सभी के लिए स्वार्थी नहीं सारथी बने- साध्वी श्रमणीप्रज्ञा

सभा को संबोधित करती साध्वीजी

बाड़मेर। जिनशासन विहार सेवा ग्रुप बाड़मेर के तत्वाधान बाड़मेर से शंखेश्वर तीर्थ, कंबोई तीर्थ, चाणस्मा तीर्थ व पाटण तीर्थ की यात्रा संघ का आयोजन किया गया।
जिनशासन विहार सेवा गु्रप के मंत्री कपिल लूणिया ने बताया कि यात्रा संघ दौरान शंखेश्वर तीर्थ में प्रकट प्रभावी शंखेश्वर पाश्र्वनाथ व दादा गुरूदेव की पूजा स्तवना की गई। दादावाड़ी में विराजित साध्वी श्रद्धांजनाश्री महाराज ने यात्रियों को संबोधित करते हुए जिनशासन की महता बताई तथा कहा कि हमें नियमित पूजा-अर्चना इत्यादि करना चाहिए। प्रबल पुण्योदय से मनुष्य जन्म, जैन धर्म व जिनशासन की प्राप्ति हुई इसलिए हमें इस भव को सार्थक करना है। कंबोई तीर्थ में मनमोहन पाश्र्वनाथ भगवान के दर्शन वंदन व चाणस्पा तीर्थ में 6 लाख वर्ष से भी अति प्रचीन भटेवा पाश्र्वनाथ भगवान के दर्शन-वंदन किए और पाटण में पंचासरा पाश्र्वनाथ भगवान की पूजा-स्तवना की। वहां पर विराजित साध्वी सौम्यगुणाश्री महाराज के दर्शन किए तथा सौम्यगुणाश्री ने संबोधित करते हुए कहा कि हमारा बड़ा पुण्य है कि हमने जिनशासन को प्राप्त किया है। हमें सम्यक अनुष्ठान के माध्यम से अपने जीवन को सद्गति की ओर ले जाना है। ज्ञानियों ने पांच प्रकार के अनुष्ठान बताये है जिसमें विष अनुष्ठान, गरल अनुष्ठान, अननुष्ठान, तद्हेतु अनुष्ठान, अमृत अनुष्ठान। इस लोक की प्रशंसा, राज ऋद्धि इत्यादि प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया अनुष्ठान विष अनुष्ठान है। परलोक में देव-देवेन्द्र, चक्रवर्ती आदि पद की इच्छा के हेतु से किया गया अनुष्ठान गरल अनुष्ठान है। जिनके जीवन में सम्यक ज्ञान के अभाव में गडरिया प्रवाह कि तरह किया गया अनुष्ठान अननुष्ठान है। समझपूर्वक व ज्ञानपूर्वक किया गया अनुष्ठान तद्हेतु अनुष्ठान है व मोक्ष प्राप्ति की कामना से किया गया कार्य अमृत अनुष्ठान के समान है। साध्वीश्री ने कहा कि हम संस्कृत के जिन गुरूजी के पास अध्ययन करते है उनका विश्व के संस्कृत के प्रकाण्ड विद्धानों में दूसरा स्थान लगता है।
साध्वी स्थितप्रज्ञाश्री ने कहा कि शब्द एटमबम का भी काम करते है और प्र्र्रसन्नता का भी काम करते है। शब्द हर्ष भी उत्पन्न करते है और भय भी पैदा करते है। एक छोटासा वाक्य अंधे के बेटे अंधे होते है इस वाक्य ने महाभारत का युद्ध खड़ा कर दिया। आज हर घर में महाभारत का युद्ध खड़ा हो गया है क्योंकि हम मधुर शब्द नहीं बोल पाते है हमारे शब्द सूल के समान चुभते है। आज हमने मंदिर को पूजारी के भरोसे, उपाश्रय व आराधना भवनों को साधु-साध्वियों के भरोसे व आयंबिलशाला को नौकरों के भरोसे छोड़ दिया है। धर्म नगरी पाटन में 125 जैन मंदिर है। गत् चैबीस के बीसवें तीर्थकर दामोदर स्वामी के समय में आषाढ़ी श्रावक ने पाश्र्वनाथ परमात्मा की तीन प्रतिमाएं भरवाई थी जिसमें शंखेश्वर, चारूप व स्थंभन पाश्र्वनाथ की प्रतिमाएं है। ये प्रतिमाएं हर काल में हर समय में तीन लोक में पूजी गई है।
साध्वी संवेगप्रज्ञाश्री ने कहा कि हमारे को पांच प्रकार के संसार का त्याग करना है। नमस्कार महामंत्र के माध्यम से हम पांच प्रकार के संसार का त्याग कर सकते है। स्वार्थमय संसार, दुःखमय संसार, दुराचारमय संसार, अज्ञान रूपी संसार, असहिष्णु संसार। जीवन जीने की शैली हमें जिनशासन सिखाता है। आगे रहना संसार है और दूसरों को आगे रखकर स्वयं द्वारा कार्य करना ही मोक्ष है। साध्वी श्रमणीप्रज्ञाश्री ने कहा कि हमें स्वार्थी नही बनकर सभी के लिए सारथी बनना है।
संस्कृत के प्रकाण्ड गुरूजी चन्द्रकांतभाई ने कहा कि अज्ञानी शरीर की चिंता करता है और ज्ञानी शरीर को चलाने वाली आत्मा की चिंता करता है। नमस्कार के समान महामंत्र, शत्रुंजय के समान महातीर्थ, अरिहंत के समान देवाधिदेव हमारे को प्राप्त हुए है। भगवान सर्वत्र है, सर्वथा है और सर्वदा है। हमें सद्वांचन व सत्संग करना चाहिए। सद्वांचन से ज्ञान अच्छा होता है और सत्संग से जीवन अच्छा होता है। हमें दोष को त्याग करना है वस्तु को नहीं। दोष हमारे जीवन को खोखला कर देते है।
चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि इस अवसर पर चन्द्रकांतभाई गुरूजी का जिनशासन विहार सेवा गु्रप बाड़मेर द्वारा व अग्रणीय श्रावकवर्ग द्वारा पाद पक्षालन कर श्रीफल, माला, साफा पहनाकर अभिनंदन किया गया। तीर्थयात्रा में रतनलाल संखलेचा, लूणकरण गोलेच्छा, डा. रणजीतमल मालू, मेवाराम संखलेचा, खीमराज बोथरा, सहित विहार गु्रप व कुशल दर्शन मित्र मंडल के सदस्य उपस्थित थे।

 

  • चन्द्रप्रकाश छाजेड़, बाड़मेर

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