आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दीक्षा पर्व पर अंतर्मना 108 प्रसन्न सागर जी महाराज ने श्रद्धा भक्ति अर्पित की


सम्मेदशिखर जी -परम पूज्य अन्तर्मना 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज ने अपनी मौन वाणी से तीर्थराज सम्मेदशिखर जी के स्वर्णभद्र कूट से अपनी श्रद्धा भक्ति अर्पित की श्रद्धा के देवता आस्था के भगवान के चरणों में प्रणाम…।
शुरुआत अच्छी करते हैं मसला तो सारा आखिरी सांस तक निस्पृह/निर्दद/निरामय/निस्कलुप, अच्छा और सच्चा बने रहने का है …।
हे वीतराग साधना पथ के अनियत विहारी, अभिराम पथिक,निरामय निर्ग्रन्थ, दर्शन ज्ञान और आचार की त्रिवेणी, अत्यंत समर्थ,रत्नत्रयी साधक मौन मधुर मुस्कान के अभ्यासी और समर्थ क्रांति दृष्टा पूर्णिमा के चंद्रमा की धवन और प्रकाशमान संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनि राज 54 वर्ष की दीक्षा सुसम्पनता के मांगलिक प्रसंग पर

*आप में अविभूत ज्ञान शांति- अपार भक्ति और योग की शक्ति अनंत महापुंज का,
*तिमिर अज्ञान, विलोपन करने वाले महा सास्वत का,
*जन जन के मन के किसी भी कोने में बसे गहनान्धकार के हर कतरे का,विलोपन कर प्रकाश की ओर उन्मुख कर देने वाले महामार्तंड का,
*अनेकानेक आमार्थी, कल्याणियो के आत्म और परमात्म के मध्य सेतु बनकर सम्यक प्रबोधन प्रदान करने वाले अभ्रत संत का,
* हे जीवंत- मुलाचार समयसार का सर अनकहे शब्दों में बताने वाले संत शिरोमणि के चरणों में उभय मसोपवासी साधना महोदधि का अंतर्मन की गहराइयों से करता हूँ अभ्यचर्न ओर समर्पित मेरे विनय भाव वंदना आप के पाद पद्दो में
हे भक्त वत्सल आचार्य प्रवर, दृष्टिरमणीय,सृष्टि रणनिय तथा दिब्य कमनीय पूज्य पाद गुरुदेव आपकी रत्नत्रयी साधना के उसय से अदभुत हो रहे अहर्निश/ प्रतिफल यही भावना जिसे मोक्ष मार्गी,आत्मथियो के संयम पथ की दुर्धर/दुरूह यात्रा सफल हो सके हे कृपा निधान आपके सदज्ञान के प्रकाश से मेरे अन्तःकरण में नितनया आलोक प्रविष्ट हो ।सम्यक्त्व की साधना, तप आराधना ,निर्वाध गतिशील होती रहे। यही सिद्ध की भूमि से अन्तर्मना की प्राथना है
आप की किरपा मुझ आकिंचन पर सदा वैसे ही बरसाती रहे जैसी सिद्धवरकूट में बरसी थी। है महाभाग पणतिया,शत शत नमन/वंदन आप की चरणों मे भाव वंदना सहित मेरे अनंत नमोस्तु ,अन्तर्मना 108 प्रसन्न सागर जी मुनिराज

— राज कुमार अजमेरा


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