झाँसी में स्कूल प्रशासन की तानाशाही से परेशान इण्टर की छात्रा खुशी जैन ने की आत्महत्या


झाँसी। लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए मंहगे स्कूलों में पढ़ाते हैं लेकिन अगर वही स्कूल बच्चों की मौत का कारण बन जायें तो इससे दुखद बात कोई नही हो सकती। इस घटना से छात्रा के परिजनों में कोहराम मच गया। स्कूल प्रबंधन के खिलाफ भड़के आक्रोश के चलते परिजन छात्रा के शव को लेकर स्कूल पहुंच गए और स्कूल परिसर में ही रखकर प्रदर्शन किया।

बात छोटी सी थी लेकिन छात्रा उससे इतनी घबरा गई कि उसने परीक्षा ना दे पाने के डर से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मामला सीपरी बाजार थाना क्षेत्र के अंतर्गत शिवपुरी रोड पर स्थित महात्मा हंसराज पब्लिक स्कूल का है। जहां शहर क्षेत्र में रहने वाले दिगंबर जैन महासमिति के मंत्री संजय जैन की पुत्री खुशी जैन महात्मा हंसराज पब्लिक स्कूल में इंटरमीडिएट की छात्रा थी। दरअसल सीबीएसई और आईसीएसई की परीक्षाएं नजदीक आ चुकी हैं। लेकिन खुशी नाम की छात्रा का आई कार्ड खो गया था लेकिन काफी प्रयासों के बाद भी विद्यालय प्रबंधन छात्रा का कार्ड बनाने को तैयार नहीं था। छात्रा के पिता का आरोप है कि उसने स्कूल में जाकर काफी मिन्नतें की कि छात्रा का कार्ड बन जाये लेकिन  विद्यालय के प्रधानाचार्य के तानाशाही भरे रवैये की वजह से छात्रा का प्रवेश पत्र नहीं दिया जा रहा था। इसी बात सेे खुशी मानसिक रूप से इतनी परेशान हो गई कि उसने कल रात अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस घटना के बाद परिजन खुशी के शव को लेकर विद्यालय पहुंच गए और शव को विद्यालय परिसर में ही रखकर प्रदर्शन शुरु कर दिया।

विद्यालय में हंगामे की सूचना मिलते ही पुलिस भी मौके पर पहुंच गई और परिजनों को जांचकर कार्यवाही का भरोशा दिलाया। मामले की छानबीन शुरू कर दी है।

जो स्कूल अच्छी सुविधाओं के नाम पर हजारों रुपए फीस के लिए वसूलते हैं वही स्कूल के जिम्मेदार लोग कभी-कभी छात्र-छात्राओं का इतना मानसिक उत्पीड़न कर देते हैं कि बच्चे एक्जाम के प्रेशर से आत्महत्या कर बैठते हैं। आखिर बड़े बड़े स्कूलों के संचालक करोड़ों रुपए कमाकर बच्चों की जिन्दगी को इतनी सस्ती क्यों समझ लेते हैं, वह यह क्यों भूल जाते हैं कि मेहनत की कमाई से एक पिता अपने बच्चों की फीस भरता है जिससे आप बड़े आदमी बनते हैं। यह पहला मामला नहीं है जब किसी छात्र या छात्रा ने पढ़ाई या परीछा के प्रेशर से आत्महत्या की हो। आखिर यह स्कूल वाले किताबी ज्ञान का प्रेशर तो बच्चों को देते हैं लेकिन इनको व्यव्हारिक ज्ञान कब मिलेगा। देखने वाली बात होगी कि इस मामले में प्रशासन क्या कार्यवाही करता है।


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