Home Jain News साधु की पहचान पंथ से नहीं उसके शांत परिणामों से करना: मुनिश्री आदित्य सागर

साधु की पहचान पंथ से नहीं उसके शांत परिणामों से करना: मुनिश्री आदित्य सागर

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साधु की पहचान पंथ से नहीं उसके शांत परिणामों से करना: मुनिश्री आदित्य सागर

इंदौर। आज का समय बहुत विपरीत हो गया है पंथवाद के नाम पर समाज में बहुत विसंगति आ गई हैं। साधु का कोई
पंथ नहीं होता इसलिए समाज साधु की पहचान पंथ से नहीं, उसके शांत परिणामों से करें। जितने भी पंथ हैं सब शल्य हैं और जो शल्य ग्रसित है वह व्रती, महाव्रती नहीं है। जो महाव्रती हैं वह केवल तप और श्रुत के लिए महाव्रती बने हैं
उनका कोई दूसरा प्रयोजन नहीं है।

यह बात मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने समोसरण मंदिर में मंगलवार को चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए कही। आपने कहा कि जब कोई मूर्ति निर्माण करता मूर्ति का निर्माण करता है तो वह उसका निर्माण तेरह और बीस पंथ के हिसाब से नहीं करता बल्कि वीतरागता और आगम के अनुसार करता है। हमारे पूर्वाचार्यों ने भी आगम में पंथवाद की चर्चा नहीं की वीतरागता के नमन की चर्चा की है।

आपने सभा में उपस्थित श्रोताओं से कहा कि जब आपसे कोई पूछे कि आप किस पंथ के हो तो तो कहना मैं दिगंबरत्व को माननेवाला वीतरागता और आगम का पंथी हूं। मुनि श्री सहजसागरज मैं भी संबोधित करते हुए कहां कि भावों और वाणी की पहचान भाषा से होती है हमारी वाणी एवं भावों में विनम्रता होनी चाहिए, विनय मोक्ष का द्वार है,जो झुकता है वही श्रेष्ठ है अतः नंबर बने और वाणी को वीणा बनाएं वाण नहीं। सभा में पंडित रतन लाल जी शास्त्री, कैलाश वेद, डॉक्टर जैनेंद्र जैन आजाद जैन आदि उपस्थित थे धर्म सभा का संचालन अजीत जैन ने किया।

— राजेश जैन दद्दू


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