जिनवाणी की सुरक्षा करें: मुनिश्री आदित्य सागर


इंदौर। जिनवाणी की सुरक्षा हम सब का कर्तव्य है। हमारे पूर्वाचार्य कुंद कुंद, भूत वली, पुष्पदंत, धर्षेणाचार्य आदि ने ताड़ वृक्ष के पत्तों पर श्रम साध्य लेखन कर महान ग्रंथों का सृजन किया है हम सब का कर्तव्य है कि हम कम से कम उन ग्रंथों की सुरक्षा तो करें जिससे अगली पीढ़ी को ये सुरक्षित हस्तांतरित हो सके। यह उद्गार दिगंबर जैन त्रिमूर्ति मंदिर कालानी नगर मे आज श्रुत पंचमी पर्व पर आयोजित धर्मसभा में मुनिश्री आदित्य सागर जी महाराज ने व्यक्त किए।

धर्म सभा का संचालन करते हुए कुंदकुंद ज्ञानपीठ के अंतर्राष्ट्रीय विद्वान गणितज्ञ डॉ अनुपम जैन ने कहा कि मुनिश्री आदित्य सागर जी ब्राह्मी ,प्राकृत, कन्नड़, संस्कृत आदि 16 भाषाओं के ज्ञाता हैं और इन दिनों आप आचार्य कुंदकुंद और अन्य आचार्य प्रणीत विविध भाषाओं में ताड़ पत्रों पर स्रजित ग्रंथों का आलोचनात्मक अध्ययन एवं उनके अनुवाद कार्य में संलग्न है । आपने श्रुत और संस्कृति की सुरक्षा की चर्चा करते हुए कहा कि शोध संस्थानों का संचालन एवं शोध करने वाले विद्वानों को प्रोत्साहन देकर ही हम अपनी संस्कृति और जिनवाणी की सुरक्षा कर सकते हैं।

इस अवसर पर दिगंबर जैन श्रुत संवर्धिनी महासभा की मध्य प्रदेश इकाई के तत्वावधान में जैनागम के वरेण्य विद्वान पंडित रतन लाल जी शास्त्री का श्री टी के वेद, आजाद जैन, अमित कासलीवाल, अशोक खासगीवाला, डॉ अनुपम जैन एवं अनिल रावत ने तिलक लगाकर एवं शाल श्रीफल और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान किया। कालानी नगर दिगंबर जैन समाज ने भी पंडित जी एवं वरिष्ठ विद्वान डॉ अनुपम जैन का शॉल श्रीफल एवं माला पहना कर सम्मान किया।

अपने सम्मान के प्रत्युत्तर में पंडित जी ने कहा कि मुझे अपने जीवन में अनेक मुनि संघों के साथ स्वाध्याय करने का जो सौभाग्य मिला वह मेरे जीवन के लिए अमूल्य वरदान है। हम तो सिंधु मैं बिंदु भी नहीं हैं फिर भी आपने मेरा सम्मान किया मेरे लिए तो संतों का आशीर्वाद ही मेरा सम्मान है। इस अवसर पर मुनिश्री अप्रमित सागरजी एवं मुनि श्री सहजसागरजी भी उपस्थित थे। धर्म सभा में विमल बड़जात्या, डॉक्टर जैनेंद्र जैन, चिंतन जैन, राजेश दद्दू, राकेश चेतक, विपुल बांझल, एम के जैन एवं डी के जैन आदि समाज के गणमान्य उपस्थित थे।

— राजेश जैन दद्दू


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