Home Jain News चौसठ इन्द्रों की स्थापना के साथ हुआ मेरू पर्वत पर परमात्मा का अभिषेक

चौसठ इन्द्रों की स्थापना के साथ हुआ मेरू पर्वत पर परमात्मा का अभिषेक

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चौसठ इन्द्रों की स्थापना के साथ हुआ मेरू पर्वत पर परमात्मा का अभिषेक

हातकणंगले, 23 अप्रेल। खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरि ने आज प्रतिष्ठा समारोह के तृतीय दिवस विशाल सभा को संबोधित करते हुए कहा- परमात्मा पार्श्वनाथ के पंचकल्याणक महोत्सव में आज परमात्मा का जन्म कल्याणक मनाया गया। परमात्मा का जीवन एक रोडमेप है। उसे देख कर हम अपनी यात्रा का न केवल प्रारंभ कर सकते हैं, अपितु उसके आधार पर हम मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं।

उन्होंने कहा- यात्रा की पूर्णता के लिये तीन बातें जरूरी हैं। सबसे पहले हमारे अन्तर में यात्रा करने का दृढ़ भाव चाहिये। इसके साथ मंजिल का निर्णय चाहिये और फिर मंजिल के अनुसार रास्ते का चुनाव चाहिये। व्यक्ति के पास रास्ता है, यात्रा करने का भाव भी है, पर यदि मंजिल का निर्णय नहीं है, तो वह इधर से उधर भटक जायेगा। इसी प्रकार किसी के पास मंजिल हो, भाव हो पर रास्ते का अतापता न हो तो भी वह अपने लक्ष्य को नहीं पा सकता।

रास्ता और मंजिल दोनों हों, पर यात्रा का भाव ही न हो, तो वह वहीं रह जायेगा। उन्होंने कहा- हमें सबसे पहले अपना लक्ष्य तय करना है और लक्ष्य तय करने के बाद रास्ता तय करना है। मंजिल और रास्ते का निर्णय ही मोक्ष मार्ग की साधना है। उन्होंने कहा- मंजिल के अनुसार रास्ते का निर्णय होना चाहिये, रास्ते के अनुसार मंजिल का नहीं। यदि मंजिल श्रेष्ठ है तो रास्ता कंकरीला, पथरीला या कंटीला होगा तो भी हमें स्वीकार्य है। और मंजिल यदि बेकार है तो रास्ता कितना भी सुन्दर, सजीला और मनमोहक हो, हमारे लिये काम का नहीं है।

उन्होंने कहा- रास्ते की सजावट में अपने समय की बर्बादी मत करो। बल्कि मंजिल के अनुसार रास्ता तय करने का पुरूषार्थ करो। उन्होंने कहा- पार्श्वनाथ प्रभु का जीवन हमारे लिये पथ प्रदर्शक का कार्य करता है। मोक्ष प्राप्त करने की पहली शर्त है- जीव मात्र के प्रति करूणा का सघन भाव होना! भगवान् वही बनता है, जिसके रोम रोम में हर जीव के प्रति दया और करूणा का भाव हो। अपने दुख से तो हर व्यक्ति दुखी होता है। परन्तु जो दूसरों के दुख से दुखी होता है, वही भगवान् कहलाता है। और इसे ही शास्त्रीय भाषा में सम्यग्दर्शन कहा है।

उन्होंने कहा- जिस आत्मा ने सम्यग्दर्शन पा लिया, वह जीवों में कभी भी जाति, संप्रदाय आदि के आधार पर भेद नहीं करता। उसकी दृष्टि में सभी जीव एक समान होते हैं। वह सभी जीवों का कल्याण चाहता है। इसीलिये उनके जीवन की घटनाओं को कल्याणक कहा जाता है।

आज प्रातः आचार्यश्री ने संघवी माणकचंद सुशीलादेवी ललवानी परिवार द्वारा निर्मित माणिक सुशील विहार धाम परिसर में शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिन मंदिर में विधि विधान कराते हुए जन्म कल्याणक का विधान कराया। माणकचंद सुशीलादेवी ललवानी ने भगवान के माता पिता व अरूणकुमार कवितादेवी ललवानी ने इन्द्र इन्द्राणी का अभिनय किया।

पाण्डाल में बने मेरूपर्वत पर परमात्मा के 250 अभिषेक किये गये। इस हेतु 64 इन्द्रों की स्थापना की। अभिषेक से पूर्व 56 दिक्कुमारिकाओं का विशेष भक्ति महोत्सव विधि विधान संपन्न हुआ। विशाल मंडप में हुए इस कार्यक्रम को देखकर सैंकडों श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। इस कार्यक्रम में आचार्यश्री के साथ गणि मयंकप्रभसागर, गणि मेहुलप्रभसागर, मुनि विरक्तप्रभसागर, मुनि मयूखप्रभसागर, मुनि मुकुन्दप्रभसागर, मुनि मृणालप्रभसागर, मुनि मंथनप्रभसागर, मुनि महर्षिप्रभसागर, बाल मुनि मीतप्रभसागर तथा गणिनी सूर्यप्रभाश्रीजी, पूर्णप्रभाश्रीजी, विमलप्रभाश्रीजी, प्रियकल्पनाश्रीजी, सरस्वतीश्रीजी सहित कुल छत्तीस साधु साध्वी उपस्थित थे।


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