भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग


इतिहास गवाह है कि जैन धर्म तथा समाज राष्ट्र में मुसीबत के समय हमेशा कदम से कदम मिलाकर साथ देता है ।

राष्ट्र व्यापी लॉक डाउन के समर्थन में अपने जैन मंदिरों पर ताले लगा देना ,जैन समाज की समकालीनता और आध्यात्मिकता का सूचक है ।

जैन परम्परा में प्रतिदिन देव दर्शन तथा जिनालय में जिनबिम्ब का अभिषेक तथा पूजन एक अनिवार्य शर्त है जिसका कड़ाई से पालन होता है किन्तु करोना वायरस के प्रकोप के चलते राष्ट्रीय लॉक डाउन की घोषणा के तहत  ये नियमित अनिवार्य अनुष्ठान भी टाल कर जैन समाज ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ भी नहीं है । जब ऐसे समय में कई संप्रदाय अंध श्रद्धा के वशीभूत होकर अपनी कट्टर सोच और क्रिया में जरा सा भी परिवर्तन नहीं करते हैं वहीं जैन धर्म हमेशा से समकालीन युग चेतना को बहुत ही विवेक से संचालित करता है । यह प्रेरणा उन्हें तीर्थंकरों की अनेकांतवादी शिक्षा से प्राप्त होती है ।

दरअसल जैन दर्शन  में निश्चय और व्यवहार इन दो धर्मों का उपदेश दिया गया है जिसमें निश्चय धर्म आध्यात्मिक है और व्यवहार धर्म क्रिया प्रधान और हमेशा ही इन दोनों धर्मों में संतुलन रखने की शिक्षा दी गई है ।

इसमें भी व्यवहार धर्म की अपनी सीमाएं निर्धारित की गईं हैं जो अनिवार्य और आवश्यक होते हुए भी देश काल परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनीय माना गया है ।

व्यवहार धर्म उपचार से ग्राह्य है तथा इसके सभी रूप तभी तक वैध है जब तक वे निश्चय धर्म के अनुगामी होते हैं ।निश्चय धर्म वास्तविक होता है और वह आत्मा के आश्रित होने से आध्यात्मिक कहलाता है । निश्चय धर्म के अभाव में व्यवहार धर्म अप्रभावी होता है ।

ऐसे संकट के समय में जब व्यवहार धर्म लॉक डाउन है तब उदारवादी जैन धर्म व्यवहार की नई परिभाषा , नई क्रिया स्थापित करके अपने निश्चय धर्म की सुरक्षा में लगा है क्यों कि वह ही वास्तविक धर्म है ।

बिना किसी संकोच के वृहत्तर भारत वर्ष की सम्पूर्ण जैन समाज ने चैत्र कृष्ण आदिनाथ नवमी से लेकर चैत्र शुक्ला महावीर त्रियोदशी तक आदिनाथ जयंती तथा महावीर जयंती के अपने सभी छोटे बड़े कार्यक्रम बहुत ही सहजता से रद्द कर दिए ।आगे तक के अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव ,शिविर ,संगोष्ठी आदि ऐतियात के तौर पर रद्द कर दिए हैं अथवा टाल दिए हैं |इसमें किसी ने भी सांप्रदायिक कट्टरवाद नहीं दिखाया ।

जैन समाज में बिना जिन दर्शन और पूजन के लाखों लोग जल तक ग्रहण नहीं करते हैं और ऐसा उनका आजीवन का व्रत है किन्तु उन्होंने भी इस लड़ाई में इसके विकल्प तलाश कर सावधानी रखी है ।

करोना को लेकर जितनी भी हिदायतें सरकार द्वारा दी जा रही हैं ,उससे भी ज्यादा क्वारनटाईन  और आइसोलेशन का अभ्यास जैन परिवारों में सोला के रूप में जैन आचार मीमांसा के तहत पहले से अभ्यास होने से उन्हें इसमें ज्यादा दिक्कत नहीं आ रही है ।

जैन मंदिरों , स्थानकों आदि में सामूहिक स्वाध्याय तथा सामायिक ,प्रवचन आदि का नियमित विधान है तथा साधु और श्रावक लोग इसका नियमित पालन करते हैं किन्तु बड़ी ही सहजता से उन्हें अब यह संदेश दिया जा रहा है कि यह कार्य चूंकि एकांत में कठिन हो गया था अतः सामूहिक करते थे किन्तु अब लॉक डाउन वास्तव में हमें वास्तविक एकांत उपासना का अवसर दे रहा है ।

जैन धर्म की यही अनेकांत वादी सोच उसे flexible बनाती है । जैन संदेश सदा से  कट्टरता में नहीं , बल्कि उदारता में धर्म कहता आया है ।

जब आंधी तूफान आते हैं तब अकड़ कर खड़े बड़े बड़े पेड़ भी उखड़ जाते हैं किन्तु  थोड़ा झुकने वाले पौधे और घास बने रहते हैं और संकट टल जाने पर पुनः लह लहाने लगते हैं ।

आज जैन समाज के सभी आचार्य संत अपने श्रावकों को ऐसी ही प्रेरणा दे रहे हैं उन्होंने अपने सामूहिक प्रवचन भी रद्द कर दिए हैं । जैन मुनि अपने सभी श्रावक अनुयायियों को लगातार राष्ट्र और सरकार का सहयोग करने की प्रेरणा देने वाले सन्देश प्रसारित कर रहे हैं |

आज सोशल मीडिया के सभी जैन ग्रुप प्रवचनों , भजनों , स्वाध्याय ज्ञान विज्ञान की प्रतियोगिताओं से भरे पड़े हैं ताकि श्रावक इस विषम परिस्थिति में भी अपनी साधना घर पर रहकर कर सकें ।श्रावक घरों में रह कर सिर्फ उपासना ही नहीं कर रहे हैं बल्कि राष्ट्र में सुख और शांति की कामना भी कर रहे हैं | अनेक प्राचीन मन्त्र और स्तोत्र ऐसे हैं जिनको पढने से प्राचीन काल में अनेक प्रकोपों पर मुक्ति प्राप्ति के शास्त्र प्रमाण हैं अतः जैन साधू सभी जीवों के कल्याण के लिए निरंतर उनकी साधना कर रहे हैं | उन मन्त्रों और स्तोत्रों का पाठ गृहस्थ श्रावक अपने घरों में सभी जीवों के कल्याण की भावना से कर रहे हैं | अनेक जैन विद्वान विदुषी शास्त्रों को ऑनलाइन पढ़ाकर लोगों का ज्ञान और विपरीत परिस्थिति में मनोबल मजबूत कर रहे हैं |

प्रधानमंत्री राहत कोष में अनेक सामर्थ्यवान जैन श्रावक  करोड़ों का दान दे रहे हैं । अन्य श्रावक यथा शक्ति दान दे रहे हैं । आसपास गरीबों को भोजन आदि भी वितरित करवा रहे हैं ।पशुओं की रक्षा के उपाय कर रहे हैं | आज वे राष्ट्र को हर तरह का सहयोग कर रहे हैं ।पिछली जनगणना के अनुसार भारत में जैन समाज महज ४५ लाख की आबादी वाली सर्वाधिक अल्पसंख्यक समाज है जो भारत की सम्पूर्ण जनसँख्या के एक प्रतिशत का भी बहुत छोटा सा हिस्सा है |लेकिन इसके बावजूद भी वे अपने अहिंसक संस्कारों से,समर्पण से राष्ट्र निर्माण में तन मन धन से जो योगदान दे रहे हैं वह वास्तव में अनुकरणीय है |

सांप्रदायिक विद्वेष की मानसिकता से ऊपर उठकर यदि कोई भी जैन धर्म दर्शन ,संस्कृति और परंपरा को देखेगा,उसका बारीकी से अध्ययन करेगा, तो उसे उसमें विश्व की सभी समस्याओं का समाधान और शांति का सच्चा मार्ग मिलेगा – ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है ।

बस आंख खोलने की जरूरत है , बाकी करोना ने जैन धर्म के सिद्धांत मानने पर विवश तो कर ही दिया है ।

तीर्थंकर महावीर का  जिओ और जीने दो संदेश बहुत प्रसिद्ध हुआ अब वर्तमान में लॉक डाउन की परिस्थिति में उनका यह संदेश प्रसिद्ध होना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था निज घर में रहो और रहने दो ।

 

— प्रो. अनेकांत कुमार जैन


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