठाचार्य सतीश शास्त्री और अरविंद शास्त्री द्वारा पूर्ण करायी गयी। मुनि श्री विहर्ष सागर महाराज ने पत्थर की मूर्तियों में चेतन्मता लाने के लिए प्रतिमाओं को सूर्य मंत्र दिया और स्थापित होने वाली प्रतिमाओं के कुछ जरूरी संस्कार किये। इसके बाद इंद्रों द्वारा भगवान के समवशरण की रचना की गयी। इसके बाद भगवान की आहारचर्या कैसे पूरी हुई, इसका मार्मिक मंचन किया गया। ऋषभदेव छह माह की कठिन साधना के बाद पहली बार आहार के लिए निकलते हैं तो लोगों को आहार दान देने की क्रिया का पता नहीं होता और उनके आहारस्वरूप ऐसी चीजें देते हैं, जिनका वे त्याग कर चुके होते हैं। इस वजह से ऋषभदेव एक गांव से दूसरे तथा दूसरे से तीसरे गांव मुस्कराते हुए भ्रमण करते रहते हैं। भ्रमण करते-करते वह हस्तिनापुर नगर पहुंचते हैं। वहां के राजा श्रीयांश और राजा सोम को मुनिराज के दर्शन मात्र से पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है और आहार चर्या का ज्ञान भी उन्हें हो जाता है। इसके बाद मुनिराज का आहार पूर्ण होता है। इसे देख देव पंचवृष्टि करने लगते हैं। कार्यक्रम में समिति के अध्यक्ष संदीप जैन, शिखर जैन, पंडित हंसराज जैन, मीडिया प्रभारी राकेश मित्तल, प्रह्लाद जैन, पूर्व अध्यक्ष आनंद प्रकाश जैन, सुधीर जैन, प्रमोद जैन, कुलभूषर जैन सहित अनिल जैन मौजूद थे।
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