Home Jainism जैन सम्प्रदाय में वर्णित सूक्तियां/विवरण आदि से जैन धर्म की महानता/भारतीय संस्कृति को अवदान

जैन सम्प्रदाय में वर्णित सूक्तियां/विवरण आदि से जैन धर्म की महानता/भारतीय संस्कृति को अवदान

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जैन धर्म में लिंग आधारित कोई भी भेदभाव देखने में नहीं आता, चाहे वह शिक्षा की दृष्टि में हो या सम्मान की, इसके कई उदाहरण शास्त्रों में है, सर्वप्रथम तो शिक्षाप्रवाहक, विद्योदघाटक आदिनाथ भगवान ने अपने 101 पुत्रों और दो पुत्रियों में समान व्यवहार किया एवं नारी शिक्षा का भी प्रवर्तन किया, हर प्रकार की शिक्षा दी, असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन षट्कर्मों को बताया, इसका बृहद वर्णन “आदिपुराण के सोलहवें सर्ग” में है।

वास्तविकता में जैन धर्म सर्वोत्कृष्ट एवं महान धर्म है, आज जो भी शास्त्रादि, प्रतिमा आदि धरोहर देखने को मिल रही है, इससे कई गुना ज्यादा आताताइयों ने, विधर्मियों ने एवं अंग्रेज शासकों ने या तो हड़प ली, या नष्ट कर दी, मुख्यतः सातवीं शताब्दी से जैन धर्म पर संकटों का दौर चला, जो अभी तक चल रहा है, इसी कारण से आज हमारे पास जो साहित्य है, उससे कई गुना साहित्य नष्ट हो चुका है, ऐसा मानना चाहिए, साहित्य से तात्पर्य  “शास्त्र” हैं, और बचे हुए साहित्य से ही हम अनुमान कर सकते हैं कि हमारे पूर्वाचार्यों ने भारतीय संस्कृति को कितनी अमूल्य धरोहर प्रदान की है।

जैन धर्म प्रत्येक छोटी से छोटी बात को लेकर सजग है, जैन धर्म में जितनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बातें कहीं गई है, वैसी अन्य देखने को नहीं मिलती, वैसे तो जैन धर्म में “अहिंसा परमो धर्म:”, “परस्परोपग्रहों जीवानाम्”, (त.सू. 5/21)और “जियो और जीने दो” आदि अनेक सूक्तियां मिलती हैं, और हम इनका सामान्य अर्थ ही ग्रहण करते हैं, परंतु हम यदि इसके भावार्थ को समझें, शास्त्रों में इनकी व्याख्या देखें तो हमें ज्ञात होगा कि जैन धर्म क्या है, आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे, समितियां, अणुव्रत, महाव्रत, सप्तव्यसन-त्याग, मूलगुण, आवश्यक, दश धर्म, बारह भावना आदि सभी इन्हीं का तो विस्तार हैं।

जियो और जीने दो का तात्पर्य केवल इतना ही नहीं कि हम जिएं और दूसरे भी जिएं, परंतु इसका भी व्यापक अर्थ है, हम स्वयं तो जिएं परंतु साथ ही साथ अन्य जो दीन-दु:खी, पशु-पक्षी आदि जीव हैं, उनका भी ख्याल रखना, उनके लिए भी यथाशक्ति प्रबंध करना, अरे! यह भी तो करुणादान के अंतर्गत लिया गया है, इसलिए यथासंभव दूसरे जीवों की सहायता भी करना, इस प्रकार भावार्थ जानना चाहिए, परन्तु यहाँ भी एक समस्या और है, जैन दर्शन में मद्य(शराब), व्यसनी, दुराचारी, मांसभक्षियों को दान देना अनुचित है, इन्हें अपात्र कहा गया है, और अपात्र दान से घोर पाप का बंध होता है, ऐसा वर्णन मिलता है।

जैन धर्म में ऐसी ही अनेक सूक्तियां शास्त्रों में वर्णित हैं, जिनका अर्थ बड़ा व्यापक है,और इसी प्रकार प्रथमानुयोग के ग्रंथो को देखें तो हमें ज्ञात होता है कि वास्तव में जैन धर्म है क्या, अनेकों उदाहरण है, चाहे पुरूरवा भील हो, यमपाल चांडाल हो, बैल को णमोकार मंत्र सुनाने वाले पद्मरुचि सेठ हों, जीवंधरकुमार हों या सुकुमार मुनिराज हो, सुकौशल मुनि हो या अन्य सभी कितने ही उदाहरण मिलते हैं, जो मिसाल बने, जिन्होंने पालन किया अपने धर्म को, नियम की मिसाल बने, तप की मिसाल बने।

अब बात आती है भारतीय संस्कृति को अवदान की तो ऋषभदेव तीर्थंकर ने इस धरा को जो सौंपा वह अद्वितीय है, प्रागैतिहासिक काल के तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने इस काल में विद्या का दान दिया, आज जो स्त्री शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है, वह इसके प्रवर्तक थे/हैं, उन्होंने गृहस्थधर्म का उपदेश दिया, षट्कर्मों को (असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य, शिल्प) बताया, वर्ण व्यवस्था चलाई (क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) तीन वर्ण बनाए, चौथा-प्रथम ब्राह्मण वर्ण आपके पुत्र भरत ने बनाया, शस्त्र-विद्या, शास्त्र -विद्या का ज्ञान कराया, दिन-रात का ज्ञान कराया आदि कितने ही अप्रतिम, अद्वितीय, अविस्मरणीय कार्य उन्होंने

किए, जिनका और विस्तृत वर्णन श्रीआदिपुराण जी, श्रीचौबीसीपुराण जी आदि में पढ़ सकते हैं, इसी प्रकार अन्य तीर्थंकरों ने भी जो दिया वह अद्भुत है, अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के द्वारा दिया गया नारा प्रसिद्ध है- “जियो और जीने दो” इसको बताया।

वर्तमान प्रसंगों में जैन धर्म से एवं महावीर स्वामी से प्रेरित या आकर्षित बहुत से प्रसंग हैं, महात्मा गांधी जो जैन धर्म से बहुत प्रभावित थे, जिन्होंने अहिंसा को स्वीकार कर पूरे देश को आजादी दिलाई, उन्होंने अपना आध्यात्मिक गुरु “राजचंद” जी को माना, जो कि जैन थे, इसके अलावा “अल्बर्ट आइंस्टीन” नामक वैज्ञानिक ने मृत्यु के समय कहा कि मैंने सारी दुनिया घूमी है, मुझे सबसे अच्छा देश भारत लगा, मैं पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं करता, परंतु फिर भी यदि पुनर्जन्म होता है, तो मेरी अच्छा है, कि मैं भारत में पैदा होउँ, और भारत में भी जैन धर्म में जन्म लूं, वर्तमान में बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान भी

जैन धर्म से प्रभावित हैं, कुछ समय पूर्व ही उनका वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे जैनों की क्षमा के बारे में बोलते दिख रहे हैं, कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष माननीय राहुल गांधी जी भी जैन धर्म को जानने के इच्छुक हैं, और वह श्रीमान पं. रतनलाल जी बैनाड़ा, आगरा से करीब 7 दिन तक जैन परंपरा को समझे हैं, इसी प्रकार अन्य भी अनेकों उदाहरण हैं, जो जैन धर्म को समझकर आकर्षित हुए, यह महावीर के संदेश का ही फल है, इस प्रकार जैन तीर्थंकरों ने अपना अप्रतिम योगदान भारतीय संस्कृति और समूचे विश्व को दिया।

उक्त कारणों से जैन धर्म/दर्शन की महानता का भी पता चलता है।

 

— पं.शशांक सिंघई जैन “शास्त्री”


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