इंदौर, जब दूसरे का दर्द अपना दर्द बन जाए, आपके मन में उसके प्रति सहयोग की भावना जग जाए, उसे ही सच्ची मैत्री कहते हैं, यह जीवन के तीन सूत्रों में से एक है। ये उद्गार इंदौर के तिलक नगर में आयोजित दो दिवसीय दीक्षा समारोह के दौरान आचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज ने ब्यक्त किये। आचार्य ने कहा जीवन के तीन सूत्रों में प्रेम, मैत्री औ बंधुत्व पर अमल करने को कहा। उन्होंने बताया जीवन का पहला सूत्र है प्रेम। जब जीवन में प्रेम आता है तो अविास और शंकाएं दूर होती हैं। प्रेम धीरे-धीरे बढ़ता है, इसके विपरीत राग धीरे-धीरे घटता है। जीवन का दूसरा सूत्र है मैत्री। मैत्री से सहयोग और दूसरों की मदद की भावना जगती है। जीवन का तीसरा सूत्र है बंधुत्व। ये वो सूत्र है, जिसके कारण हम किसी की मदद करते समय किसी तरह की अपेक्षा नहीं रखते हैं। जहां आशंएं और अपेक्षाएं समाप्त हो जाती हैं, वहां निरापेक्ष बंधुत्व पैदा होता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से विनम्रता का भाव रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि जब किसी संत के पास सत्संग में जाओ तो पहले उनका सम्मान करना सीखो। आप जितना झुकोगे उतना ही ऊपर उठोगे और जितना अकड़ोगे उतना नीचे गिरोगे। उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में जैन समुदाय सहित अन्य समुदाय के लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का आयोजन अभा प्रज्ञ श्रीसंघ के तत्वाधान में किया गया।