तिजारा में आचार्यश्री 108 ज्ञानसागर महाराज के सानिध्य में मनाया पार्श्वनाथ निर्वाण महोत्सव


तिजारा, अलवर (राजस्थान) 07-08-2019 को श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा जी की पावन धरा पर जैनधर्म के 23वे तीर्थंकर  पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण दिवस आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया गया।
डॉ सुनील जैन संचय ने बताया कि इस दौरान भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाण लाडू चढ़ाने श्रद्धालु उमड़ पड़े। विधि विधान के साथ निर्वाण लाडू समर्पित किए गए। इस दौरान श्रद्धालु भक्ति के रंग में डूबे दिखे। महोत्सव में पार्श्वनाथ के जीवन पर सजाई गयीं भव्य झांकियों ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया।
इस पुनीत बेला में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि भारतीय संस्कृति में अनेक पर्व त्यौहार आते हैं, पर्व हमारे जीवन में नई चेतना झंकृत करते हैं। पर्व पापों के विसर्जन के माध्यम है, सोती हुई चेतना को जगाने आते हैं। अनेक पर्वों की संख्या में पार्श्वनाथ निर्वाण दिवस भी सभी को कर्म बंधनों से छुटकारा दिलाने में माध्यम बनता है। जीवन तो सभी जीते हैं पर यह जरूरी नहीं है कि सभी सही तरीके से जिएं, नर जीवन पाकर राग द्वेष के द्वारा जो कर्म बंधन किये है, बांधे हैं उन को तोड़ने का प्रयास करो।
पार्श्वनाथ के जीवन से सभी परिचित है उनके जीवन में कितनी कितनी प्रतिकूलता रही तो भी वह कमठ के जीव के प्रति प्रतिक्रिया नहीं किये। 10 भव तक जिसने बैर किया, पीड़ा पहुंचाई ऐसे कमठ के प्रति भी प्रभु पार्श्वनाथ का क्षमा भाव रहा। अंततः भगवान ने विजय प्राप्त की। क्षमा का सहारा लेने वाले संसार समुद्र से तिर जाते हैं। क्रोध बैर का सहारा लेने वाले संसार समुद्र में भटकते रहते हैं। जीवन में कभी भी बैर की गाँठ नहीं बांधना, जीवन में सहनशक्ति को स्थान दो तभी प्रभु पार्श्वनाथ की पूजा करना, लड्डू समर्पित करना सफल होगा।
जीवन के चौराहे पर अनेक व्यक्तियों से मिलना होता है, मिलन के चरणों में कई बार शब्दों से व्यवहार से दूसरों को पीड़ा पहुंच जाती है। आपस में गाँठ बांध लेते हैं, बोलचाल बंद हो जाती है, ऐसे व्यक्तियों को *प्रभु पार्श्वनाथ सचेत कर रहे हैं कि जिंदगी में कभी भी बैर भाव की ग्रंथि मत बांधना।* समता रखकर जीवन मैं सफलता प्राप्त करना।
आज के दिन अनेक श्रद्धालु श्री सम्मेद शिखरजी की पावन धरा पर जाकर स्वर्णभद्र कूट पर लड्डू समर्पित कर एक ही भावना भाते हैं, हे प्रभु जिस प्रकार आपने कर्म बंधनों को तोड़कर अपने वैभव को अपने आप में पाया है। उसी प्रकार में भी कर्मों को तोड़कर निर्वाण पद की प्राप्ति कर सकूं। आप सभी मात्र जीवन का निर्वाहन करें, जीवन का निर्माण कर निर्वाण पद की प्राप्ति का लक्ष्य बनाए तभी निर्वाण दिवस मानना सफल होगा।
-डॉ. सुनील जैन संचय

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