पाकिस्तान की इस मस्जिद के अंदर है जैन मंदिर, 70 साल से मौलवी कर रहे हैं देखरेख


चंडीगढ़. रावलपिंडी में 70 साल बाद भी मौलाना अशरफ अली का परिवार मस्जिद के बाहर बने मंदिर के वारिसों के इंतजार में है। मुल्क के बंटवारे के समय जब हालात खराब हुए तो वहां रहने वाले जैन और हिंदू परिवार मंदिर की चाबी मौलाना अशरफ अली के वालिद मौलाना गुलाम उल्ला खान को सौंप गए। तय हुआ था कि जब हालात कुछ ठीक होंगे तो वो लोग वापस आकर मंदिर की चाबी ले लेंगे, लेकिन एेसा अब तक नहीं हुआ।

– मौलाना नहीं जानते कि वे परिवार अब भारत में कहां है, किस हाल में है।
– मौलाना के मुताबिक उनकी फैमिली का कोई भी सदस्य रावलपिंडी आकर मंदिर की चाबी ले सकता है।
– वे कहते हैं कि धर्म की किताबों में ये कहीं नहीं लिखा है कि किसी दूसरे धर्म से जुड़ी चीजों या प्रतीकों को नष्ट किया जाए।
– मस्जिद में एक मदरसा भी है- जामिया तालीम-उल-कुरान। इसका संचालन मौलाना अशरफ अली के हाथ में है।
– उनके मुताबिक – यहां पढ़ रहे बच्चों ने कभी किसी हिंदू को नहीं देखा, इसलिए हम उन्हें इस्लामी तालीम देते हुए ये भी सिखाते हैं कि दूसरे धर्मों की मान्यताएं कैसी हैं, उनके मंदिर वगैरह कैसे हैं।
– ये इसलिए जरूरी है, ताकि हमारे बच्चे दुनिया के हर धर्म की अच्छी बातें सीख सके। ये भी एक कारण है कि हमने मंदिर को कभी कुछ नहीं होने दिया

पिता दे गए थे मंदिर की चाबी

– अशरफ अली ने कहा- आजादी से पहले रावलपिंडी के राजाबाजार में हिंदुओं की घनी आबादी थी और जैन समुदाय के लोग भी थे।
– ये मंदिर जैन समुदाय के लोगों ने ही बनवाया था। तब धर्म को लेकर ऐसी मार-काट बिल्कुल नहीं थी, इसलिए मस्जिद के अंदर बने इस मंदिर को लेकर किसी को भी कुछ गलत नहीं लगा। फिर जब 1947 में बंटवारे की आग फैली तो हिंदुओं को जान बचाने के लिए यहां से भारत जाना पड़ा।
– उस दौरान मेरे वालिद ने उन लोगों से वादा किया था कि मंदिर को कुछ नहीं होगा। जब हालात सामान्य होंगे, आप लौट आना।
– बाद में वालिद ने इसकी चाबी मुझे सौंपी और कहा कि इसे इसके असली वारिसों को ही सौंपना, इसलिए मुझे उन लोगों को इंतजार है।

जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, इस मंदिर को गिराने भी यहां के लोग आए, लेकिन हमने हर बार उन्हें भगा दिया

– अशरफ अली ने कहा- मंदिर शहर के बीचों-बीच है। जब भारत में बाबरी मस्जिद गिराई गई तो यहां के कुछ लोग भी मंदिर को निशाना बनाने के लिए आए।
– हमने उन्हें हर बार भगा दिया। कुछ और लोग भी हैं, जो मानते हैं कि ये मंदिर यहां मस्जिद के भी पहले से है।

 

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