भूगर्भ से स्वयं प्रगटी भगवाद आदिनाथ की मूर्ति, शिल्पकला देख हैरान हुए लोग


मध्य प्रदेश में जबलपुर के त्रिपुर सुंदरी मंदिर के नजदीक हनुमान टेकरी में खुदाई के दौरान जैन धर्म के पहले तीर्थकर आदिनाथ की मूर्ति निकली। मूर्ति की अदभुत कारीगरी अैर नक्कासी देख लोग दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हैं। अति प्राचीन मूर्ति में ऐसी कई अद्भुत खूबियां हैं, जिन्हें देख लोग हैरान और गदगद हैं। भारतीय पुरातत्व एवं सव्रेक्षण विभाग के अनुसार प्राप्त मूर्ति 10वीं सदी के लगभग की है और फिलहाल मूर्ति को अपने पास सुरक्षित कर लिया है। बेशकीमती मूर्ति की अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका मूल्य लगभग 10 अरब से भी ज्यादा है।

सबसे अद्भुत और  चमत्कारिक बात यह है कि यह मूर्ति जमीन से खुद-ब-खुद ऊपर आयी। पुरातत्व विभाग के अनुसार मंदिर के चारों तरफ 300 मीटर क्षेत्र पुरातत्व विभाग  के अंतर्गत आता है और यहां पत्थरों सहित अन्य धातुओं के जेवर मिलते रहते हैं। इन्हें आम बोलचाल में गुड़ियां कहा जाता हहै। ऐसे ही गुड़िया बीनने निकले कुछ युवकों को यह दुर्लभ मूर्ति जमीन से अपने आप निकलती हुई दिखाई दी। उन्होंने इसकी जानकारी त्रिपुर सुंदरी मंदिर समिति को दे दी। मंदिर समिति के लोगों के पहुंचने पर उन्हें किसी बड़ी प्रतिमा का छत्र जमीन से निकलते हुए दिखाई दिया। समिति ने इसकी सूचना भारतीय पुरातत्व विभाग को दी। इसके बाद खुदाई में यह मूर्ति निकली।

मूर्ति लगभग साढ़े चार फुट ऊंची और साढ़े तीन फुट चौड़ी है। इस मूर्ति को 64 योगिती मंदिर, भेड़ाघाट में सुरक्षित रखा गया है। पुरातत्व विभाग के लोगों का मानना है कि  मूर्ति 10वी शताब्दी में निर्मित हुई अति प्राचीन मूर्ति है। मूर्ति में जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर आदिनाथ सिंह पाद पीठ पर योगासन मुद्रा में विराजित हैं। श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर लार्डगंज के अध्यक्ष प्रदीप जैन ने बताया कि उक्त मूर्ति,  कुंडलपुर के बड़े बाबा भगवान आदिनाथ की तरह है। जैन समाज ने प्रशासन से मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने की अनुमति मांगी है। इतिहासकार राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि तेवर पुराने समय में समृद्ध नगर था। और यहां त्रिपुरासुर का शासन था। यह पूरा क्षेत्र आध्यात्म और अनूठे शिल्प के लिए जाना जाता था। माना जाता है कि हजारों की संख्याओं में मूर्तियां भूगर्भ में दफन हैं।


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