सम्मेद शिखर जी वंदना के भाव से जाना चाहिये, न कि घूमने के – मुनि श्री विशोकसागर जी


हमारे किसान भाई हमारे देश की नींव हैं एबं हमारे देश का जाबाजजवान शिखर ध्वजा। इन वीर जबानों की वजह से ही हम अपना धर्ममय जीवन सुरक्षित पार कर पा रहे हैं। हमारे देश के जवान अपनीश्वासों की अंत तक वीरता का परिचय देते हुए देश की सरहदों परदुश्मनों के दांत खट्टे कर रहे हैं। अपना परिवार देश की सीमाओ मैंरहने वाले देश वासियों को मानने वाले इन जांबाज सेनिको का हम हृदय से स्वागत वंदन अभिनंदन करते हैं। तथा रक्षाबंधन के पावनपर्व पर हम चाहते हैं कि हमारे हाथों से बनी हुई राखी हमारे इनभाईयो की कलाई की शोभा बन सके, ऐसा संकल्प श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर खनियाधाना मैं गणाचार्य श्री विराग सागरजी महाराज के शिष्य प्रखर्वकता महाश्रमण मुनि श्री 108 विशोकसागर जी विधेय सागर जी महाराज जी के सानिध्य में चल रहे श्रीसम्मेदशिखर विधान महाअर्चना मैं बैठी हुई जैन समाज की महिलाओं ने लिया।

संकल्प के बाद पूज्य मुनि श्री का मंगल प्रवचन हुआ इसमेंस्थानीय समाज के साथ साथ बामौर कला आदि समस्त ग्रामों सेसमाज बंधुओं ने तीर्थराज सम्मेदशिखर जी के पौराणिक महत्व कोजाना। मुनि श्री ने कहा कि सम्मेदशिखर जी के बारे मैं लेख है कि “एक बार वंदन करने बाला नरक निगोद तिर्यंच जैसी अधम पर्यायों सेबच जाता है। लेकिन वंदना के भाव होना चाहिये, न कि घूमने के। आज हम अपने को अगर दो चार दिन खाली पाते हैं तो विचार करतेहै कि चलो शिखर जी घूम आए।  वंदना करना एबं घूमने जाने जमीन आसमान का अंतर है बंदन करने वाला मन वचन एवं काय से अपने भावों को सँजोता है किसी भी प्रकार की सुविधा  असुविधा का विचार दिए बिना भक्ति भाव से वचनों मे स्तुति वारह भावना भगवान के गुणों का ज्ञान करता हुआ शरीर के सुख दुख की चिंता बगैर तीर्थराज की चिंता बगेर तीर्थराज की वंदना करता हे

सभी परिजन व्यापार आदि के संकल्प विकल्पों से हटकर केवल बगवां के गुणों मे अनुराग रखता हुआ वंदन करता है। लेकिन आज हम घूमने की इच्छा से आने जाने की सुबिधा  ठहरने भोजन आदि ई सुबिधा  यहाँ तक की अपने परिवार जनों या अपने आधीनस्तो के जीतने दिन वाहर जा रहे है उतने दिन का कार्य बाद मै आकर क्या करेगा पूरा प्लान बता कर जाते है। पूरे रास्ते फोन पर समाचार लेते रहते है स्टेशन परउतरकर सबसे पहले भगवान याद करने की बजाह परिजन याद करते है। रास्ते मै अपने सुबिधापूर्वक पहुचने की जानकारी देते हुय  दिए  गए निर्देशों के परिपालन की जानकारी लेते है।

क्षेत्र पर पहुचकर अपनों सुख सुबिधाऍ जुटाने मै ज्यादा महत्व देते है पूरा रास्ता खाने पीने ऍवं मतस्ती मैं निकाल देते हैं कभी विचारनहीं करते कि हमारे द्वारा क्षेत्र पर जो कृत्य किये जा रहेहैं इसका क्षेत्र की पवित्रता पर क्या प्रभाव पड़ेगा। हमारेद्वारा खाने पीने की चीजों को पहाड़ पर खरीदने से वहाँआसामाजिक तत्वों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है जोवहां क्षेत्र की पवित्रता को नष्ट करके वहां रहकर वह मांसमदिरा का सेवन हमसे कमाय हुई पेसो से कर रहे हैं। इस प्रकार एक बार नही 1008 बार भी घूम आएं तो भीहमारा इन दुर्गातियों से बचाव सम्भव नहीं है।

  • स्वप्निल जैन (लकी) खनियाधाना जिला

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