Home Jainism जियो और जीने दो के उद्घोषक तीर्थंकर महावीर निर्वाण दिवस

जियो और जीने दो के उद्घोषक तीर्थंकर महावीर निर्वाण दिवस

0
जियो और जीने दो के उद्घोषक तीर्थंकर महावीर निर्वाण दिवस

वर्तमान अशांत, आतंकी, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में महावीर की अहिंसा ही शांति प्रदान कर सकती है। महावीर की अहिंसा केवल सीधे वध को ही हिंसा नहीं मानती है, अपितु मन में किसी के प्रति बुरा विचार भी हिंसा है। वर्तमान युग में प्रचलित नारा ‘समाजवाद’ तब तक सार्थक नहीं होगा जब तक आर्थिक विषमता रहेगी। एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव। इस असमानता की खाई को केवल भगवान महावीर का ‘अपरिग्रह’ का सिद्धांत ही भर सकता है। अपरिग्रह का सिद्धांत कम साधनों में अधिक संतुष्टिपर बल देता है। यह आवश्यकता से ज्यादा रखने की सहमति नहीं देता है। इसलिए सबको मिलेगा और भरपूर मिलेगा।

जब अचौर्य की भावना का प्रचार-प्रसार और पालन होगा तो चोरी, लूटमार का भय ही नहीं होगा। सारे जगत में मानसिक और आर्थिक शांति स्थापित होगी। चरित्र और संस्कार के अभाव में सरल, सादगीपूर्ण एवं गरिमामय जीवन जीना दूभर होगा। भगवान महावीर ने हमें अमृत कलश ही नहीं, उसके रसपान का मार्ग भी बताया है।

इतने वर्षों के बाद भी भगवान महावीर का नाम स्मरण उसी श्रद्धा और भक्ति से लिया जाता है, इसका मूल कारण यह है कि महावीर ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश दिया, अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु अहिंसा धर्म का उपदेश दिया।

अन्य नाम: वीर, अतिवीर, वर्धमान, सन्मति
एतिहासिक काल: 599-527 ई॰ पू॰,
शिक्षाएं: अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्तवाद,
पूर्व तीर्थंकर: पार्श्वनाथ
गृहस्थ जीवन: वंश—इक्ष्वाकु
पिता: राजा सिद्धार्थ,
माता: त्रिशला

पंचकल्याणक
जन्म: चैत्र शुक्ल त्रयोदशी ,
जन्म स्थान: कुण्डग्राम, वैशाली के निकट ,
मोक्ष: कार्तिक कृष्ण अमावस्या
मोक्ष स्थान: पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार
लक्षण: रंग -स्वर्ण,
चिन्ह: सिंह,
आयु: 72 वर्ष
शासक देव: यक्ष मातंग, यक्षिणी सिद्धायिका,
गणधर: प्रथम गणधर– गौतम गणधर
गणधरों की संख्य: ११

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।

तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) ,ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धान्त दिए। महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त है।

तपस्या
भगवान महावीर का साधना काल १२ वर्ष का था।दीक्षा लेने के उपरान्त भगवान महावीर ने दिगम्बर साधु की कठिन चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। श्वेतांबर सम्प्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है के अनुसार भी महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी दिगम्बर अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। इन वर्षों में उन पर कई ऊपसर्ग भी हुए जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है।

केवल ज्ञान और उपदेश
केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद, भगवान महावीर ने उपदेश दिया। उनके ११ गणधर (मुख्य शिष्य) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे।

जैन ग्रन्थ, उत्तरपुराण के अनुसार महावीर स्वामी ने समवसरण में जीव आदि सात तत्त्व, छह द्रव्य, संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का नय आदि उपायों से वर्णन किया था।

पाँच व्रत

सत्य ― सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।

अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।

अचौर्य – दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।

अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।

ब्रह्मचर्य– महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।

जैन मुनि, आर्यिका इन्हें पूर्ण रूप से पालन करते है, इसलिए उनके महाव्रत होते है और श्रावक, श्राविका इनका एक देश पालन करते है, इसलिए उनके अणुव्रत कहे जाते है।

मोक्ष तीर्थंकर महावीर का केवलीकाल ३० वर्ष का था। उनके के संघ में १४००० साधु, ३६००० साध्वी, १००००० श्रावक और ३००००० श्रविकाएँ थी। भगवान महावीर ने ईसापूर्व 527, 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। उनके साथ अन्य कोई मुनि मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए | पावापुरी में एक जल मंदिर स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहाँ से महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।

दूसरी सदी के प्रभावशाली दिगम्बर मुनि, आचार्य समन्तभद्र ने तीर्थंकर महावीर के तीर्थ को सर्वोदय की संज्ञा दी थी।

कार्तिक श्याम अमावस शिव तिय, पावापुर तैं वरना |
गणफनिवृन्द जजें तित बहुविध, मैं पूजौं भयहरना |मोहि0
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमहा0अर्घ्यं नि0स्वाहा .

 

— डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन


Comments

comments