जैन धर्म की प्राचीन भाषा “प्राकृत” के बारे में जानने के लिए इस खबर को जरुर पढ़ें।


जैन धर्म अतिप्राचीन धर्म है और इसके ज्यादातर अति-प्राचीन ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गये हैं। यही कारण है कि जैन धर्म की गहन और सटीक जानकारी हमें नहीं हो पाती क्योंकि हमें प्राकृत भाषा का ज्ञान नहीं है। इसी अति-महत्वपूर्ण उदेश्य के लिए आचार्य विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री 108 प्रणम्य सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से प्राकृत भाषा का ज्ञान समाज के लोगों को कराने के लिए पाठशाला सहित ऑनलाइन पाठशालाएं शुरू की गई हैं।

पाठशाला में परम पूज्य प्राकृत मर्मज्ञ मुनि श्री 108 प्रणम्य सागर जी महाराज द्वारा रचित “पाइय सिक्खा” की पुस्तकों के द्वारा प्राकृत भाषा का ज्ञान दिया जा रहा है। इस पाठशाला का मुख्य उदेश्य हमारी जैनागम वाणी को जन-जन तक पहुंचाने के साथ ही अपनी संस्कृति एवं सभ्यता की रक्षा करना है। इसी उदेश्य से विभिन्न शहरों में प्राकृत जैन विद्या पाठशालाएं एवं ऑनलाइन पाठशालाएं खुल रही हैं। अभी 1 अप्रैल से दो पाठशालाएं एक साथ खुली हैं, एक पाठशाला में दिल्ली के लोग और दूसरी पाठशाला में देश के विभिन्न स्थानों के लोग रहेंगे। इसके बाद सीखने वाले लोगों की संख्या एवं उनके लगाव एवं रुचि के अनुसार अन्य पाठशालाएं खुलेंगी।

जो लोग दिल्ली की पाठशाला से जुड़ना चाहते हैं, वे श्रीमती सारिका जैन (हिसार), श्री रजत जैन (उस्मानपुर) एवं नितिन जैन (कृष्णा नगर) से एवं जो अन्य शहरों के माध्यम से जुड़ना चाहते हैं वे सभी पूना से श्रीमती स्मिता जी (कोटा) से श्रीमती बबिता जी (रेवाड़ी) से श्रीमती रितु एत्तं प्रणया दीदी (पूना) से सम्पर्क कर सकते हैं। पाठशाला में प्रतिदिन रात्रि 08.30 बजे 1-4 प्रश्न पूछे जायेंगे। आप अपने उत्तर 09.30 बजे तक दे सकते हैं। शुक्रवार, शनिवार एवं रविवार को पाठशाला का अवकाश रहेगा। पूरे माह पढ़ाई गयी प्राकृत भाषा का माह के अंत में टैस्ट भी होगा। इसमें प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पाने वाले को पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा।

जिन्होंने अभी तक फार्म नहीं भरा है, वे इस लिंक http://link.arham.yoga/prakritapp पर जाकर अपना फार्म भर सकते है। इसके लिए आपको पूरा कोर्स करने के बाद डिप्लोमा भी मिलेगा। इस संबंध में अधिक जानकारी या पूछताछ के लिए निम्न लोगों से सम्पर्क कर सकते हैं। डा. अजेश जैन (रेवाड़ी) 9784601548, नेहा जैन प्राकृत 9817006981, संगीता जैन (जैनपुरी, रेवाड़ी) 8920936205, और पुस्तक प्राप्त करने के लिए आप https://prakritvidya.com/en/online-resource इस लिंक पर क्लिक कर सकते है।


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