Home Jain News छोड़ दो भोग-रहोगे निरोग : मुनि श्री आदित्य सागर जी

छोड़ दो भोग-रहोगे निरोग : मुनि श्री आदित्य सागर जी

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छोड़ दो भोग-रहोगे निरोग : मुनि श्री आदित्य सागर जी

इंदौर। आजकल के व्यक्ति का चित्त भोगों में है। पहले के समय में भोगों के इतने साधन नहीं थे आज बहुतायत से हैं इसलिए व्यक्ति भोगों के प्रति आकर्षित है और उन्हें भोगने में लिप्त है, लेकिन फिर भी वह तृप्त नहीं है। संसार में कोई भी जीव ऐसा नहीं है जो भोगों से तृप्त हुआ हो, न वर्तमान में है न भविष्य में होगा। व्यक्ति से छूट नहीं रहे हैं भोग इसीलिए हो रहे हैं रोग, छोड़ दो भोग रहोगे निरोग।

ये उदगार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने बुधवार को समोसरण मंदिर कंचन बाग में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन पंचेद्रियों के विषयों को भोगते समय व्यक्ति के जैसे भाव होंगे वैसा ही उसे कर्म बंध होगा और उस कर्म बंध का फल भी व्यक्ति को भोगना पड़ेगा। मुनि श्री ने कहा कि इंद्रिय सुख शास्वत नहीं है दुख देने वाला है, आत्मिक सुख शास्वत है और सुख देने वाला है।

अंत में मुनिश्री ने कहा कि मोबाइल, भोजन, वस्त्र, शिक्षा, देखा देखी और धोखा धड़ी यह मुख्य कारण है भोगों के प्रति आकर्षण के। सुखी और स्वस्थ रहना है तो भोगों की ओर दृष्टि मत ले जाओ ये सब दुख देने के साधन है। मीडिया प्रभारी राजेश जैन दद्दू ने बताया कि गुरुवार को प्रातः 8:00 बजे महाराज श्री के ससंघ सानिध्य में दिगंबर जैन पारसनाथ पंचायती जैन मंदिर अंजनी नगर की नूतन वेदी में श्री जी विराजमान होंगे एवं प्रातः 9:00 मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज के मंगल प्रवचन होंगे।

— राजेश जैन दद्दू


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