जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज और आर्यिका ज्ञानमती माताजी का 9 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा पर मनाया जायेगा अवतरण दिवस


सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता चंद्रमा, हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन आकाश से अमृत की बूंदों की वर्षा होती है।

जैन धर्म के वर्तमान में इस सदी के महान दिगम्बर संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं महान आर्यिका ज्ञानमती माताजी की जन्म तिथि भी शरद पूर्णिमा के दिन ही है। आचार्य विद्यासागर और आर्यिका ज्ञानमती माताजी दोनों ही सम्पूर्ण जैन समाज के उच्च संत है। दोनों ने ही जैन धर्म की ध्वजा ऊंचाइयों तक फेराई है। दोनों का सम्पूर्ण परिवार धर्म मे लगा है। आचार्य श्री के ग्रहस्थ अवस्था के भाई मुनि योगसागर और मुनि समय सागर, बहन शांता और स्वर्णा दीदी है। तो ज्ञानमती माता जी के गृहस्थ जीवन की बहन माता चन्दनामती और भाई रविन्द्र कीर्ति भट्टारक है।

आचार्य श्री ने कुण्डलपुर, रामटेक,अमरकन्टक , नेमावर, बीना बारहा आदि क्षेत्र का जिर्णोउद्धार कराया। माताजी ने हस्तिनापुर , मांगीतुंगी, इलाहाबाद, अयोध्या,कुण्डलपुर (जन्मभूमि), शिर्डी ,काकनदी (खुखुंदू), सनावद आदि क्षेत्रो का जिर्णोउद्धार कराया। दोनों ने ही बाल्यावस्था में ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। दोनों ने अपने अपने पद पर सर्वोच्चता प्राप्त की। गुरुवर ने अनेक ग्रन्थ और महाकाव्य लिखे। तो माता जी ने 500 से अधिक ग्रन्थ और अनेक विधान और पूजाये लिखी।

इस वर्ष चतुर्मास
आचार्य श्री विद्यासागर का अंतरिक्ष पार्श्वनाथ, शिरपुर जैन, महाराष्ट्र में और गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर, मेरठ, उप्र में हो रहा है।

जैन धर्म के ऐसे दो महान आधार स्तंभो को दोनों महान सन्तो को शत शत नमन

 

— इंजी. सौरभ जैन


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