Home Jain News जहां संसार है वहां विवाद, संघर्ष और समस्याएं है – साध्वी सुरंजनाश्री

जहां संसार है वहां विवाद, संघर्ष और समस्याएं है – साध्वी सुरंजनाश्री

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जहां संसार है वहां विवाद, संघर्ष और समस्याएं है – साध्वी सुरंजनाश्री

बाड़मेर, 28 जुलाई। समता, समभाव तथा हर चीज को सहन करने की पराकाष्ठा का नाम है सामायिक। संसार जहां है वहां विवाद है, संसार जहां है वहां संघर्ष है, संसार जहां है वहां समस्या है, ये नश्वर शरीर जिसका कोई भरोसा नहीं है एक दिन बनता है और बिगड़़ जाता है।

गुरूमां साध्वी सुरंजनाश्री महाराज ने अध्यात्मिक चातुर्मास 2018 के अन्तर्गत जैन न्याति नोहरा में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि तृष्णा और आशा हमें कहां से कहां ले जाती है जिसका न कोई आदि और न कोई अंत है। हमारे छोटे से परिवार के जीवनयापन के लिए हम पुरे विश्व के वैभव को प्राप्त करने की चाह रखते है। आज जगत में जो कुछ भी रंगीन मायाजाल नजर आ रहा है वो सब हमारे भावों पर आधारित है। शब्द को शब्द की परिधि के अनुसार समझने की कोशिश करेगें तो वो शब्द पुष्प का कार्य करेगें अन्यथा वही शब्द कांटे बनकर चुभने लग जाते है। हम परमात्मा महावीर के शासन में जी रहे है जहां परमात्मा ने चंडाल को, वैश्य को, क्षत्रिय को, ब्राह्मण को एक समान स्थान दिया। चारों ओर की दृष्टि में समान थे, चारों का परमात्मा ने उद्धार किया। चारों ही वर्ग के लोग उनकी शरण में आये परमात्मा ने उन्हें स्वीकार किया ओर स्वीकार करने के बाद उन्होनें उन्हें धर्म का मार्ग बताया ओर वे उस धर्म के मार्ग पर चले। आज वो विडम्बना हमें क्यों परेशान कर रही है, हमें क्यों पीड़ा में डाल रही है हम क्यों नासमझी के चक्कर में भूल रहे है, हम क्यों अज्ञान के पटल के अन्दर गहरे काले पर्दे में चले जा रहे है। हमें सामने परमात्मा का शासन दिख नही रहा है, परमात्मा के शासन के शब्द सुनाई नही दे रहे है, परमात्मा का शासन हमें स्पर्श नही कर रहा है इसका कारण ढूंढेगें तो हम खुद ही होगे वरना कोई दूसरा नही होगा, कारण समझ में आयेगा मेरे जीवन पर अज्ञान का आवरण है।

मुझे जो चीज समझना था वो चीज मैने समझी नही, बस मैं चलता रहा धर्म करता रहा, प्रतिक्रमण, सामायिक, दान करता रहा लेकिन हमने ये क्यूं किए इसको समझने की कोशिश नही की मात्र हम गडरिया प्रवाह चलते रहे।

साध्वीश्री ने कहा कि पहला प्रतिक्रमण है आत्मशुद्धि का। जब हमारे पास समय न हो ओर प्रतिक्रमण करने का नियम हो तो मात्र अपने जीवन की दिनचर्या में से 6 मिनट निकाले तथा हमारे द्वारा किए गए दुष्चिंतन, दुष्भाषण, दुष्चेष्टा का मन-वचन-काया की एकाग्रता के साथ प्रतिक्रमण कर

समस्त जीवों के साथ मिच्छामि दुक्कड़म देकर क्षमायाचना करे। अगर हम इस तरह का प्रतिक्रमण करे तो हमारा भाव प्रतिक्रमण द्रव्य प्रतिक्रमण से बढ़कर है। हम परमात्मा के बताये हुए वचनों पर नही चलते है इसलिए हमें भी इन बंधनों में बांधा जाता है बाकि जिनको अपनी आत्मा के प्रति उजागर होने के लिए ज्ञान के पर्दे को प्रकाशित करने के लिए यह बाह्य आडम्बर की जरूरत नही होती। हमारी विचारधारा सत्य होगी तो हमें कोई द्गिभ्रमित नहीं कर सकता है। उपसर्ग से ज्ञानी व्यक्ति नही डरते, ज्ञानी व्यक्ति पापों के प्रायच्छित से डरते है वो सोचते है अगर पापों का प्रायच्छित नही किया तो

मेरी आत्मा का क्या होगा।

अठारह पाप स्थानक संवेदना सहित विशेष कार्यक्रम रविवार को- 

चातुर्मास समिति के संयोजक बी.डी. मालू व मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि चातुर्मास के विविध कायक्रमों के अन्तर्गत रविवार को प्रातः 9 बजे स्थानीय जैन न्याति नोहरा में अठारह पाप स्थानक की संवेदना का भव्य कार्यक्रम होगा। शनिवार को दोपहर में महिलाओं व बालिकाओं के संस्कार शिविर दोपहर 2.30 बजे से 3 बजे तक जीव विचार की पाठशाला, रविवार को दोपहर 2 बजे 10 वर्ष के ऊपर के बालक-बालिकाओं के लिए विशेष शिविर तथा दीपक एकासना तप का आयोजन किया गया है। प्रवचन में संघपूजन का लाभ सम्पतराज वगतावरमल छाजेड़ जसाई वालों ने लिया।

साध्वीवर्या को अपर्ण किए सूत्र व चरित्र-

प्रवचन सभा में साध्वीवर्या को लाभार्थी परिवार द्वारा चातुर्मास में चार माह तक जिनवाणी का श्रवण करवाने के लिए प्रवचन सूत्र व महापुरूषों का चरित्र की पुस्तक अपर्ण की गई।

 

चन्द्रप्रकाश बी.छाजेड़


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