Home Jain News वाणी का करें सदुपयोग, अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं बोलें: आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी

वाणी का करें सदुपयोग, अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं बोलें: आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी

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वाणी का करें सदुपयोग, अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं बोलें: आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी

ललितपुर। दसलक्षण महापर्व के पांचवे दिन अटा जैन मंदिर में आचार्य श्री विनिश्चय सागर महाराज ने अपने अमृतमयी प्रवचन में कहा कि जैसा देखा या सुना हो, उसे वैसा नहीं कहना बताना ही झूठ है। जिन वचनों से किसी धर्मात्मा या निर्दोष प्राणी का घात हो, ऐसे सत्य वचन बोलना भी झूठ कि श्रेणी में आता है।छल-कपट, राग-द्वेष रहित वचन बोलना, सर्व हितकारी, प्रामाणिक, मितकारी, कोमल वचन बोलना , प्राणियों को दुःख पहुचाने वाले वचन न कहना “उत्तम सत्य धर्म” है।

जहाँ बोलने से धर्म की रक्षा होती हो, प्राणियों का उपकार होता हो, वहां बिना पूछे ही बोलना और जहाँ आपका व अन्य का हित नहीं हो वहां मौन ही रहना उचित कहा है।

नीतिकारों ने कहा है कि सत्य गले का आभूषण है, सत्य से वाणी पवित्र होती है। सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं बोलें।साबुन से वस्त्र स्वच्छ होता है। वैसे ही वाणी सत्य से निर्मल होती है। सत्य पर सारे तप निर्भर करते हैं। जिन्होंने सत्य का पालन किया, वे इस संसार से पार हो गए, मुक्त हो गए। सत्य ही संसार में श्रेष्ठ है।

हित मित और प्रिय  बोलें : डॉ सुनील संचय

डॉ सुनील संचय ने सत्य धर्म पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।  हमें कठोर, कर्कश, मर्मभेदी वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए । जब भी बोलें हित मित प्रिय वचनों का प्रयोग अपने व्यवहार में लाना चाहिए तथा कहा भी गया है- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।। कठोर वचन सत्य की श्रेणी में नहीं आते।

सत्यवादी की जग में सदा ही विजय होती है। इसीलिए कहा है सत्य मेव जयते। अत: हमें अपने जीवन में सदा सत्य का पालन करना चाहिए । व्यवहार में वाणी के सदुपयोग को सत्य कहते हैं।दुर्लभ वाणी का सदुपयोग करने वाला ही धर्मात्मा कहला सकता है। हित—मित और प्रिय वचन बोलना ही वाणी का सदुपयोग है। कटु, कर्वश एंव निन्दापरक वचन बाण की तरह होते हैं, जो सुनने वाले के हृदय में घाव कर देते हैं ।


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