Jain Muni Aditya Sagar – व्यक्ति दूसरे को अपने नजरिए से देखता है आपके नजरिए से नहीं: मुनिश्री आदित्य सागरजी


इंदौर। सुख की वृद्धि और दुख के अभाव के लिए नीति अनुसार जीवन जियो एवं आप अपनी नजर में सही रहो दूसरे के नजरिए पर ध्यान मत दो। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे को अपने नजरिए से देखता है आपके नजरिए से नहीं।
जो व्यथित मन को अच्छा कर दे वह नीति कहलाती है। नीति याने लोक व्यवहार हेतु नीति, नियम, सिद्धांत। अज्ञानी व्यक्ति जब विकल्पों एवं टेंशन में होता है उस समय उसके मन में आत्महत्या करने के विचार आते हैं ऐसे समय अपने मन व दिमाग को व्यवस्थित करो और अपना दृष्टिकोण स्वयं बनाओ एवं उसी अनुसार जीवन जीने की आदत डालो।

नीति विषयक यह उद्गार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने आज चिन्मय सदन कंचनबाग में नीति की क्लास में व्यक्त किए। मुनि श्री ने कहा दुनिया स्वार्थी है जब तक आप से लोगों की उम्मीदें पूरी होती रहेंगी लोगों की नजर में आप सही और श्रेष्ठ रहेंगे और उम्मीद पूरी ना होने पर गलत और बुरे बन जाएंगे। लोग तो इच्छा पूरी ना होने पर भगवान को, गुरु को भी गलत मान लेते हैं फिर आप कौन हो? कहा भी है कि हमसे दोस्त नहीं बदले जाते, लाख बुराई होने पर/लोग गुरु भी छोड़ देते हैं।

मुनिश्री ने आगे कहा कि दुनिया के नजरिए को कोई बदल नहीं सकता इलाज नजर का होता है नजरिए का नहीं। कोई कुछ भी कहे उनकी बातों से व्यथित मत होना क्योंकि शब्द उसके हैं, शब्द मेरा स्वभाव नहीं फिर मैं क्यों व्यथित होऊं, इसलिए टेंशन मुक्त होकर खुश रहो खुशहाल रहो।

— राजेश जैन


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