दीक्षा दिवस के दिन दीक्षा के समय आए भावों को याद करना चाहिए चद्रप्रभ सागर जी


भवानीमंडी। विश्व वन्दनीय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विनीत सागर जी महाराज का रजत दीक्षा महोत्सव बुधवार को भक्ति उल्लास उमंग से बनाया गया। नगर की भक्ति सचमुच देखते ही बन रही थी मानो वातावरण धर्म मय बन गया हो। हर कोई मुनि श्री के दर्शन को लालायित रहा। और उनका आशीष लिया। सुबह से भक्तो का आना जाना बना रहा। हर जगह जय जयकारों की गूंज थी। विद्या भवन,जिनालय, व भक्तो के निवास के आगे विशेष सजावट रही। हर कोई भक्ति के रंग में रंगा था। प्रातः बेला में मुनि द्वय ने गुरु भक्ति की। वह भक्तो ने मुनि द्वय की परिक्रमा की। साथ ही प्रातः बेला में आचार्य श्री का पूजन व मुनि श्री को अर्घ समर्पितं किया।
6 दर्जन से अधिक चौके ने एक नया इतिहास रचा
हाडौती की भवानीमंडी भक्ति से ओत प्रोत रही जहाँ 7 दर्जन से से अधिक चोके लगें मुनि द्वय का पड़गाहन किया। आलम यह रहा कि हज़ारों की संख्या में भक्त इसमें सम्मलित रहे। जो एक इतिहास को जन्म दे गया। ऐसा क्षण हर किसी को भक्ति से सराबोर कर गया। नगर की गलियां सड़के भवानीमंडी नगर हर कोई मुनि द्वय की झलक पाने को आतुर दिखाई दिया।
जैसे ही पड़गाहन उपरान्त पूज्य मुनि श्री विनीत सागर जी महाराज के आहार आदिश मेडिकल स्टोर परिवार के हुए यह परिवार खुशी से झूम उठा। मुनि श्री चन्द्रप्रभ सागर जी महाराज आहारचर्या चरण वन्दना का लाभ श्रीमान प्रदीप पाटनी परिवार को मिला।
दोपहर की बेला में सामूहिक रूप से मुनि श्री चद्रप्रभ सागर जी महाराज के सानिध्य में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का पूजन व मुनि द्वय का पूजन करते हुए अर्घ समर्पितं किए।
इस अवसर पर मुनि श्री चंद्रप्रभ सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा संसारी प्राणी खोज में लगा हुआ है,व परमात्मा बनना चाहता है। लेकिन परमात्मा बनने के लिए 18 दोषों से रहित होना होगा। 18 दोषों से रहित हुए बिना आप परमात्मा नही बन सकते।
25वा रजत दीक्षा दिवस मना रहे आपका सौभाग्य है।
पूज्य मुनि श्री ने कहा आज भवानीमंडी में विनीत सागर जी महाराज का दीक्षा दिवस मना रहे यह आपका सोभाग्य है। उन्होंने कहा ऐसे सन्त मिलना मुश्किल है। जो ख्याति लाभ से परे है। उन्होनें कहा एक व्यक्ति मंदिर, वेदी बनवाता है। उसका लाभ हज़ारों लोगों को मिलता है। एक व्यक्ति को दीक्षा देना समाज व राष्ट्र को दीक्षा देना है। उन्होंने कहा दिगबर दीक्षा प्राचीन काल से चली आ रही है। एक पुस्तक मुगल empreor में इसका वर्णन है। दिगंबर दीक्षा आदि से अनादि तक चली आ रही है। सीख देते हुए कहा दाम, पैसा,बंगला है यह धर्म नही है।धर्म करने के लिए संस्कार संस्क्रति आवश्यक है। धर्म अंतरंग है।
शाकाहारी बनो
कुछ भी खा लेना वह जैन नही है। अगर आप शाकाहारी है तो श्रावक बन सकते है। दीक्षा ले सकते है। अगर शाकाहारी बनोगे तो तुम्हारा कल्याण होगा।
यह दीक्षा दिवस इसीलिए आता है कि दीक्षा के समय आए भावो को याद करे, ताकि परिणाम विशुद्व हो। वह परिणाम आज भी बने रहे। व्यक्ति का कल्याण व्रत नियम से होगा।जिनके पास धर्म है वह धर्मात्मा है। आगे परमात्मा बनेगा। जो आत्मा की साधना करता है वह साधु है।
जीवन में वात्सल्यता, अनुपमता, दया रखो दया बिना धर्म नही है। दीक्षा दिवस पर कुछ न कुछ त्याग करो। संयम का पालन ही सार है।मेरा कुछ नही है, यह सार है। अंत में कहा जब तक साधु श्रावक रहेगा तब तक यह जैन धर्म रहेगा।
अनेक स्थानों के भक्त पहुँचे
इस अवसर पर अनेक स्थानों के भक्त पहुचे भानपुरा, पिड़ावा, मिश्रोली, सुसनेर व रामगंजमडी के भक्त आए।
सभा का संचालन रामगंजमडी के प्रशांत शास्त्री, ने किया। इस अवसर पर मुनि श्री के गृहस्थ अवस्था के परिवार जन भी पधारे।

— अभिषेक जैन लुहाडीया


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