आर्यिका भव्यनंदनी (आचार्य वसुनंदी की गृहस्थ समय की माताजी) का समाधिपूर्वक हुआ देवलोकगमन


जैन दर्शन में मृत्यु को भी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।  प्रत्येक धर्म, संप्रदाय में जन्म के महोत्सव तो आयोजित किए जाते हैं किंतु विश्व में एकमात्र जैन धर्म ही ऐसा है जिसमें मृत्यु को भी महोत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है। प्रत्येक उत्तम श्रावक एवं श्रमण यही भावना मन मे रखता है की अंतिम समय में समाधि धारण कर देवलोक गमन को प्राप्त हो। वास्तविक रूप से देखे तो समाधि पूर्वक मृत्यु अंतरंग की क्रिया का भाव है जिसे मोक्ष मार्गी पथिक शरीर बदलने या परिवर्तन करने की लिए तैयार रहते हैं उक्त उद्धबोधन जम्बूस्वामी तपोस्थली बोलखेड़ा पर आर्यिका भव्यनंदनी माताजी के समाधि मरण पर आचार्य श्री वसुनंदी महाराज ने व्यक्त किये।

तपोस्थली के प्रचार प्रसार प्रभारी संजय जैन बड़जात्या ने बताया कि मनिया जिला धोलपुर निवासी त्रिवेणी देवी  जो कि वर्तमान में आर्यिका भव्य नंदनी माता जी के रूप में तपोस्थली पर यम सल्लेखना रत रहते बीस दिगम्बर जैन मुनिराजों एव आर्यिकाओं के सानिध्य में समाधि पूर्वक देवलोकगमन को प्राप्त हुई जिनकी अंतिम संस्कार की क्रियाएं तपोस्थली बोलखेड़ा पर ही सम्पन्न हुई। इस अवसर पर मुनि जिनानंद महाराज, मुनि शिवानन्द महाराज,आर्यिका वर्धस्व नंदनी माताजी ने दिवंगत को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि किसी शिष्या की समाधि जिनालय के सामीप्य, गुरु और साधुओं के सानिध्य में होना सबसे उत्कृष्ट होता है जो बहुत ही पुण्य का संचय होने पर ही होता है। भव्यनंदनी ने ग्रहस्थ में रहते हुए एक भव्य आत्मा को जन्म दिया जो वर्तमान में आचार्य वसुनंदी के रूप में स्वयं और पर के कल्याण में विराजमान हैं।

चारो पुत्रो ने दिया कंधा

आर्यिका भव्यनंदनी माताजी को कंधा उनके ग्रहस्थ पुत्रो नरेश,महेश ,सुरेश व मनीष जैन निवासी मनिया को सौभाग्य मिला तो रमेश चन्द्र गर्ग, वीरेंद्र जैन बाड़मेर ने अन्य क्रियाएं पूर्ण की। तो वही परिवारीजनों ने एक साधु संवाद निलय बनाने एव समिति द्वारा चरण छतरी निर्माण की घोषणा भी की गयी।

गृहस्थ पुत्र हैं आचार्य वसुनंदी महाराज

एटा निवासी भोदुराम एव भगवती देवी की  पुत्री त्रिवेणी देवी धर्मपत्नी रिखबचंद जैन निवासी मनिया ने 2 फरवरी 18 को क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर नियम संलेखना धारण की।शरीर के कृष होने पर तीन जनवरी को आर्यिका दीक्षा प्रदान कर आर्यिका भव्यनंदनी नामकरण किया गया। त्रिवेणी देवी ने पांच पुत्रो नरेश ,महेश,दिनेश,सुरेश, मनीष एव तीन पुत्रियों मनोरमा, सुनीता,अनिता को जन्म दिया जिसमे से दिनेश कुमार वर्तमान में आचार्य वसुनंदी महाराज हैं। त्रिवेणी देवी को बचपन से ही धर्म के संस्कार मिले और उनके पुत्र ने उन संस्कारों को आगे बढ़ाया। तपोस्थली बोलखेड़ा पर यह प्रथम बार हुआ है जब एक पुत्र ने स्वयं की माँ के समाधि संस्कार सम्पन्न कराए हैं।

मृत्यु को आमंत्रण देने की क्रिया है समाधि मरण

जैन दर्शन में स्वयं द्वारा जब शरीर कृष होने लगता है और ऐसा महसूस होता है कि अब मैं अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाऊंगा तो मोक्षमार्ग के पथिक द्वारा स्वयं मृत्यु को आमंत्रण दिया जाता है शनै शनै आहार यहां तक की  जल का त्याग भी कर दिया जाता और चारो प्रकार का आहार का त्याग कर यम सल्लेखना धारण की जाती है। जिसे समाधि मरण कहते हैं।

 

— संजय जैन बड़जात्या कामा

 


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